बिहार में 'उम्र घोटाला', बीते पांच वर्षों में 12 साल बढ़ गई उप-मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद की उम्र
जनज्वार ब्यूरो/पटना। यह बिहार है, यहां कुछ भी हो सकता है। पैसे-रुपये से संबंधित आर्थिक घोटालों की बात तो सबने सुनी होगी, पर बिहार में एक आश्चर्यजनक घोटाला सामने आया है, वह है उम्र घोटाला। यह घोटाला नेतागणों द्वारा किया गया है और बाजाप्ता उन्हीं के द्वारा दिए गए एफिडेविट में दस्तावेजी रूप में दर्ज है। जब हमने हालिया संपन्न बिहार चुनावों में मैदान में उतरे नेताओं द्वारा चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामों को खंगाला, तो ऐसे दर्जनों मामले सामने आए हैं।
चुनाव लड़ने वाले कई नेताओं की उम्र 5 साल में बिल्कुल ही नहीं बढ़ी है, तो आश्चर्यजनक रूप से कई की घट भी गई है। ऐसे लगभग दो दर्जन मामले हो सकते हैं और इनमें सभी दलों से उम्मीदवार बनाए गए नेता शामिल हैं। बिहार के नए डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद की उम्र भी आश्चर्यजनक रूप से साल 2015 से 2020 के बीच 5 सालों में ही 52 साल से बढ़कर 64 साल हो गई है।
बिहार के नए डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद बनाए गए हैं। वे बीजेपी के टिकट पर कटिहार से विधायक चुने गए हैं। जनता में लोकप्रिय हैं, यह इससे साबित होता है कि वे साल 2005 से अबतक लगातार चार टर्म विधायक चुने गए हैं। 1980 से सक्रिय राजनीति में कदम रखने वाले तारकिशोर प्रसाद ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की थी। साल 1981 से 83 तक कटिहार में बीजेपी के नगर महामंत्री रह चुके हैं, प्रदेश कार्यसमिति में भी रह चुके हैं। वैसे तारकिशोर प्रसाद मूल रूप से साल 1974 के जेपी मूवमेंट की उपज माने जाते हैं। उस दौर में वे कई बार भूमिगत भी रहे।
तारकिशोर प्रसाद को क्षेत्र में सर्वसुलभ नेता कहा जाता है। वे छोटे से लेकर बड़े कार्यकर्ता के साथ समान भाव और व्यवहार रखते हैं, इसलिए कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय हैं। हालांकि उन्हें किसी खास खेमे का नहीं माना जाता, लेकिन पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी के करीबी माने जाते हैं।
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उनका हलफनामा सार्वजनिक रूप से दर्ज है। तारकिशोर प्रसाद द्वारा दिए गए चुनावी हलफनामे, जो इलेक्शन कमीशन की वेबसाइट पर सार्वजनिक किए गए हैं, इन हलफनामों के मुताबिक डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद की उम्र साल 2015 में 52 साल थी। साल 2020 के विधानसभा चुनावों में उनके द्वारा दिए गए हलफनामे के मुताबिक इन 5 सालों में उनकी उम्र 12 साल बढ़ गई और अब वे 64 साल के हो गए हैं। इस हलफनामे के मुताबिक वे इंटरमीडिएट तक पढ़े हैं और उनके विरुद्ध एक केस लंबित है।
ऐसे मामले इसलिए गंभीर हैं कि चुनावों में दिया गया हलफनामा दस्तावेजी रिकॉर्ड होता है और इस हलफनामे की कानूनी मान्यता होती है। अगर ऐसी गड़बड़ियां सामने आती हैं तो शिकायत मिलने और उसके प्रमाणित होने के बाद चुनाव आयोग कार्रवाई कर सकता है और उस कार्रवाई के तहत संबंधित जनप्रतिनिधि का पद भी छिन सकता है।
चुनावी हलफनामों में चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों को अपने बारे में सारी जानकरी देनी होती है। इसमें उनके खुद के और पत्नी व पुत्र-पुत्रियों की चल एवं अचल संपत्ति, खुद के विरुद्ध दर्ज मुकदमों, अपनी उम्र, पिता-पति के नाम, अपना पता आदि एफिडेविट कर देना होता है।