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बिहार

नेपाल में लगातार बारिश के बाद बराज से गंडक में छोड़ा गया 85500 क्यूसेक पानी, बिहार में अलर्ट

Janjwar Desk
26 Jun 2020 4:46 PM IST
नेपाल में लगातार बारिश के बाद बराज से गंडक में छोड़ा गया 85500 क्यूसेक पानी, बिहार में अलर्ट
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गंडक नदी का जलस्तर बढ़ने की आशंका के चलते नदी के आस-पास बसे लोगों को किया गया अलर्ट, नेपाल के पोखरा और आसपास के इलाकों में भारी बारिश की चेतावनी....

जनज्वार ब्यूरो/पटना। नेपाल के भैरवा और पोखरा तथा बिहार के गोपालगंज में हो रही लगातार बारिश से गंडक नदी अब उफनाने लगी है। नदी के निचले तट पर बसे लोगों को आधिकारिक रुप से अलर्ट कर दिया गया है। जिला में ऊंचे स्थलों को चिन्हित कर वहां लोगों को रखने की व्यवस्था की जा रही है। सदर प्रखंड के जागीरी टोला, बरौली प्रखंड के सलेमपुर और बैकुंठपुर प्रखंड के गनहारी पंचायतों की कुछ सड़कों पर पानी चढ़ गया है। कुचायकोट, बैकुंठपुर, मांझा,सिधवलिया, सदर और बरौली प्रखंडों के तटीय और निचले इलाकों के लोगों को सतर्क कर दिया गया है।

बाल्मीकिनगर बराज से गंडक में 85500 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है। इस पानी के आज 26 जून को यहां पहुंचने की संभावना है। इससे गोपालगंज में गंडक का जलस्तर और बढ़ने की आशंका है। बाल्मीकिनगर डैम के शीर्ष कार्य प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता जमील अहमद ने इसकी जानकारी देते हुए बताया है कि डैम से डिस्चार्ज ज्यादा होने के बावजूद अभी भी लेबल हाई है। जिला प्रशासन द्वारा निचले इलाकों के सौ से ज्यादा गांवों के लोगों को अलर्ट किया गया है। नदी के निचले तट पर बसे लोगों को ऊंचे स्थानों पर जाने को कह दिया गया है।


डीएम अरशद जमाल ने कहा 'नेपाल के पोखरा और आसपास के इलाकों में भारी बारिश की चेतावनी है। फिलहाल नदी का जलस्तर काफी नीचे है। कटाव और दबाव नहीं है। पर भारी बारिश हुई तो जलस्तर बढ़ सकता है। इसलिये सावधानी बरतते हुए तटीय और निचले स्थान के लोगों को ऊंचे स्थानों पर जाने का निर्देश दिया गया है।'

सदर प्रखंड के पथरा, बरई पट्टी, विश्वंभर पुर, जागीरी टोला, मलाही, कुचायकोट प्रखंड के बरईपट्टी, गम्हरिया, गुमनिया, जमुनिया आदि गांवों के लोगों को ऊंचे स्थानों पर जाने को कहा गया है। वहीं मांझा प्रखंड के गोसियां, निमियाँ, गौसियां, पथरा, पुरैनिया, बरौली प्रखंड के देवापुर,प्यारेपुर, सोनबरसा, रूपन छापर, परसौनी आदि गांवों के लोगों को भी यही निर्देश दिया गया है। बैकुंठपुर प्रखंड के भी कई गांवों के लोगों को ऊंचे स्थानों पर जाने को कह दिया गया है।

इन गांवों के लोग अब ऊंचे स्थानों की तलाश में जुट गए हैं। ऊंचे बांध,सड़कें आदि बाढ़ पीड़ितों के अस्थायी बसेरे माने जाते हैं। वैसे जिला प्रशासन का दावा है कि बाढ़ की संभावना को देखते हुए 75 ऊंचे स्थानों को शरणस्थल और 52 स्थानों को कम्युनिटी किचेन के रूप में चिन्हित कर लिया गया है। पशुओं के लिए भी स्थल चिन्हित किया गया है।

डीएम अरशद जमाल ने सारण तटबंध और निचले तटीय इलाकों का दौरा किया। उन्होंने इन क्षेत्रों के लोगों से बात कर स्थिति की जानकारी ली तथा पदाधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिया। उन्होंने इन गांवों के लोगों के लिए शरणस्थल और कम्युनिटी किचेन की व्यवस्था का निर्देश दिया है। साथ ही अन्य जरूरी संसाधन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।

जिला आपदा पदाधिकारी शम्स जावेद ने कहा 'भारी बारिश और गंडक बराज से वाटर डिस्चार्ज को देखते हुए सभी अंचलाधिकारी और थानों को अलर्ट पर रखा गया है। तटबंधों की लगातार निगरानी की जा रही है। बांधों की सुरक्षा के लिए 154 चौकीदार और हर 10 किलोमीटर पर एक जेई की तैनाती की गई है। विभागीय इंजीनियरों को भी अलर्ट पर रखा गया है।'

नेपाल में मौसम विभाग ने 4 जुलाई तक बारिश का अलर्ट किया है। लिहाजा वहां से वाटर डिस्चार्ज होना ही है। ऐसे में गोपालगंज जिला में अगले कुछ दिनों तक बाढ़ का खतरा बरकरार रहने की आशंका जताई जा रही है। नेपाल के नारायण घाट,सेमरा,पोखरा आदि तराई क्षेत्रों में लगातार बारिश हो भी रही है। बताया जा रहा है कि इससे बराज लबालब हो गया है।

गोपालगंज के 71 किलोमीटर लंबे तटबंध की सुरक्षा के लिए होमगार्ड के जवान भी लगाए गए हैं। हर एक किलोमीटर पर एक जवान लगाया गया है। निजी नावों को निबंधित कर एकरारनामा किया जा रहा है।


जिला में 30 बाढ़ राहत केंद्रों की स्थापना की गई है। इसके अतिरिक्त चिकित्सा केंद्रों की स्थापना भी की जा रही है। डीएम ने सिविलसर्जन को चिकित्सा केंद्रों पर चिकित्सको और चिकित्सा कर्मियों की तैनाती का निर्देश दिया है।

जाहिर है कि विगत वर्षों की तरह इस बार भी गोपालगंज बाढ़ के मुहाने पर खड़ा हो गया है। तैयारियां जरूर हो रहीं हैं पर नियति हर बार की तरह लोगों को उसी तरफ ले जा रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि लगातार बाढ़ का प्रकोप झेलने के वे आदी हो चुके हैं। बाढ़ के दौरान अस्थायी शरणस्थल खोजने में कठिनाई तो होती ही है।

इसके अलावा इन शिविरों में खासकर महिलाओं-बच्चों को भारी दिक्कत होती है। बीमार पड़ने या प्रसव की स्थिति होने पर दिक्कत और बढ़ जाती है। पर क्या कर सकते हैं,यह हर वर्ष का संकट है और इसे झेलना मजबूरी है।

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