प्रख्यात साहित्यकार विभूति नारायण राय को 'डॉ राही मासूम रज़ा साहित्य सम्मान' देने की घोषणा
जनज्वार डेस्क। महाराष्ट्र के वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं साहित्यकार विभूति नारायण राय को वर्ष 2021 का " डॉ राही मासूम रज़ा साहित्य सम्मान " देने की बुधवार को घोषणा की गई। डॉ राही मासूम रज़ा साहित्य अकादमी के महासचिव रामकिशोर ने बुधवार को एक विज्ञप्ति में बताया कि अकादमी की चयन समिति ने सर्वसम्मति से राय को वर्ष 2021 के "डॉ राही मासूम रज़ा साहित्य सम्मान " से अलंकृत करने का निर्णय लिया है।
उन्होंने बताया कि इससे पहले साहित्यकार डॉ नमिता सिंह , साहित्यकार पद्मश्री डॉ काजी अब्दुल सत्तार शेख, कवि-साहित्यकार पद्मश्री मेहरून्निसा परवेज़ और साहित्यकार पद्मश्री गिरिराज किशोर समेत अन्य को इस पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है।
विज्ञप्ति के मुताबिक, सम्मान समारोह रज़ा की जयंती के मौके पर एक सितंबर को वेबिनार द्वारा आयोजित किया जाएगा। रज़ा का जन्म एक सितंबर 1927 को उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर में हुआ था।
वह हिंदी के उपन्यासकार और फ़िल्म संवाद-लेखक थे। उन्होंने टीवी धारावाहिक ' महाभारत ' के संवाद लिखे थे। रज़ा एक ऐसे रचनाकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए जिनकी रचनात्मक उम्र संस्कृत से उर्दू तक और महाकाव्य से ग़ज़लों तक की रही है। मार्च 1992 में 64 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था।
विभूति नारायण राय (जन्म-28 नवम्बर 1951 ई॰) 1975 बैच के यू॰पी॰ कैडर के एक संवेदनशील आई॰पी॰एस॰ अधिकारी होने के साथ-साथ हिन्दी कथाकार के रूप में भी प्रसिद्ध रहे हैं। प्रशासनिक क्षेत्र में जहाँ उन्हें विशिष्ट सेवा के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार तथा पुलिस मेडल से सम्मानित किया जा चुका है वहीं साहित्यिक क्षेत्र में भी उन्हें इन्दु शर्मा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान सहित अनेक पुरस्कारों से विभूषित किया गया है। विभूति नारायण राय तीन दशकों से अधिक समय तक प्रकाशित होने का कीर्तिमान स्थापित करने वाली सुप्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका वर्तमान साहित्य के संस्थापक संपादक रहे हैं।
विभूति नारायण राय के अब तक पाँच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। उनके ये उपन्यास पिछले तीन-चार दशकों के परिवर्तित राजनीतिक-सामाजिक परिवेश का रचनात्मक रूपांतरण हैं। आमतौर पर लेखक कहानियाँ लिखने के बाद उपन्यास पर काम शुरू करते हैं, परंतु विभूति नारायण राय सीधे उपन्यास से आरंभ करते हैं और अपने कथ्य को अनावश्यक विस्तार से बचाते हुए सघनता प्रदान करते हैं। इसलिए आकार में संक्षिप्त होने के बावजूद दृष्टि में विस्तृत उनके उपन्यास अलग से अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाते हैं।
सुप्रसिद्ध कथाकार ममता कालिया के शब्दों में : "हिन्दी कथाजगत में विभूति नारायण राय की उपस्थिति आश्चर्य की तरह बनी और विस्मय की तरह छा गयी। ...सबसे खास बात इस रचनाकार की यह है कि इनके सभी उपन्यास एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। 'घर ' में सम्बन्धों के विखण्डन की त्रासदी है तो 'शहर में कर्फ्यू ' में पुलिस आतंक के अविस्मरणीय दृश्यचित्र। 'किस्सा लोकतंत्र ' राजनीति में अपराध का घालमेल रेखांकित करता है। 'तबादला ' उपन्यास उत्तर आधुनिक रचना के स्तर पर खरा उतरता है क्योंकि इसमें कथातत्व का संरचनात्मक विखंडन और कथानक के तार्किक विकास का अतिक्रमण है। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में यह अपनी तरह का पहला कथा-प्रयोग रहा है। सरकारी तंत्र और राजनीतिज्ञ की सांठगांठ के कारण तबादला एक स्वाभाविक प्रक्रिया न होकर उद्योग का दर्जा पा गया है। इन रचनाओं से अलग हटकर 'प्रेम की भूतकथा ' एक अद्भुत प्रेम कहानी है जिसमें प्रेमी अपनी जान पर खेलकर प्रेमिका के सम्मान की रक्षा करता है।"
विभूति नारायण राय के सभी उपन्यासों का अनुवाद अन्य भाषाओं में भी हुआ है। उनके उपन्यास 'घर ' का अनुवाद पंजाबी में, 'शहर में कर्फ्यू ' का उर्दू, अंग्रेजी, पंजाबी, बाङ्ला, मराठी, असमिया, मलयालम तथा मणिपुरी में, 'किस्सा लोकतंत्र ' का पंजाबी में, 'तबादला ' का उर्दू तथा अंग्रेजी में एवं 'प्रेम की भूतकथा ' का कन्नड़, उर्दू तथा अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है।