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150 साल बाद मुगल सल्तनत के आखिरी चिराग की विधवा ने ठोका लाल किले पर दावा तो कोर्ट ने की ये टिप्पणी!

Janjwar Desk
21 Dec 2021 5:06 PM IST
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(मुगल सल्तनत की विधवा ने ठोका लाल किले पर दावा)

याचिकाकर्ता सुल्ताना बेगम ने कहा कि वह बहादुर शाह जफर के पड़पौत्र मिर्जा मोहम्मद बेदार बख्त की पत्नी हैं, जिनका 22 मई 1980 को निधन हो गया था...

Red Fourt : दिल्ली के लाल किले (Red Fourt Delhi) को भले ही राष्ट्र की धरोहर माना जाता है, लेकिन एक महिला ने इस पर हक जताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। दिल्ली हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर महिला ने दावा किया था कि वह मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर (Bahadur Shah Zafar) के प्रपौत्र की विधवा हैं। इसलिए वह परिवार की कानूनी वारिस होने के नाते लाल किले पर मालिकाना हक रखती हैं।

इस याचिका में महिला ने खुद को लाल किले की कानूनी वारिस बताते देते हुए उसे इसका मालिकाना हक सौंपने का अनुरोध किया था। हालांकि, अदालत ने यह याचिका खारिज कर दी। महिला ने अपनी याचिका में कहा कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अवैध तरीके से लाल किले को अपने कब्जे में लिया था और उसे इसका मालिकाना हक सौंपा जाए।

याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की एकल पीठ ने कहा कि 150 से अधिक वर्षों के बाद अदालत का दरवाजा खटखटाया गया और इसका कोई औचित्य नहीं है। इस तरह महिला के रोचक दावे को अदालत ने खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता सुल्ताना बेगम ने कहा कि वह बहादुर शाह जफर के पड़पौत्र मिर्जा मोहम्मद बेदार बख्त की पत्नी हैं, जिनका 22 मई 1980 को निधन हो गया था।

न्यायाधीश की टिप्पणी

याचिकाकर्ता ने कहा कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुगल शासक से मनमाने तरीके से जबरन उनके अधिकार छीन लिए थे। न्यायाधीश ने कहा, 'मेरा इतिहास का ज्ञान बेहद कमजोर है लेकिन आपने दावा किया कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा वर्ष 1857 में आपके साथ अन्याय किया गया। फिर इसमें 150 वर्षों की देरी क्यों हुई? इतने सालों तक आप क्या कर रही थीं?'।

लाल किले की संरचना?

दिल्‍ली का लाल किला देश ही नहीं, बल्कि दुनिया की खूबसूरत और ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। इसका निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने कराया था। ऐसी जानकारी है कि शाहजहां के समय के अग्रणी वास्तुकार उस्ताद हामिद और उस्ताद अहमद ने 1638 में इसका निर्माण शुरू किया था। करीब दस सालों तक लगातार काम करते हुए इस किले का निर्माण 1648 में पूरा हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण उस समय किया गया शाहजहां ने जब ने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय लिया था।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, इमारत के कुछ हिस्से चूने के पत्थर से बने थे, लेकिन कुछ सालों बाद इसे अंग्रेजों ने लाल रंग से रंग दिया और तब से इसे रेड फोर्ड या लाल किला कहा जाने लगा. इसमें दो मुख्‍य दरवाजे हैं पहला दिल्‍ली गेट, जिससे आम नागरिकों को आने की अनुमति है. दूसरा गेट लाहौर गेट कहलाता है, जिससे वीआईपी अंदर आते हैं।

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