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आंदोलन

चंदौली के चकिया में आदिवासियों की 80 हेक्टेयर कृषि भूमि पर वन विभाग ने भारी पुलिस बल के साथ कब्जा कर रौंद दी थी खड़ी फसल, 10 अप्रैल को आक्रोश मार्च

Janjwar Desk
8 April 2023 10:45 AM IST
चंदौली के चकिया में आदिवासियों की 80 हेक्टेयर कृषि भूमि पर वन विभाग ने भारी पुलिस बल के साथ कब्जा कर रौंद दी थी खड़ी फसल, 10 अप्रैल को आक्रोश मार्च
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चंदौली के चकिया में आदिवासियों की 80 हेक्टेयर कृषि भूमि पर वन विभाग ने भारी पुलिस बल के साथ कब्जा कर रौंद दी थी खड़ी फसल, 10 अप्रैल को आक्रोश मार्च

वन विभाग ने बिना कोई नोटिस दिए अचानक भारी पुलिस बल के साथ क्षेत्र में धावा बोल दिया और लोगों में दहशत पैदा कर सरसों, चना, अरहर, मसूर, गेहूं आदि की उनकी खड़ी फसल को नष्ट कर दिया और उनके खेतों में खाई खोदनी शुरू कर दी....

विशद कुमार की रिपोर्ट

पिछले 29 जनवरी 2023 को उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले का चकिया तहसील से मात्र 15 किलोमीटर दूर वन क्षेत्र के आसपास के गांवों रामपुर, मुसाहीपुर, भभौरा, पीतपुर, केवलखाण कोठी, बहेलियापुर के गरीब व मेहनतकश किसानों की लगभग 80 हेक्टेयर कृषि योग्य उपजाऊ जमीन को वन विभाग द्वारा अपना बताते हुए जब्त कर लिया गया था।

वन विभाग ने बिना कोई नोटिस दिए अचानक भारी पुलिस बल के साथ क्षेत्र में धावा बोल दिया और लोगों में दहशत पैदा कर सरसों, चना, अरहर, मसूर, गेहूं आदि की उनकी खड़ी फसल को नष्ट कर दिया और उनके खेतों में खाई खोदनी शुरू कर दी। वनवासी किसानों ने पीढ़ियों से उस जमीन को जोतने व खेती करने का वन विभाग से दावा किया और कुछ ने अपने पट्टे भी दिखाए, लेकिन ताकत के मद में चूर वन विभाग व सरकारी नुमाइंदों ने उनकी एक न सुनी। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ये तो अभी ट्रेलर है, पूरी पिक्चर अभी बाकी है।

इस बाबत मेहनतकश मुक्ति मोर्चा, चंदौली ने एक पर्चा जारी कर कहा है कि पूरे मुसाखाड़, चकिया, नौगढ़ के वन क्षेत्र के गरीब व मेहनतकश जनता के ऊपर वन विभाग, सिंचाई विभाग व सरकार का अत्याचार बढ़ता जा रहा है। सरकार ने गरीब व मेहनतकश किसानों की जमीन के पट्टे निरस्त करने शुरू कर दिए हैं।

बता दें कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर, नेपाल बॉर्डर के तमाम जिलों, बुंदेलखंड, बिहार के कैमूर व रोहतास जिले और देश के तमाम राज्यों में सरकार व वन विभाग का आतंक आदिवासी व गैर आदिवासी, वनवासी जनता पर बढ़ता जा रहा है। कहीं बाघ अभ्यारण्य, कहीं गाछी व पेड़ लगाने के नाम पर तो कहीं खनन के लिए गांव के गांव उजाड़े जा रहे हैं। दरअसल जंगल तो बहाना है वास्तव में जंगल की सारी जमीन, पहाड़ आदि को खनन के लिए सरकार देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हवाले करना चाहती है। झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सरकार विदेशी कंपनियों और अडानी-अम्बानी-मित्तल-वेदांता जैसे देशी दलाल कंपनियों को पूरे जंगल.पहाड़ को खनन के लिए सौंप चुकी है या सौंप रही है, जिससे देश के इन राज्यों में आदिवासी, किसानों और राज्यसत्ता के बीच एक भीषण युद्ध छिड़ा हुआ है।

