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बिहार

बिजली नहीं, मोबाइल ठप्प और पॉलीथिन की छतों के सहारे बाढ़ पीड़ित कर रहे धूप-बारिश का मुकाबला

Janjwar Desk
26 July 2020 12:55 PM GMT
बिजली नहीं, मोबाइल ठप्प और पॉलीथिन की छतों के सहारे बाढ़ पीड़ित कर रहे धूप-बारिश का मुकाबला
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बिहार में बाढ़ पीड़ितों की समस्याएं सुनकर सहज ही कल्पना की जा सकती है कि इनकी हालत कैसी है। घुप्प अंधेरे में जहरीले जंतुओं का भय और बारिश हुई तो भीगते हुए समय काट रहे हैं।

जनज्वार ब्यूरो, पटना। बिजली नहीं, मोबाइल ठप्प और पॉलीथिन की छतों के सहारे बाढ़ पीड़ित कर रहे धूप और बारिश का मुकाबला। बिहार में बाढ़ पीड़ितों की समस्याएं सुनकर सहज ही कल्पना की जा सकती है कि इनकी हालत कैसी है। घुप्प अंधेरे में जहरीले जंतुओं का भय और बारिश हुई तो भीगते हुए समय काट रहे हैं।

बिहार में बाढ़ से अब 11 जिलों की 12 लाख 84 हजार की आबादी प्रभावित हो गई है। इन जिलों के 86 प्रखंडों के 625 पंचायत बाढ़ का कहर झेल रहे हैं। अब तक 1 लाख 36 हजार लोगों को बचाया गया है। बाढ़ पीड़ित सड़क किनारे, बांधों के ऊपर और छतों पर शरण लिए हुए हैं। इन लोगों की परेशानियों का कोई अंत नहीं। सरकारी आंकड़ों और पीड़ितों के दर्द में कोई तालमेल नहीं दिख रहा।

सड़क किनारे, बांधों के ऊपर और घरों की छतों पर शरण लिए लोगों को भारी परेशानी है। बारिश हुई तो खुद भींगें, सामान भींगे और धूप हुई तो भीषण गर्मी के बीच कड़ी धूप को झेलना है। बीमार पड़ गए तो कोई मेडिकल सुविधा नहीं। चारों ओर से पानी से घिरे हैं तो मेडिकल सुविधा के लिए दूसरी जगह जाना भी संभव नहीं।

बाढ़ प्रभावित इलाकों की बिजली एहतियातन काट दी गई है। घुप्प अंधेरे में सड़क और बांध किनारे मोमबत्ती और माचिस की रोशनी के सहारे जीना है। सांप, बिच्छू जैसे जहरीले जानवर भी पानी में बहकर आ जा रहे हैं, जिनसे भय बना रहता है। पीने का साफ पानी दुर्लभ है, चूंकि गांवों के चापाकल बाढ़ के पानी मे डूब चुके हैं। महिलाओं को शौच में परेशानी है, चूंकि इन अस्थायी बसेरों के पास शौचालय की व्यवस्था तो है नहीं।

बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल टावरों में पानी घुस जाने से नेटवर्क ठप्प हो गए हैं। बाढ़ से घिरे अधिकांश इलाकों में प्राइवेट कंपनियों के मोबाइल नेटवर्क फेल हो चुके हैं, जिससे ये लोग देश-दुनिया से कट चुके हैं। कहीं अगर मोबाइल में नेटवर्क है भी तो बिजली के अभाव में बैट्री बैठ गई है और यह चार्ज नहीं हो पा रही। लिहाजा ये अपनी समस्याएं भी किसी को बता नहीं पा रहे।

प्रशासनिक स्तर पर बाढ़ राहत कार्य चलाए जा रहे हैं। कई जगहों पर सामुदायिक किचेन शुरू की गई है, पर यह ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। कैंप भी लगाए गए हैं, पर जितने लोगों को कैंपों में जगह मिली है, उससे कई गुना ज्यादा लोग इन बांधों और सड़कों पर शरण लिए हुए हैं।

बाढ़ राहत कार्य के लिए सेना के तीन हेलिकॉप्टर को भी लगाया गया है। ये हेलिकॉप्टर गोपालगंज, मोतिहारी और दरभंगा जिलों के बाढ़ में घिरे लोगों के बीच राहत सामग्री गिरा रहे हैं। राहत और बचाव के लिए NDRF की कई टीमों को प्रभावित इलाकों में तैनात किया गया है। हालांकि बाढ़ पीड़ितों की बड़ी संख्या के आगे ये नाकाफी हो जा रहे हैं।

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