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बिहार

अव्यवस्था का शिकार हो पुराने स्वरूप को खो रहा है ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा पटना का गांधी मैदान

Janjwar Desk
12 Dec 2020 8:07 AM GMT
अव्यवस्था का शिकार हो पुराने स्वरूप को खो रहा है ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा  पटना का गांधी मैदान
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ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा गांधी मैदान आज दुर्दशा की ओर बढ़ता जा रहा है और आमलोगों के लिए पहले जैसा उपयोगी साबित नहीं हो रहा...

जनज्वार ब्यूरो, पटना। बिहार की राजधानी पटना का गांधी मैदान कई ऐतिहासिक घटनाओं को अपने दामन में समेटे हुए है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति हो या लालू प्रसाद का गरीब रैला, नीतीश कुमार की कुर्मी चेतना रैली हो या नरेन्द्र मोदी की बदलाव रैली, गांधी मैदान हर उस पल और राजनीतिक घटनाक्रम का गवाह रहा है, जिसने बिहार और देश की राजनीति को प्रभावित किया। कभी यह सत्ता परिवर्तन का गवाह रहा है तो कभी सत्ताग्रहण का साक्षी रहा है।

पटना का यही गांधी मैदान हालिया समय में एक कबाड़खाने की शक्ल लेता जा रहा है। कभी आम जनता के लिए 24 घंटे खुला रहने वाला गांधी मैदान अब एक कटघरा बनता जा रहा है। यहां अक्सर आनेवाले लोग बताते हैं कि इस एरिया में निषेधाज्ञा यानि धारा 144 लागू रहती है। निषेधाज्ञा लागू करने के पीछे शासन-प्रशासन की चाहे जो समझ हो, पर लोगों का कहना है कि ऐसा इसलिए किया गया है ताकि यहां रैली-सभा आदि न हों।


वैसे गांधी मैदान में ओपन जिम एवं चिल्ड्रेन पार्क भी है जिसे खोला नहीं जा रहा है। अगर गांधी मैदान का चक्कर लगाएं तो ऐसा महसूस होगा कि पूरे मैदान में व्यवस्था अस्त व्यस्त है। हालांकि यहां पब्लिक टॉयलेट तो बना हुआ है, पर यहां गन्दगी पसरी रहती है। वह भी तब जब इसका उपयोग मुफ्त नहीं है और इसके लिए अपनी जेब से 5 रूपया खर्च करना पड़ता है।

पिछले कुछ समय से गांधी मैदान को शाम 7 बजे ही बंद करने की नयी प्रथा शुरू हुई है, जिस कारण लोग शाम 7 बजे के बाद चाहकर भी इसमें प्रवेश नहीं कर पाते। कहा जा सकता है कि ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा गांधी मैदान आज दुर्दशा की ओर बढ़ता जा रहा है और आमलोगों के लिए पहले जैसा उपयोगी साबित नहीं हो रहा।

पटना के पुराने निवासियों के पास गांधी मैदान से जुड़े कई ऐसे यादगार और अनसुने किस्से भी हैं जो बिहारवासियों के बीच इसकी महत्ता को रेखांकित करते हैं। स्थानीय लोगों के लिए पहले यह मैदान 'बांकीपुर मैदान' हुआ करता था तो अंग्रेजों के लिए 'लॉन' हुआ करता था।

वरिष्ठ समाजवादी नेता शिवानन्द तिवारी गांधी मैदान के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए कहते हैं कि अंग्रेजों के समय में मुख्य शहर पटना सिटी एरिया में था। बाद में नया पटना शहर गांधी मैदान के इर्द गिर्द बसता चला गया। कालक्रम में यही क्षेत्र मुख्य शहर के रुप में जाना जाने लगा। हालांकि वे कहते हैं कि किसी भी सभा आदि के लिए स्थानीय प्रशासन से पूर्वानुमति तो प्राप्त करनी ही होती है और सुरक्षा सहित अन्य कारणों से यह जरूरी भी होता है। गांधी मैदान में भी सभा आदि के लिए पूर्वानुमति लेनी होती है।

स्थानीय खाजपुरा निवासी संजय राय कहते हैं कि गांधी मैदान पटना ही नहीं बल्कि पूरे राज्य का धरोहर है। हालिया समय में इसकी दशा बिगड़ रही है। सरकार और प्रशासन को इस बात का संज्ञान लेकर समुचित कदम उठाना चाहिए।

महात्मा गांधी से जुड़ी कई यादों का भी गांधी मैदान साक्षी रहा है। चंपारण में अपने सत्याग्रह की शुरुआत करने के बाद 102 वर्ष पूर्व इसी मैदान पर महात्मा गांधी ने जनवरी 1918 में विशाल जनसभा की थी। बाद के वर्षों में बापू ने यहां सर्वधर्म प्रार्थना सभा का भी आयोजन किया था।

देश को आजादी मिलने के पहले गांधी मैदान आजादी के दीवानों और स्वतंत्रता आंदोलन के रणबाकुरों के लिए खासा महत्व रखता था।आजादी के 9 वर्ष पूर्व साल 1938 में मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस के खिलाफ मुस्लिम लीग की एक ऐतिहासिक रैली को इसी गांधी मैदान पर संबोधित किया था।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी साल 1939 में नवगठित फॉरवर्ड ब्लॉक की पहली रैली को इसी मैदान पर आयोजित किया था। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसी ऐतिहासिक गांधी मैदान पर साल 1974 में 'संपूर्ण क्रांति' का नारा दिया था और संपूर्ण क्रांति का आह्वान कर देश के युवाओं को जगा दिया था।

हालांकि गांधी मैदान के इतिहास और यहां हुए घटनाक्रमों को शब्दों में समेटना मुश्किल कार्य है। गांधी मैदान ने सौ वर्षों के अपने इतिहास में कभी महात्मा गांधी को देखा सुना है तो कभी पंडित जवाहर लाल नेहरू को। कभी जेबी कृपलानी को तो कभी नंबूदरीपाद को। यह तो उस वक्त भी था, जब यहां से डॉ. राम मनोहर लोहिया ने देश को सप्तक्रांति का नारा दिया और जेपी ने इसी मैदान से कांग्रेसी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए बिगुल फूंका था।

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