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आंदोलन के 7 महीने पर इंदौर में कमिश्नर कार्यालय पर आंदोलन, अब तक 500 से ज्यादा किसान शहीद

Janjwar Desk
26 Jun 2021 5:35 PM GMT
आंदोलन के 7 महीने पर इंदौर में कमिश्नर कार्यालय पर आंदोलन, अब तक 500 से ज्यादा किसान शहीद
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कमिश्नर कार्यालय पर चले 1 घंटे तक के प्रदर्शन में कार्यकर्ताओं ने की नारेबाजी

भोपाल और इंदौर में किसान नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का विरोध, तीनों कृषि कानूनों, श्रम संहिता वापस लिए जाने और महंगाई पर रोक लगाने की मांग को लेकर राष्ट्रपति के नाम भेजा गया ज्ञापन...

इंदौर, जनज्वार। संयुक्त किसान मोर्चे द्वारा आपातकाल के 46 वर्ष पूरे होने तथा वर्तमान किसान आंदोलन के 7 माह पूरे होने के अवसर पर संयुक्त किसान मोर्चे के देशव्यापी आह्वान खेती बचाओ-लोकतंत्र बचाओ आंदोलन के तहत् कमिश्नर कार्यालय पर विभिन्न किसान संगठनों और श्रम संगठनों के कार्यकर्ताओं ने प्रभावी प्रदर्शन किया और तीनों किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने, श्रम संशोधन रद्द करने और महंगाई पर रोक लगाने की मांग की।

कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए अखिल भारतीय किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, अ.भा. खेत मजदूर यूनियन, किसान खेत मजदूर संगठन, किसान संघर्ष समिति, एटक, इंटक, सीटू, एचएमएस, श्रम संगठनों की संयुक्त अभियान समिति और अन्य जन संगठनों से जुड़े कार्यकर्ता आज 26 जून को 12ः00 बजे से ही कमिश्नर कार्यालय पर एकत्रित हो गए थे। कमिश्नर कार्यालय पर चले 1 घंटे तक के प्रदर्शन में कार्यकर्ताओं ने बड़ी देर तक नारेबाजी की और राज्य एवं केन्द्र सरकार की किसान-मजदूर विरोधी नितियों के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार किया।

प्रदर्शनकारियों की सभा को वरिष्ठ मजदूर नेता श्री श्याम सुंदर यादव, किसान सभा के अरुण चौहान, कैलाश लिंबोदिया, एचएमएस के प्रदेश अध्यक्ष हरिओम सूर्यवंशी, किसान संघर्ष समिति के रामस्वरूप मंत्री, किसान खेत मजदूर संगठन के प्रमोद नामदेव, एटक के रूद्रपाल यादव, सीटू के सी एल सारावत, लक्ष्मीनारायण पाठक सहित कई वक्ताओं ने संबोधित करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चैहान की सरकार मजदूरों, किसानों पर लगातार कुठाराघात कर रही है। इस सरकार के चलते किसान और मजदूर दलित आदिवासी, अल्प संख्यक समाज, लघु व्यापारी सहित हर वर्ग परेशान है और आज संघर्ष के मैदान में हैं, लेकिन सरकार लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन करते हुए आंदोलनकारियों से बातचीत करने तक तैयार नहीं है। इसी के चलते आज पूरे देश भर में किसान और श्रम संगठन मिलकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

राज्यों की राजधानियों में जहां राजभवन का घेराव हो रहा है, वहीं जिला मुख्यालयों पर भी प्रदर्शन हो रहे हैं इन प्रदर्शनों को रोकने के लिए कार्यकर्ताओं नेताओं की गिरफ्तारी करने तक की कोशिश यह सरकार कर रही है। भोपाल में प्रदर्शन के पूर्व जहां नेताओं की गिरफ्तारी हुई है, वहीं इंदौर में भी गांवों से इस प्रदर्शन के लिए आने वाले लोगों को रोका गया और उन्हें पुलिस थाने पर रोका गया।

सभी वक्ताओं ने सरकार की इस शर्मनाक कार्यवाही का घोर विरोध किया। किसान नेताओं ने कहा कि किसान सरकार से दान नहीं मांगते हैं अपनी मेहनत का सही दाम मांगते हैं। फसल के दाम में किसानों से लूट के कारण खेती घाटे का सौदा बन गई, किसान कर्ज में डूब गए, विगत वर्षों में 4 लाख से अधिक किसानों को आत्म हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसलिए किसानों द्वारा डाॅ. स्वामीनाथन आयोग के हिसाब से फसल के (C2+50%) न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पूरी फसल की खरीदी की गारंटी मिल जाए। इस पर अपना वादा पूरा करने के बजाय सरकार ने दूगनी आय जैसे झूठे जुमले महामहिम राष्ट्रपति के भाषण में डालकर उनके पद की गरिमा को कम किया।

