लॉकडाउन इंपैक्ट : बिहार में सवारियों का टोटा, बस मालिकों के सामने आया संकट तो सरकार से लगाई गुहार
जनज्वार ब्यूरो, पटना। कोरोना के कारण लगभहग ढाई महीने तक चले लॉकलॉक ने हर वर्ग को प्रभावित किया। अब लॉकडाउन हटाकर अनलॉक1 किया गया है और प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की कल पूरी हुई वीडियो कान्फ्रेंसिंग के बाद अनलाॅक 2 की तैयारी शुरू कर दी गयी है। पर अभी भी लगभग हर वर्ग लंबे समय तक चले लॉकडाउन के इंपैक्ट से बाहर नहीं आ पाया है। खासकर व्यवसाय से जुड़ा वर्ग। आम समझ है कि बसों का ऑनर अमीर वर्ग होता है, पर लॉकडाउन ने इस वर्ग की ऐसी कमर तोड़ी है कि ये बर्बादी की कगार पर खड़े हो गए हैं और अब सरकार से गुहार लगा रहे हैं।
लॉकडाउन खत्म होने के बाद बिहार में एक जून से सार्वजनिक परिवहन शुरू करने की इजाजत मिली। ऑटो-बस आदि का परिचालन शुरू हुआ। बिहार में ज्यादातर बस जिन्हें कोच कहा जाता है, इनका परिचालन अंतरजिला होता है। अर्थात ये एक जिले से दूसरे जिला तक यात्रियों को ले जाते हैं। कुछ बसों का परिचालन अंतरराज्यीय भी होता है। बिहार के ज्यादातर बस राजधानी पटना से राज्य के विभिन्न जिलों के लिए चलायी जाती हैं। इन बसों को संबंधित रूट और तय समय पर ही चलने की अनुमति होती है। इसके लिए बिहार सरकार द्वारा बाजाप्ता परमिट जारी किया जाता है।
अब इन बसों को लॉकडाउन ख़त्म होने के बावजूद यात्री नहीं मिल रहे हैं। बस मालिकों का कहना है कि लाभ की बात तो दूर, बसें चलतीं रहें, इतना खर्च भी नहीं निकल पा रहा है। यात्रियों के आने के इंतजार में बसें अपने निर्धारित समय से खुल भी नहीं पा रही हैं। पटना के मीठापुर स्थित बस स्टैंड राज्य का मुख्य स्टैंड है। यहां से बिहार के हर जिले के लिए यात्री बसों का परिचालन होता है। लॉकडाउन से पहले यहां रोज मेले से दृश्य रहता था। यात्रियों की रेलमपेल तो रहती ही थी, हर वक्त बड़ी संख्या में बसें भी अपनी बारी के इंतजार में यहाँ खड़ी रहतीं थीं। हर 10 मिनट पर किसी न किसी जिले के लिए बस खुल जाती थी। स्टैंड और इसके आसपास चाय-पानी, नाश्ता, भोजन, रोजमर्रा की चीजों की दुकानें भी काफी संख्या में थीं और 24 घँटे खुली रहतीं थीं। अब ऐसा कुछ नहीं दिख रहा। न तो पहले की तरह बसों की संख्या दिख रही, न यात्रियों की वह भीड़। दुकानें भी इक्का-दुक्का ही खुल रहीं हैं। वजह, यात्रियों का न होना।
मीठापुर बस स्टैंड से पहले रोज लगभग 1000 बसों का परिचालन होता था। अभी 200 से 250 बसें ही फिलहाल रोज चल पा रही हैं। चूंकि यात्री ही इतने मिल रहे हैं। ऐसे में बाकी बसें खड़ी हो जा रहीं हैं। प्रतिदिन इतनी बड़ी संख्या में बसों के खड़े रह जाने से बस मालिकों और इन बसों से जुड़े स्टाफ, स्थानीय दुकानदारों की स्थिति चरमरा गई है। यहां से जुड़े लोग बता रहे हैं कि सवारियों के कम होने के पीछे कोरोना का भय, लंबे लॉकडाउन के कारण व्यवसाय और रोजगार का ठप्प होना मुख्य कारण है। कोरोना के डर से लोग कम निकल रहे हैं, अति आवश्यक यात्राएं ही लोग कर रहे हैं। वहीं लॉकडाउन के दौरान पटरी से उतर चुके व्यवसाय भी अभी तक रफ्तार नहीं पकड़ सके हैं।
बस मालिकों का कहना है कि इनमें से लगभग 99 फीसदी लोगों ने बैंक से कर्ज लेकर बसें खरीदीं हैं। कर्ज की राशि बड़ी है, लिहाजा प्रतिमाह की किश्त भी बड़ी होती है। स्टैंड का शुल्क, डीजल, स्टाफ खर्च आदि कई तरह के खर्च इन बसों से जुड़े होते हैं। लॉक डाउन में तीन महीने तक परिचालन बिल्कुल बंद रहा, स्टाफ को सेलरी पॉकेट से देनी पड़ी। अब परिचालन शुरू होने पर उम्मीद थी कि सबकुछ पटरी पर आ जाएगा पर स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई है।
बस ऑपरेटर कन्फेडरेशन ऑफ बिहार ने राज्य सरकार के परिवहन विभाग को पत्र लिख इन समस्याओं की चर्चा की है। पत्र में कहा गया है कि बैंक किस्त हो या स्टैंड का शुल्क, चुकाना मुश्किल होता जा रहा है। बसें खुल भी रही हैं वो आधी खाली जा रही हैं। उनकी 25 फीसदी बसें ही खुल पा रही हैं। इतना भी फायदा नहीं कि बस की बैंक किस्त दी जा सके। पत्र में फेडरेशन ने लॉकडाउन के दौरान बंद अवधि की तिमाही का कर्ज माफ करने, इस अवधि का परमिट शुल्क माफ करने, स्टैंड शुल्क माफ करने आदि की मांग की है।