हाल ही में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में पीढ़ियों से रहते व खेती करते आ रहे 54 गांवों को अवैध बताकर उनको गांव व खेती की जमीन से बेदखल करने का आदेश जारी हो चुका है। कैमूर. रोहतास में बाघ अभ्यारण्य (टाइगर रिजर्व) के नाम पर आदिवासी व गैर आदिवासी जनता को उनकी जीविका के परम्परागत साधनों महुआ, पियार, लकड़ी आदि से वंचित किया जा रहा है। उनके ऊपर अत्याचार व दमन किया जा रहा है, ताकि वो जंगल.पहाड़ और अपना गांव छोड़कर चले जाएं।

इससे शासक वर्ग को दुहरा फायदा होगा। एक तो उन्हें अपनी लूट के लिए प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इलाके मिल जाएंगे, दूसरे इन इलाकों से हजारों गांवों के विस्थापित होने के बाद शहरों में उनको सस्ते मजदूर मिलेंगे, जो बेरोजगारी के कारण केवल दो टाइम भोजन पर भी काम करने को तैयार होंगे। एक तरह से गुलाम प्रथा की वापसी की मंशा के तहत सब कुछ हो रहा है।

केंद्र व राज्य की सरकारें खासकर मोदी-योगी की डबल इंजन की मनुवादी-फासीवादी सरकार अमेरिकी साम्राज्यवादियों के निर्देश पर जिस विकास मॉडल को देश की जनता पर थोप रही है वो विकास का नहीं विनाश का मॉडल है। यह मॉडल देश को कृषि प्रधान देश से कटोरा प्रधान देश बना देगी। यह विकास मॉडल विदेशी साम्राज्यवादियों, देशी दलाल बड़े पूंजीपतियों और सामंती जमींदारों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। मेहनतकश जनता को जातीय गोलबंदी की ओर धकेल कर जातियों और धर्मों में बांटकर, अलग.अलग जातियों के नेताओं को खरीदकर मेहनतकश जनता की एकता को खंड.खंड किया जा रहा है।

साम्राज्यवादी देशों व देश के दलाल शासक वर्गों के फायदे के लिए जल.जंगल-जमीन व श्रम को कौड़ियों के भाव नीलाम किया जा रहा है। तथाकथित विकास के नाम पर 1951 से लेकर आज तक 6.5 करोड़ लोगों को विस्थापित कर 4 करोड़ एकड़ जमीन केंद्र व राज्य की सरकारों द्वारा जनता से जबरदस्ती छीना गया है। उनमें से 10ः लोगों का भी पुनर्वास नहीं हुआ।

बता दें कि आज़मगढ़ में पिछले 6 महीनों से अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने के विरोध में आंदोलन चल रहा है। अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के नाम पर 8 गावों को उजाड़ा जा रहा है। जंगल व पहाड़ को कौन नष्ट कर रहा है यह जनता से छुपा नहीं है। वहीं बगल में ही अवस्थित अहरौरा, नौगढ़, सोनभद्र, बुंदेलखंड के हरे भरे पहाड़ व जंगल उजाड़ गए हैं। सवाल यह उठता है कि क्या इन पहाड़ों व जंगलों को जनता काट ले गई? जवाब साफ है नहीं! दरअसल वहां वन विभाग व सरकार की सहमति से क्रेसर प्लांट व लकड़ी कटाई का प्लांट लगाकर पूंजीपतियों व ठेकेदारों ने जंगल.पहाड़ को उजाड़ दिया है। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य के घने जंगलों को आदिवासी जनता के तमाम विरोध के बावजूद अडानी को प्रस्तावित खनन के लिए काटा जा रहा है। यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है।

