400 से अधिक वैज्ञानिकों-शिक्षाविदों ने शांतिपूर्ण आंदोलनों को कुचलने के खिलाफ उठायी आवाज
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पांडेय की टिप्पणी
जनज्वार। संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड मेटेरियोलौजी आर्गेनाईजेशन द्वारा प्रकाशित स्टेट ऑफ़ क्लाइमेट रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 को भले ही कोविड 19 के वैश्विक प्रभाव का वर्ष के तौर पद किया जा रहा हो, पर जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि से सम्बंधित हरेक पैमाने पर सबसे अधिक प्रभावित वर्ष भी रहा है।
इस वर्ष पृथ्वी का औसत तापमान अभूतपूर्व रहा, वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा, महासागरों का तापमान इतना बढ़ गया कि उनमें लगातार हीट वेव की घटनाएं होती रहीं, चरम प्राकृतिक आपदाएं सर्वाधिक और हरेक महाद्वीप पर देखी गईं और इस कारण दुनिया में पर्यावरण से सम्बंधित आबादी के पलायन करने वालों की संख्या सर्वाधिक रही। सबसे बड़ी चिंता यह है कि पूरी दुनिया तापमान वृद्धि को रोकने के प्रति सजग अभी तक नहीं हो रही है।
तापमान वृद्धि के बारे में सजग होना तो दूर, सरकारें तो इस सन्दर्भ में किये जा रहे शांतिपूर्ण आन्दोलनों को भी कुचल रही है और आन्दोलनकारियों का दमन कर रही है, उन्हें अपराधी और आतंकवादी बता रही है। पूरी दुनिया में यही सिलसिला चल रहा है, जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि को रोकने के सन्दर्भ में सचेत करते आन्दोलनकारी सरकारों और पूंजीपतियों की आँखों की किरकिरी बन चुके हैं – इनकी हत्या की जा रही है, इन्हें कैद किया जा रहा है और अनेक मामलों में इनका चरित्र हनन भी किया जा रहा है।
अब भारत समेत दुनिया के 32 देशों के 400 से अधिक वैज्ञानिक और शिक्षाविद सरकारों के इस रवैय्ये के विरोध में अपनी आवाज उठा रहे हैं। इन वैज्ञानिकों ने एक खुले पत्र Open Letter: Stop attempts to criminalise nonviolent climate protest के माध्यम से दुनिया की सरकारों से आग्रह किया है कि वे शांतिपूर्ण आन्दोलनों को कुचलना बंद करें और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए गंभीरता से पहल करें।
कुल 429 वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों में से 14 ऐसे हैं जो इन्टरगवर्नमेंटल पैनेल ऑन क्लाइमेट चेंज की जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सम्बंधित रिपोर्ट में अपना सहयोग दे चुके हैं। भारत के 2 शिक्षाविदों के नाम भी इनमें शामिल हैं – आईआईएम अहमदाबाद के डॉ राममोहन तुरंगा और कोलकता स्थित जेआईएस यूनिवर्सिटी के डॉ अतनु भट्टाचार्य।
वैज्ञानिकों ने इस पत्र में शांतिपूर्ण आन्दोलनकारियों के विरुद्ध सरकार और पुलिस की ज्यादतियों के अनेक उदाहरण भी दिए हैं। भारत में किसान आन्दोलन टूलकिट का नाम देकर जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में सरकार की नाकामियों को उजागर करने वाली बंगलुरु की पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ्तारी का भी जिक्र है।
यूनाइटेड किंगडम की सरकार, विशेष तौर पर गृह मंत्री प्रीती पटेल, लगातार वहां जलवायु परिवर्तन के सम्बन्ध में सरकार पर दबाव डालने के लिए किये जा रहे आन्दोलनों को अपराध की श्रेणी में रखती हैं और आन्दोलनकारियों पर तमाम मुकदमें दायर करवाती हैं।
प्रीती पटेल ने अनेक मौकों पर इन शांतिपूर्ण आन्दोलनकारियों को हिंसक, अराजक और अपराधी कहा है। वहा एक्सटीशन रेबेलियन नामक समूह लगातार इस तरह के शांतिपूर्ण आन्दोलन करता रहा है, इसके आदर्श भारत के महात्मा गाँधी हैं और सविनय अवज्ञा इस आन्दोलन का प्रमुख हथियार है।