पिछले सात महीनों में भारत सरकार ने किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए लोकतंत्र की हर मर्यादा की धज्जियां उड़ाई है। किसानों की मन बात सुनने के बजाय उन्हें कुर्सी के मन की बात सुनाई है। बातचीत की रस्म अदायगी की, फर्जी किसान संगठनों के जरिये किसान संगठनों को तोड़ने के कोशिश की। आंदोलन में 500 से ज्यादा किसान साथी शहीद हो गए।

राष्ट्रपति जी आपने सबकुछ देखा होगा और चुप रहे। इमरजेंसी की तरह आज भी अनेक देशभक्त बिना किसी अपराध के जेलों में बंद हैं। विरोधियों का मुंह बंद रखने के लिए यूएपीए जैसे खतरनाक कानूनों का दूरपयोग हो रहा है। मिडिया और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है। मानव अधिकारों का माखोल बन चुका है। बिना इमरजेंसी घोसित किये हर रोज लोकतंत्र का गला घोटा जा रहा है। ऐसे में संवधानिक मुखिया के रूप में आपकी बड़ी जिम्मेदारी बनती है।

सभा और प्रदर्शन के बाद कार्यकर्ताओं ने बड़ी देर तक नारेबाजी की और राष्ट्रपति के नाम अधिकारियों को ज्ञापन देना चाहते थे, लेकिन कार्यालय में कोई अधिकारी मौजूद नहीं होने पर कार्यकर्ताओं ने ज्ञापन को संभागायुक्त के दरवाजे पर चस्पां कर दिया। ज्ञापन में 3 किसान विरोधी कानून रद्द करने, बिजली संशोधन बिल 2020 वापस लेने तथा सभी कृषि उत्पादों की लागत से डेढ़ गुना दाम पर खरीद की कानूनी गारंटी और श्रम कानूनों की बहाली तथा चारों श्रम संहिताओं को रद्द करने, लाॅकडाउन की विकट परिस्थितियों में घरेलू व कृषि कनेक्शनों पर लघु व्यापारियों के 6 माह के बिजली बिल माफ किये जाए।

पेट्रोल-डीजल के दाम कम किये जाए साथ ही महंगाई को सख्ती से रोका जाए। दलित-आदिवासी, ग्रामीणों को उनके कब्जे की कृषि और वन एवं आवास की भूमि से जा रही अवैध बेदखली, फसलें नष्ट करने की अशोभनीय कार्यवाही पर तत्काल रोक लगाई जाए। ऐसे समस्त कब्जों को नियमित कर उन्हें प्रधानमंत्री घोषणा अनुसार मौका-कब्जा के आधार पर मालिकाना हक दिया जाए। जंगल विभाग व अन्य सरकारी जमीनों को कार्पोरेट जगत के पूंजिपतियों को दिये जाने की कर्यावाही पर सख्ती रोक लगाई जाए।

जल, जंगल व जमीन को बचाने की हर संभव कोशिश की जाए। अति वर्षा व अन्य कारणों से नष्ट हुई फसलों का तत्काल मुआवजा किसानों को दिलवाया जाए। गैर आयकर दाताओं को 6000 रूपये प्रतिमाह 10 माह तक दिया जाए। माननीय राष्ट्रपति जी संयुक्त किसान मोर्चे के बेनर तले चल रहा यह ऐतिहासिक किसान-मजदूर आंदोलन खेती ही नहीं देश में लोकतंत्र को बचाने का आंदोलन भी बन गया है। हम उम्मीद करते हैं कि इस पवित्र मुहिम में आपका पूरा समर्थन मिलेगा। माननीय आपने सरकार नहीं संविधान बचाने की शपथ ली है।

आंदोलन में मुख्य रूप से प्रदर्शन में प्रमुख रूप से अरुण चौहान, कैलाश लिम्बोदिया, हरिओम सूर्यवंशी, रूद्रपाल यादव, रामस्वरूप मंत्री, प्रमोद नामदेव, जयप्रकाश गुगरी, पूर्व पार्षद सोहनलाल शिंदे, अरविंद पोरवाल, खेत मजदूर यूनियन से राजू जरीया, आदिवासी एकता महासभा की ओर से जितेन्द्र महोरे, विनोद सोलंकी, सुनील भील, काशीराम नायक, भगतसिंह यादव, सीटू के भागीरथ कछवाय, कामरेड मारोतकर, कामरेड झाला, सत्यनारायण वर्मा, इंटक के लक्ष्मी नारायण पाठक, माताप्रसाद मौर्य, धीरज अग्रवाल, खेत-मजदूर नेता शेतान माँ सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता शरीक थे।

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