मुग़लसराय-पचफेडवा से कलकत्ता तक माल ढुलाई के लिए 610 किलोमीटर का एक्सप्रेसवे बनाया जा रहा है, जिस पर आप अपना वाहन भी नहीं चढ़ा सकते। इस एक्सप्रेसवे पर टोल टैक्स देकर केवल लंबी दूरी की गाड़ियां चढ़ेंगी। सैकड़ों गांव व लाखों एकड़ बहुफसली जमीन देशी.विदेशी लुटेरी कंपनियों के भेंट चढ़ जाएगी।

पर्चें में साफ तौर कहा गया है कि इस देश की शांति पसंद जनता को युद्ध की आग में झोंका जा रहा है। यह सैकड़ों सिक्स लेन सड़कें, फ्रेड कॉरिडोर, हवाई अड्डे, बंदरगाह जनता की सुविधा के लिए नहीं बल्कि जंगलों-पहाड़ों से खनिज संपदा को लूटकर ट्रकों, ट्रेनों, जहाजों व जल मार्गों से जापान, अमेरिका व यूरोपीय देशों के पूंजीपतियों तक पहुंचाने के लिए बनाए जा रहे हैं। लूट से मिली दलाली का एक हिस्सा तमाम जातियों के नेताओं, धर्मगुरुओं, मीडिया संस्थानों, पार्टियों को देकर उन्हें अपनी ओर मिला लिया गया है, ताकि वो असली मुद्दों पर बात न करें और जनता को जाति.धर्म के मुद्दों पर गुमराह करें व जातीय और धार्मिक उन्माद को तेज करें।

पर्चे में अपील की गई है कि वक़्त आ गया है कि हम इस अन्याय व अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाएं। चकिया तहसील के वन क्षेत्रों की जनता से मेहनतकश मुक्ति मोर्चा यह कहना चाहता है कि आज जो लूट, अत्याचार व जबरदस्ती वन विभाग व सरकार द्वारा मुसाहीपुर, रामपुर, भभौरा, पीतपुर आदि के गांवों की जनता के साथ किया जा रहा है, वो बहुत जल्द ही और बहुत तेज गति से आप के साथ भी होने वाला है। आज अगर आप चुप रहे तो कल आपके पक्ष में भी कोई बोलने वाला नहीं होगा। अतः आज़ादी और अधिकार भीख मांगने से नहीं मिलते और न ही 5 वर्ष पर म्टड मशीन पर ठप्पा लगाने से मिलते हैं। उसके लिए संघर्ष करना पड़ता है।

पिछले 75 सालों से बहुत सी पार्टियां आयीं और गयीं, लेकिन मेहनतकश जनता की ज़िंदगी में कोई भी उल्लेखनीय बदलाव नहीं हुआ। अब तो मोदी.योगी की फासीवादी सरकार ने चुनाव आयोग, न्यायपालिका, सेना, सीबीआई, मीडिया जैसी सारी संस्थाओं पर कब्जा जमा लिया है। सड़क पर उतरकर लड़ाकू संघर्ष छेड़ने के अलावा जनता के पास और कोई चारा नहीं बचा है।

मेहनतकश मुक्ति मोर्चा की मांगें

1. रामपुर, मुसाहीपुर, भभौरा, पीतपुर, केवलखाण कोठी, बहेलियापुर आदि गांवों की जनता की छीनी गई कृषि योग्य उपजाऊ जमीन को वन विभाग व सरकार तत्काल वापस करो।

2. चकिया व नौगढ़ तहसील के वन क्षेत्र में खेती कर रहे वनवासी, आदिवासी व मेहनतकश किसानों के आवासीय और खेती की जमीन का स्थायी पट्टा और खतौनी दो।

3. वन विभाग, सिंचाई विभाग, जिला प्रशासन व सरकार वनवासी व गरीब-मेहनतकश किसान जनता को पुलिस बल का इस्तेमाल कर डराना-धमकाना बंद करो।

इन तमाम मुद्दों को लेकर मेहनतकश मुक्ति मोर्चा द्वारा अगामी 10 अप्रैल को चकिया तहसील में आक्रोश मार्च, धरना व जनसभा का आयोजन किया गया है।

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