इस्तीफा देने वाले शिक्षा मंत्री के भाई ने कहा 'भैया की छवि-प्रतिष्ठा बचाने के लिए कर रहा हूँ त्याग'
(उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी इस्तीफे की जानकारी)
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
जनज्वार। उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी के भाई ने सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के छठवें दिन ही इस्तीफा दे दिया। गरीब के कोटे से असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी हासिल करने की खबर के बाद से ही विपक्ष के हमले से घिरी योगी सरकार की फजीहत होते देख अपने मंत्री भाई के कहने पर असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी छोड़नी पड़ी।
असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अरुण कुमार द्विवेदी ने आज यहां सिद्धार्थ नगर जिला मुख्यलय पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए अपने इस्तीफे की जानकारी दी। खास बात यह है कि इस प्रेस कांफ्रेंस की सूचना भाजपा के मीडिया प्रभारी ने दी थी। ऐसे में यह कहा जा रहा है कि डॉ. अरुण का इस्तीफा देने का निर्णय स्वय मात्र का नहीं था।
हालांकि प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉक्टर अरुण ने कहा कि 21 मई को नियुक्ति पाने के बाद से ही हमारे बड़े भाई बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद दुबे की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा था । अपने भाई की इमानदार व स्वच्छ छवि के बावजूद उन पर लग रहे बेबुनियाद आरोप हमारे लिए पीड़ादायक है । बड़े भाई की सामाजिक राजनीतिक प्रतिष्ठा के आगे हमारी नौकरी कुछ भी नहीं है ।ऐसे में हमने इस्तीफा दिया है। पत्रकारों से वार्ता के दौरान अरुण भावुक हो गए व आंसू छलक पड़े।
नियुक्ति को लेकर लगातार बढ़ रहा था विरोध
सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति को लेकर आरोपों से घिरे बेसिक शिक्षा मंत्री और कुलपति विपक्ष के बीच निशाने पर रहे। यह आरोप था कि ईडब्ल्यूएस कोटे के एकमात्र एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर विश्वविद्यालय को कोई सामान्य वर्ग में गरीब अभ्यर्थी नहीं मिला और बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी के सगे भाई की नियुक्ति कर दी गई। अपनी रसूख का लाभ उठाते हुए बेसिक शिक्षा मंत्री ने अपने भाई का चयन करा लिया और बदले में कुलपति के समाप्त हुए कार्यकाल को आगे बढ़ाने में मदद पहुंचाई।
नियुक्ति को लेकर ऐसे शुरू हुआ विवाद
सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग में दो एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर रिक्तियां निकली थीं, जिसमें एक पद ईडब्ल्यूएस व दूसरा ओबीसी के लिए आरक्षित है। ईडब्ल्यूएस के पद पर इटवा तहसील के शनिचरा निवासी डॉ. अरुण कुमार द्विवेदी की नियुक्ति हुई ।
मानकों के अनुसार ईडब्ल्यूएस के लिए पात्रता यह है कि वार्षिक आय 8 लाख रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए। साथ ही खेती योग्य जमीन पांच एकड़ तक व मकान एक हजार वर्ग फुट तक हो, जबकि शहरी क्षेत्र में 900 वर्ग फुट से अधिक आवासीय भूमि न हो। खास बात है कि अरुण कुमार द्विवेदी सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में आवेदन करने के पूर्व से ही राजस्थान के वनस्थली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत रहे हैं। उच्च वेतनमान के बाद भी इनका अल्प आय वर्ग का प्रमाण पत्र जारी हो गया। लेखपाल छोटई प्रसाद ने इस बारे में पहले कहा कि 'मैंने कोई प्रमाणपत्र जारी करने के संबंध में रिपोर्ट नहीं लगाई थी', लेकिन बाद में रिपोर्ट लगाने की बात स्वीकार करते हुए वर्ष 2019 में अरुण द्विवेदी कि वार्षिक आय आठ लाख रुपए से कम होने की बात की थी।
दूसरी तरफ कुलपति डॉ. सुरेंद्र दुबे का कार्यकाल बढ़ाने में बेसिक शिक्षा मंत्री द्वारा मदद किए जाने की बात कही जा रही थी। कुलपति का कार्यकाल 21 मई को समाप्त हो रहा था। इसके एक दिन पूर्व अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए कुलाधिपति सुश्री आनंदीबेन पटेल ने नियमित कुलपति की तैनाती होने तक इनके कार्यकाल को विस्तारित कर दिया। कुलपति ने इसी लाभ का ऋण बेसिक शिक्षा मंत्री को चुकाया है।
