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नीतीश की 'नाराजगी' से चिराग पासवान के आगे की राजनीतिक राह कितनी मुश्किल भरी होगी?

Janjwar Desk
13 Nov 2020 12:37 PM IST
नीतीश की नाराजगी से चिराग पासवान के आगे की राजनीतिक राह कितनी मुश्किल भरी होगी?
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नीतीश कुमार व चिराग पासवान के बीच के खुशनुमा दिनों की एक तसवीर।

चिराग का चुनाव के दौरान यह भी खुला ऐलान था कि वे मोदी के हनुमान हैं और चुनाव के बाद राज्य में भाजपा-लोजपा की सरकार बनेगी। हालांकि चिराग की पार्टी बामुश्किल जहां एक सीट पर अपना खाता खोल पायी, वहीं भाजपा भी इतने कंफर्ट मोड में नहीं आ पायी कि वह जोड़-तोड़ कर अपनी सरकार बना ले। ऐसे में सरकार में हिस्सेदारी के लिए नीतीश कुमार उसकी मजबूरी हैं।

जनज्वार। बिहार विधानसभा चुनाव में जिस तरह जनता दल यूनाइटेड तीसरे नंबर की पार्टी बन गई, वह उसके नेता नीतीश कुमार के लिए पचाना सामान्य बात नहीं है। चिराग पासवान ने यह स्पष्ट तौर पर कहा है कि उनका उद्देश्य नीतीश की सीटें कम करने के लिए उनके उम्मीदवारों को हराना था और उन्होंने अपने लक्ष्य को हासिल कर लिया है। नीतीश ने गुरुवार को खुद की सीटें कम होने को लेकर लोजपा के जिम्मेवार होने संबंधी सवाल पर विचार करने व कार्रवाई करने की जिम्मेवारी भाजपा की बता दी, क्योंकि वह एनडीए की अगुवा पार्टी है।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि चिराग पासवान का अब एनडीए में क्या भविष्य होगा? चिराग पासवान की राजनीति में सबसे बड़ी उपलब्धि उनका देश के बड़े दलित नेता दिवंगत रामविलास पासवान का पुत्र होना है। और यही वह वजह है कि एनडीए में उनकी उपस्थिति का एक प्रतीकात्मक महत्व है। उनके पास एक मार्जिन वोट भी है, जो किसी उम्मीदवार को जीता व हरा सकता है और अकेले चुनाव लड़कर उन्होंने इसे फिर से साबित किया है। जदयू को लगभग ढाई दर्जन सीटों पर चिराग पासवान के उम्मीदवारों ने और कुछ सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों को भी नुकसान पहुंचाया है।

चिराग का चुनाव के दौरान यह भी खुला ऐलान था कि वे मोदी के हनुमान हैं और चुनाव के बाद राज्य में भाजपा-लोजपा की सरकार बनेगी। हालांकि चिराग की पार्टी बामुश्किल जहां एक सीट पर अपना खाता खोल पायी, वहीं भाजपा भी इतने कंफर्ट मोड में नहीं आ पायी कि वह जोड़-तोड़ कर अपनी सरकार बना ले। इसके लिए उसे कम से कम 100 सीटें खुद बिहार में हासिल करना पड़ता।

ऐसे में सरकार में हिस्सेदारी के लिए नीतीश कुमार उसकी मजबूरी हैं। वहीं, नीतीश कुमार के पास भाजपा की तुलना में अधिक व्यापक व खुले विकल्प हैं। समाजवादी पृष्ठभूमि के कारण राजद से गलबहियां करना उनके लिए बहुत मुश्किल नहीं है, भले इससे उनकी छवि पर सवाल उठाया जाये। ऐसे में सरकार संचालन के साथ एनडीए के संचालन में उनकी शर्ताें को आसानी से खारिज नहीं करेगी।

नीतीश कुमार खुद को नुकसान पहुंचाने वाले को आसानी से भूलते भी नहीं हैं। ऐसे में आगामी दिनों में चिराग का एनडीए में भविष्य बहुत हद तक नीतीश कुमार की खुशी-नाखुशी से तय होगा। लोजपा ने यह कहा है कि वह बिहार एनडीए से बाहर है, जबकि उस पार्टी का जनाधार इसी राज्य तक सीमित है। ऐसे में उसका यह दावा बेमानी है कि वह बिहार में एनडीए से बाहर है और देश में साथ है।

आगामी दिनों में केंद्र में मोदी कैबिनेट का भी विस्तार होना है। रामविलास पासवान के निधन के कारण लोजपा कोटे से एक मंत्री बनना है। मंत्री पद के दावेदार चिराग पासवान या उनकी पार्टी से कोई और जिन्हें वे चाहे वो हो सकते हैं, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मोदी कैबिनेट में लोजपा को जगह मिलती है या नहीं। कम प्रतिनिधित्व मिलने के आधार पर पूर्व में जदयू केंद्र की सरकार में शामिल होने से इनकार कर चुका है, ऐसे में पीएम मोदी अगर जदयू को दोबारा मौका देते हैं तो इससे भी बिहार की राजनीति में एक संकेत जाएगा।

वहीं, भाजपा की ओर से यह संकेत मिल रहा है कि दलित नेता कामेश्वर चौपाल उपमुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो भाजपा खुद अपने एक दलित चेहरे को बिहार की राजनीति में प्रोजेक्ट करेगी और उसकी लोजपा व चिराग पासवान पर निर्भरता कम हो जाएगी। ऐसे में वह अधिक खुल कर उनके बारे में फैसला लेने की स्थिति में होगी।

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