Ahmedabad News : RTI से सूचना मांगने पर 10 लोगों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने वाला पहला राज्य बना Gujrat
Gujrat : ब्लैकलिस्टेड RTI एक्टिविस्ट का बड़ा फैसला, GIC के खिलाफ हाईकोर्ट का खटखटाएंगे दरवाजा
Ahmedabad News : जन सूचना अधिकार ( RTI ) के तहत पहली बार गुजरात ( Gujrat ) में 10 लोगों पर आजीवन आरटीआई दाखिल पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यह कार्रवाई गुजरात सूचना आयोग ( GIC ) की तरफ से की गई है। इसके पीछे आयोग का तर्क है कि जिन लोगों पर प्रतिबंध लगाया गया है, वो लोग पिछले 18 महीनों में आरटीआई के जरिए बार-बार एक ही सवाल पूछकर सरकारी अधिकारियों को परेशान करने का काम कर रहे थे। जीआईसी के इस फैसले पर भारत के पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने गैर कानूनी करार दिया है। साथ ही ये भी कहा है कि इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। आरटीआई हेल्पलाइन चलाने वाले और आरटीआई आवेदनों और प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने वाले गैर सरकारी संगठन महति अधिकार गुजरात पहल के अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है।
हितेश पटेल और उनकी पत्नी पर लगाया 5 हजार का जुर्माना
गुजरात सूचना आयोग ने एक आवेदक को बताया है कि आयोग के समक्ष अपनी बात रखने के नागरिकों के अधिकार को वापस लेता है। आयोग ने पेटलाड शहर के आवेदक हितेश पटेल और उनकी पत्नी पर पांच हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। दरअसल, पेटलाड शहर के लोगों ने अपने आवासीय समाज से संबंधित 13 आरटीआई सवाल दाखिल किए थे। जिसे विभागीय अधिकारियों को परेशान करने का मामला बताकर सूचना आयुक्तों ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया है कि इन 10 लोगों के जरिए सूचना मांगे जाने पर मौजूदा मुद्दों पर कोई जानकारी न दी जाए। इनमें से एक आवेदक अमिता मिश्रा हैं। अमिता मिश्रा गांधीनगर के पेथापुर की एक स्कूल में शिक्षिका हैं।
पेशे से शिक्षक अमिता मिश्रा ने जब अपनी सेवा पुस्तिका और वेतन विवरण की एक प्रति मांगी तो उसे इसको लेकर प्रतिबंधित कर दिया गया था। सूचना आयुक्त केएम अधवर्यु ने जिला शिक्षा कार्यालय और सर्व विद्यालय काडी को अमिता के आवेदनों पर हमेशा के लिए विचार नहीं करने का आदेश दिया। स्कूल के अधिकारियों ने इसके पीछे यह शिकायत की थी कि वह आवश्यक 2 रुपए प्रति पेज आरटीआई शुल्क का भुगतान नहीं करती है। अमिता बार-बार एक ही सवाल पूछती है। इससे पहले मोडासा कस्बे के एक स्कूल कर्मचारी सत्तार मजीद खलीफा पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। जब उसने अपने संस्थान के खिलाफ कार्रवाई करने के बाद उसके बारे में सवाल पूछना शुरू कर दिया था। सूचना आयुक्त अधवर्यु ने आयोग में अपील करने का खलीफा का अधिकार वापस ले लिया। अधवर्यु ने जांच में पाया कि खलीफा आरटीआई के जरिए स्कूल से बदला लेने की कोशिश कर रहा था। सत्तारूढ़ ने यह भी कहा कि खलीफा ने आभासी सुनवाई के दौरान पीआईओ जन सूचना अधिकारी शिक्षा विभाग के अपीलीय प्राधिकरण और यहां तक की आयोग के खिलाफ भी आरोप लगाए थे।
मकवाना पर लगया दुर्भावाना के तहत जानकारी मांगने का आरोप
एक अन्य मामले में सूचना आयुक्त दिलीप ठाकर ने भावनगर के चिंतन मकवाना को सीसीटीवी फुटेज सहित भावनगर के मुख्य जिला स्वास्थ्य कार्यालय के बारे में कोई भी जानकारी मांगने से प्रतिबंधित कर दिया है। मकवाना की पत्नी जेसर में स्वास्थ्य विभाग की तीसरी श्रेणी की कर्मचारी हैं और इस मुद्दे पर विवाद के बाद विभाग के कर्मचारियों को सरकारी आवासीय क्वार्टर के आवंटन से संबंधित मानदंडों की जानकारी चाहती थीं। मकवाना की पत्नी और उनकी सास पर यह कहते हुए पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया गया था कि उनकी आरटीआई दुर्भावनापूर्ण और इरादे से पूरी तरह बदला लेने वाली थी।
जीआईसी ने मुट्ठीभर अदालती फैसलों पर किया भरोसा
एमएजीपी की पंक्ति जोग का कहना है कि 10 आदेशों के विस्तृत विश्लेषण से पता चलता है कि गुजरात के सूचना आयुक्तों ने एनडी कुरैशी बनाम भारत संघ, सीबीएसई के सुप्रीम कोर्ट के मामले में 2008 के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश जैसे मुट्ठी भर अदालती आदेशों के पैरा पर भरोसा किया है।
गुजरात में नहीं है आवेदकों को काली सूची या बैन करने का कानून
चौंकाने वाली बात यह है कि 18 जून को गुजरात के गृह विभाग ने एक आरटीआई जवाब में कहा था कि आरटीआई आवेदकों को काली सूची में डालने या प्रतिबंधित करने का कोई कानून नहीं है। जबकि जून, 2007 गुजरात के दिवंगत मुख्य सूचना आयुक्त आरएन दास ने आरटीआई आवेदकों को गलत पाते हुए इन्हें काली सूची में डालने का आदेश दिया था।
GIC का आदेश गैर कानूनी : हबीबुल्लाह
Ahmedabad News : साल 2005 से 2010 के दौरान भारत के पहले मुख्य सूचना आयुक्त रहे वजाहत हबीबुल्लाह ने टीओआई को बताया है कि यह आदेश न केवल विवादित हैं बल्कि पूरी तरह से गैर कानूनी है। उन्होंने कहा है कि इस फैसले को गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।हबीबुल्लाह ने कहा कि सूचना आयोग एक नागरिक के लिए अपील की अंतिम अदालत है। तो फिर सूचना आयोग ऐसे आदेश कैसे पारित कर सकता है, जो कि कानून के ही बाहर हैं।