कोर्ट के आदेशों के बहाने लोगों को उनके घरों से बेदखली का अभियान, जन संगठनों ने मांगा धामी सरकार से जवाब
Dehradun : आज 22 सितंबर को प्रेस क्लब देहरादून में आयोजित जन सम्मेलन में सैकड़ों आम लोगों के साथ प्रमुख विपक्षी दलों एवं विभिन्न जन संगठनों के प्रतिनिधियों इकट्ठे होकर मांग किया कि 2018 का मलिन बस्ती वाला कानून को विस्तार किया जाये और आगे बढ़ाया जाये जब तक मालिकाना हक़ या पुनर्वास के लिए सरकार अपना क़ानूनी फ़र्ज़ पूरा नहीं निभा रही है।
किसी को बेघर न किया जाये, ग्रामीण इलाकों में वन अधिकार कानून का अमल हो और जो जहां पर रह रहे हैं उनको हक़ दिया जाये, देहरादून के "एलिवेटेड रोड" जैसे विनाशकारी परियोजनाओं को रद्द किया जाये, पेड़ों की कटाई और पर्यावरण पर नुकसान पहुंचवाने वाले परियोजनों पर रोक लगायी जाये और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार नफरती एवं महिलाओं पर अत्याचार करने वाले अपराधियों पर सख्त कार्यवाही का व्यवस्था अपनाये। उन्होंने उत्तराखंड की जनता से अपील की कि वे इकट्ठे होकर इस पर आवाज उठाए और जो भी राजनेता, दल, या उमीदवार उनके पास आते हैं, उनसे इन मुद्दों के बारे में ज़रूर जवाब मांगे।
सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि सरकार अपना फ़र्ज़ न निभाकर कोर्ट के आदेशों के बहाने लोगों को बार—बार बेदखल और बेघर करने की कोशिश कर रही है। कानून के अनुसार शहरों, वन इलाकों और ग्रामीण इलाकों में लोगों को हक़ देना सरकार का फ़र्ज़ है, लेकिन बीजेपी सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा पायी है।
जनता के हक़ों पर और पर्यावरण एवं पेड़ों पर हनन कर सरकार चंद कंपनियों को फायदा पहुंचवाने के लिए प्रस्तावित "एलिवेटेड रोड" जैसे परियोजनाओं को बढ़ावा दे रही है। इनपर हज़ारों करोड़ खर्च करने के बजाय जन समस्याओं के असली हल पर सरकार कदम उठा दे और लोगों को स्वस्थ, शिक्षा और घर देने पर काम करे। साथ साथ में लगातार राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ता जा रहा है। महिलाओं पर अपराधें बढ़ रहे हैं और निष्पक्ष कार्यवाही करने के बजाय सत्ताधारी पार्टी एक तरफ अपने नेताओं को बचा रही है और दूसरी तरफ चमोली, कीर्तिनगर, देहरादून और अन्य जगहों में महिलाओं की सुरक्षा के बहाने नफरती हिंसा और दुष्प्रचार को फैला रही है। दोनों महिला विरोधी एवं नफरती अपराधियों को संरक्षण मिल रहा है।
उत्तराखंड क्रांति दल के लताफत हुसैन, कांग्रेस के राज्य प्रवक्ता शीशपाल सिंह बिष्ट, समाजवादी पार्टी की हेमा बोरा, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के जिला सचिव CP शर्मा, सीपीआई के राष्ट्रीय कौंसिल सदस्य समर भंडारी, समाजवादी लोक मंच के मुनीश कुमार, CITU के लेखराज, पूर्व बार कौंसिल अध्यक्ष रज़िया बैग, उत्तराखंड महिला मंच की कमला पंत, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल एवं सुनीता देवी, वन गुजर ट्राइबल युवा संगठन के मीर हमजा और बस्ती बचाओ समिति की प्रेमा ने सभा को संबोधित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय किसान सभा के राज्य महामंत्री गंगाधर नौटियाल और सीपीआई के समर भंडारी ने की। संचालन उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के महासचिव नरेश नौडियाल ने किया। कार्यक्रम में पप्पू कुमार, रमन पंडित, संजय साहनी, नरेंद्र, रहमत, विनोद बडोनी, राजेंद्र शाह, जगमोहन मेहंदीरत्ता समेत दर्जनों लोग शामिल रहे।
सम्मेलन में पारित हुआ प्रस्ताव
हम आज देहरादून और उत्तराखंड भर से इकट्ठे हुए विभिन्न संगठनों, दलों और क्षेत्रों के प्रतिनिधि उत्तराखंड की जनता से आव्हान करते हैं कि वे आगामी महीनों और सालों में इन बातों पर ध्यान रखे:
- 2016 का बस्ती वाला अधिनियम पर तुरंत अमल हो। बस्तियों को तोड़ने पर 2018 में जो रोक लगाया गया था, उसको आगे बढ़ाएं जब तक सरकार सब को हक़ नहीं दे देती या घर।
- सरकार कानून लाए कि वह किसी को बेघर न करेगी - जहाँ पर है वहां पर मालिकाना हक़ मिले या पुनर्वास सुनिश्चित करें।
- हर कोर्ट में सरकार यही पक्ष प्रस्तुत करे- कोर्ट के आदेशों का बहाना न बनाये।
- वन अधिकार कानून लागू करें, हर गांव और पात्र परिवार को अधिकार पत्र दे। वन अधिनियम 1927 (उत्तरांचल संशोधन) 2002 द्वारा वनाधिकारी को न्यायालय का अधिकार दिया गया है जो गैर संवैधानिक है, इसको रद्द किया जाये।
- देहरादून में प्रस्तावित "एलिवेटेड रोड" और अन्य बेज़रूरत, विनाशकारी परियोजनाओं को रद्द करे और ट्रैफिक की समस्याओं के लिए अच्छे बसें, यातायात का प्रबंधन पर कदम उठा दे।
- बढ़ती हुई गर्मी, आपदाएं से गरीब, महिलाऐं और मज़दूर सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। पर्यावरण और शहरों में पेड़ों को बचाना सरकार का पहली प्राथमिकताहोना चाहिए।
- महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार हर ब्लॉक में "वन स्टॉप सेंटर" व्यवस्था को लागू किया जाए। नफरती अपराधों और हिंसा को रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय के फैसलों के अनुसार राज्य भर में व्यवस्था बनाया जाये। राजनीतिक संबंध होने की वजह से अपराधियों को बचाया जा रहा है जो निंदनीय है।
हम उत्तराखंड की जनता से अपील हैं कि वे इन बातों पर संगठित होकर आवाज़ उठाएं और जो भी राजनेता, दल, या उमीदवार उनके पास आते हैं, उनसे इन मुद्दों के बारे में ज़रूर जवाब मांगे।