Begin typing your search above and press return to search.
आंदोलन

भारत में पत्रकारों के लिए कोविड 19 में सबसे बड़ा संकट है अपनी पत्रकारिता को निष्पक्ष बनाए रखना

Janjwar Desk
1 Aug 2020 12:44 PM GMT
भारत में पत्रकारों के लिए कोविड 19 में सबसे बड़ा संकट है अपनी पत्रकारिता को निष्पक्ष बनाए रखना
x

राजधानी नई दिल्ली में अपने सहयोगियों के साथ हुए गलत बर्ताव के खिलाफ के प्रदर्शन करते पत्रकार (फोटो : राजेश खन्ना)

एक तरफ जहां सरकार दुनियाभर में कोविड 19 से संबंधित इंतजामों का दुनियाभर में डंका पीट रही है, वहीं स्वतंत्र पत्रकार इन दावों की पोल खोलते रहे, जाहिर है हमारी सरकार अपना विरोध किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकती और यही हुआ भी, 50 से अधिक स्वतंत्र पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया है.....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जुलाई के दूसरे सप्ताह में असम के एक टीवी पत्रकार राजीब सर्मा के घर रात में 2 बजे दस्तक हुई। दरवाजा खोलने पर सामने पुलिस वाले खड़े थे। पुलिस ने राजीब से कहा कि उन्हें इसी वक्त थाने पूछताछ के लिए चलना पड़ेगा। राजीब ने उनसे अनुरोध किया कि घर में बिधे और बीमार पिता की देखभाल के लिए कोई नहीं है, इसलिए पूछताछ यहीं कर लें या फिर थाणे आने के लिए सुबह तक का समय दे दें। पुलिस वाले नहीं माने और राजीब को उसी समय थाने लेकर आ गए। रात में हवालात में बंद कर दिया गया, अगले दिन दोपहर से शाम तक पूछताछ चलती रही। इस बीच उनके बीमार पिता की मृत्यु देखभाल के अभाव में हो गई।

छत्तीसगढ़ के तथाकथित नक्सल प्रभावित क्षेत्र दंतेवाडा के एक स्वतंत्र पत्रकार प्रभात सिंह को हाल ही में अनेक मित्रों और रिश्तेदारों ने बताया की सादी वर्दी में पुलिस का एक दल उनके बारे में जानकारियां जुटा रहा है और उनके घर के आसपास निगरानी कर रहा है। पुलिस उनके परिवार, मित्रों, मिलने जुलने वाले लोगों, व्यवसाय, आय के साधन, चल-अचल संपत्ति, बेटी के स्कूल, बैंक बैलेंस तक की जानकारी जुटा रही थी।

जब मित्रों ने यह सब विस्तार में बताया, तब 25 जुलाई को प्रभात सिंह ने सारी जानकारियों के साथ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को एक पत्र भेज कर सारी घटना की जानकारी दी। प्रभात सिंह का कहना है कि पुलिस के पास जरूर इस तरह का आदेश मख्यमंत्री के यहां से ही आया होगा, इसलिए वे स्वयं सारी जानकारियां उन्हें भेज रहे हैं और यदि आदेश उनके पास से नहीं आया होगा तब कम से कम मुख्यमंत्री को पुलिस की इस हरकत का पता तो चल जाएगा।

उत्तर प्रदेश में तो अपराधियों, हत्यारों और बलात्कारियों को संरक्षण देने वाली पुलिस पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर बर्बरता दिखाना ही अपना कर्तव्य समझती है। दरअसल कोविड 19 का यह दौर पत्रकारों के लिए सबसे कठिन दौर है। मेनस्ट्रीम पत्रकार तो अब जनता से जुडी रिपोर्टिंग भूल चुके हैं, लेकिन इस दौर में निष्पक्ष खबरें देने वाले स्वतंत्र पत्रकारों की एक नई पीढी आ गई है। जनता से जुड़े समाचार यही लोग सोशल मीडिया या छोटे न्यूज़ वेब पोर्टल से जनता तक पहुचाते हैं। कोविड 19 के दौर में आइसोलेशन सेंटर, अस्पतालों की बदहाली, बेरोजगारी और विस्थापितों के दर्द जैसे मुद्दे पर इन स्वतंत्र पत्रकारों ने विस्तृत रिपोर्टिंग की है।

एक तरफ जहां सरकार दुनियाभर में कोविड 19 पर नियंत्रण और इससे संबंधित इंतजामों का दुनियाभर में डंका पीट रही है, वहीं स्वतंत्र पत्रकार इन दावों की पोल खोलते रहे। जाहिर है हमारी सरकार अपना विरोध किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकती और यही हुआ भी। देश के अलग-अलग हिस्सों से 50 से अधिक स्वतंत्र पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया है या उन पर डंडे बरसाए गए या फिर पुलिस ने शिकायत दर्ज की है।

इनमें से किसी ने क्वारंटीन सेंटर की बदहाली बताई है, किसी ने प्रवासी मजदूरों की व्यथा का बयान किया है, किसी ने अस्पतालों की बदहाली की तस्वीर उजागर की है तो किसी ने राज्यों की सीमा पर अघोषित बंदिशों को उजागर किया है।

इन पत्रकारों पर गलत सूचना देने का, सरकारी आदेशों की अवहेलना और कोविड 19 से सम्बंधित गलत खबरें फैलाने के आरोप लगाए गए हैं। इनमें से कुछ मामलों में कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट ने दखल दिया है, पर अधिकतर मामलों में सुनने वाला कोई नहीं है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि कुल 180 देशों में हमारा देश प्रेस की आजादी के सन्दर्भ में 142वें स्थान पर है।

Next Story

विविध