यूनाइटेड किंगडम में जलवायु परिवर्तन पर सरकार की नाकामी उजागर करने वाले 2000 से अधिक आन्दोलनकारियों पर अनेक मुकदमे दायर किये गए हैं और सरकार चाहती है कि इन्हें गंभीर सजा दी जाए। अमेरिका के अनेक राज्यों में भी जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध सनराइज मूवमेंट नामक युवाओं का संगठन सक्रिय है, और इसने वर्तमान राष्ट्रपति जो बाईडेन के राष्ट्रपति चुनावों के समय उनका समर्थन किया था।
कुछ राज्य जहां ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी का वर्चस्व है, ने अब पर्यावरण से सम्बंधित आन्दोलनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया है, फिलीपींस में पर्यावरण आन्दोलनकारियों पर आतंकवाद से सम्बंधित मुकदमें चलाये जाते हैं, और फ्रांस ने वर्ष 2019 से हरेक तरीके के आन्दोलनों को प्रतिबंधित कर दिया है।
अनेक वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन की समस्या इसलिए गंभीर होती जा रही है क्योंकि पूरी दुनिया पूंजीवाद की चपेट में है, और पूंजीवाद का मकसद त्वरित मुनाफा और सारे संसाधनों पर अधिकार रहता है। लगभग हरेक देश की सरकारें इन्हीं पूंजीवादियों के सहयोग से सत्ता में पहुँचती हैं। पूंजीवादियों ने मिलकर अनेक दशकों तक जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित अफवाहों का जाल बुना और इसे हरेक माध्यम से खूब प्रचारित किया।
इन अफवाहों के अनुसार जलवायु परिवर्तन दुनिया के विकास को रोकने की साजिश है, यह एक कोरी कल्पना है और यह पूरी तरह से प्राकृतिक है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं, वैज्ञानिकों और प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल ने भी इस काम में पूंजीपतियों का साथ निभाया। पर, अब यह तरीका काम नहीं कर रहा है, क्योंकि दुनिया की अधिकतर आबादी अब जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के प्रभावों की चपेट में है। जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित आन्दोलनों को कुचलना अब इन पूंजीपतियों की अगली साजिश है, जिससे इस बारे में जनता बोलना बंद कर दे।
पूंजीपतियों के सहयोग से सत्ता में बैठी सरकारें, जाहिर है पूंजीपतियों के अजेंडा का ही समर्थन करेंगे। जितने भी देश वैश्विक पटल पर जलवायु परिवर्तन पर अपनी गंभीर प्रतिबद्धता जाहिर करते रहते हैं, उन सभी देशों में पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधित आन्दोलनकारियों से अपराधियों और आतंकवादियों की तरह वर्ताव किया जा रहा है।
भारत, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम का उदाहरण सबके सामने है। अमेरिका में राष्ट्रपति इस महीने के अंत तक दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकतों, जिसमें भारत भी शामिल है, के साथ जलवायु परिवर्तन को रोकने पर गहन चर्चा करने वाले हैं, पर वहीं के कुछ राज्य पर्यावरण संरक्षण की आवाज बुलंद करने वाले आन्दोलनकारियों से आतंकवादी जैसा व्यवहार करते हैं। यूनाइटेड किंगडम इस वर्ष के अंत में जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित वैश्विक सम्मलेन, सीओपी-26 आयोजित करने की तैय्यारी कर रहा है और वहां 2000 से अधिक आन्दोलनकारियों पर मुकदमे किये जा रहे हैं। भारत की स्थिति से तो सभी अवगत हैं, यहाँ के आन्दोलनकारी माओवादी, नक्सल, राष्ट्रद्रोही तक करार दिए जाते हैं या फिर गोलियों से भून दिए जाते हैं।
इस खुले पत्र में वैज्ञानिकों ने लिखा है कि तमाम अनुसंधानों और अध्ययनों के बाद भी जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में जनता और सरकारों में जागरूकता वैज्ञानिक जगत नहीं पैदा कर पाया, यह काम आन्दोलनकारियों ने किया है। जलवायु परिवर्तन पृत्वी पर मनुष्य के अस्तित्व को ही प्रभावित कर रहा है। यह दुखद है की आन्दोलनकारी अपने ही देश को बचाने की पहल कर रहे हैं, पर सरकारें उन्हें आतंकवादी और अपराधी करार दे रही है। यह सरकारों का जलवायु परिवर्तन पर अकर्मण्यता के अलोकतांत्रिक तरीके का नया आयाम है।