सोशल एक्टिविस्ट और बर्खास्त आईपीएस अमिताभ ठाकुर की पत्नी नूतन ठाकुर ने राज्यपाल से शिकायत करते हुए सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई की नियुक्ति नियम प्रक्रिया को ताक पर रखने का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की थी। आम आदमी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष व प्रवक्ता इंजीनियर इमरान लतीफ ने बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई की नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए कहा था कि राजनीतिक रसूख के बल पर सामान्य वर्ग के एक गरीब अभ्यर्थी का हक छीना गया है।
सिद्धार्थ नगर सपा जिलाध्यक्ष लालजी यादव ने आरोप लगाया था कि नियुक्ति असंवैधानिक है। मंत्री के संयुक्त परिवार में पैतृक खेती तथा अभ्यर्थी की खुद पत्नी बिहार में डिग्री कॉलेज में शिक्षक होने के बाद भी ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र कैसे जारी हो गया। कांग्रेस जिलाध्यक्ष काजी सुहैल अहमद ने भर्ती की उच्च स्तरीय जांच की मांग की थी।
बसपा जिलाध्यक्ष दिनेश चंद्र गौतम ने कहा था कि आपदा को अवसर में बदलने की बात करने वाले नियमों को ताक पर रखकर खूब लाभ उठा रहे हैं। सरकार में भ्रष्टाचार का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है। इस प्रकरण की जांच कराई जाए व दोषियों के खिलाफ कार्रवाई हो। वहीं स्वपोषित व वित्तविहीन महाविद्यालय शिक्षक एसोसिएशन के प्रवक्ता डॉक्टर चतुरानन ओझा ने आरोप लगाया था कि मौजूदा सरकार में विश्वविद्यालय द्वारा किसी नैतिकता व कानून के पालन की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी को लेकर अरूण ने ऐसे किया प्रयास
बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी के भाई अरुण कुमार कुमार द्विवेदी चार भाइयों में से एक हैं। यह सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के पूर्व राजस्थान के वनस्थली विद्यापीठ में नौकरी करते थे। यहां असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में मासिक सैलरी 70 हजार से अधिक रही। बेसिक शिक्षा मंत्री के इस संयुक्त परिवार में चार भाइयों के अलावा मां है, जिन पर पैतृक भूमि के रूप में 36 बीघा जमीन है। इसके अलावा गांव पर आलीशान मकान।
वर्ष 2019 में सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की वैकेंसी आने पर अरुण आवेदन करते हैं। यहां दो पदों में एक ईडब्ल्यूएस व दूसरा अति पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित रहता है। ऐसे में अपनी बेहतर मासिक आय व पैतृक संपत्ति के बाद भी अरुण अपने नाम ईडब्ल्यूएस का प्रमाणपत्र जारी करा लेते हैं। दो वर्ष तक चली चयन की लंबी प्रक्रिया के बीच 21 मई 2021 को आखिरकार ये नियुक्ति हासिल कर लेते हैं।
इस बीच सोशल मीडिया पर यह चर्चा शुरू हो जाती है कि करोड़ों रुपए की जमीन 2 वर्ष में मात्र सिद्धार्थ नगर जनपद में खरीदी गई है। जिसमें बिशुनपुर, इटवा बिस्कोहर रोड पर विशुनपुर सैनी में 8 बीघा जमीन, इटवा डुमरियागंज रोड पर भारत पैट्रोल पंप के पीछे 1 बीघा आवासीय जमीन, इटवा डुमरियागंज रोड पर पूर्व विधायक स्वयम्वर चौधरी के घर के बगल में एनएच पर 1 बीघा आवासीय जमीन शामिल हैं। सतीश चंद द्विवेदी उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री खुद सिद्धार्थ नगर के एक डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर भी हैं।
सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में नौकरी पाने वाले अरुण दिवेदी जहां पहले से वनस्थली विद्यापीठ में असिस्टेंट प्रोफेसर थे, वहीं उनकी पत्नी बिहार के मोतिहारी एमएस डिग्री कॉलेज में लेक्चरर हैं। यह भी पूर्व में वनस्थली विद्यापीठ में तैनात रही हैं। इसके बाद 2017 में बीपीएससी के माध्यम से चयन होने पर मोतिहारी डिग्री कॉलेज में कार्यरत हैं। अरुण के सबसे छोटे भाई अनिल परिषदीय विद्यालय में अध्यापक हैं। इसके बाद भी अरुण के नाम ईडब्ल्यूएस का प्रमाण पत्र जारी हो जाता है।
निर्णय को लेकर राजभवन पर थी सबकी नजर
नियमों को ताक पर रखकर बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई की तैनाती को विपक्ष द्वारा मुद्दा बनाए जाने व सोशल मीडिया पर परस्पर विरोधी चर्चाओं के बाद यह मामला अब राजभवन तक पहुंच गया था। इस संबंध में राजभवन से रिपोर्ट मांगी गई थी, जिसे कुलपति सुरेंद्र दुबे ने भेजा था। जिसमें बिंदुवार आरोपों के जवाब मांगे गए थे।इस बीच राजभवन के तरफ से कोई आदेश आने के पूर्व ही अरुण ने इस्तीफा दे दिया।
यह माना जा रहा है कि अगले वर्ष विधान सभा चुनाव होने को है। इसके पूर्व कोरोना को लेकर सरकार की विफलता से लोगों में बढ़े आक्रोश के बीच सरकार कोई और जोखिम लेना नहीं चाहती है। ऐसे में बेसिक शिक्षा मंत्री को अपने भाई से इस्तीफा दिला देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।