ग्राउंड रिपोर्ट : खानाबदोश पशुपालकों की जिंदगी के 3 महीने गुजरते हैं प्रचंड गर्मी में, पुरखों से चली आ रही परंपरा
राहुल सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। बिहार के दक्षिणी इलाके में ऐसे बहुत से पशुपालक हैं जो गर्मियों का महीना यानी चैत्र शुरू होने के बाद अपने पशुओें को लेकर मिथिला व कोसी क्षेत्र में चले जाते हैं और फिर जब बारिश यानी आषाढ का महीना शुरू होता है तो अपने पशुओं को लेकर वहां से वापस आ जाते हैं। इन पशुपालकों का गर्मी का तीन महीना से अधिक वक्त सड़कों पर ही गुजरता है। जमुई, लखीसराय जिले से शुरू हुई यात्रा का आधा वक्त सड़कों पर आने-जाने में गुजरता है और महीने-डेढ महीने वे मिथिलांचल के इलाके में पशुओं को लेकर भ्रमण करते हैं।
पशुपालकों के यह दल पशुओं का कारोबार करने या उनके दूध का व्यापार करने अपने क्षेत्र से पलायन नहीं करता, बल्कि उन्हें जीवित रखने व हरा चारा उपलब्ध कराने के लिए ऐसा करता है।
ऐसे ही एक दल से मुलाकात जमुई-लखीसराय स्टेट हाइवे पर तेतरहाट गांव में होती है। इन्हें स्थानीय ग्रामीण समझ कर इनसे बातचीत शुरू करने पर यह बात पता चलती है कि ये जमुई जिले के खैरा के रहने वाले हैं। इस दल में 17 लोग शामिल हैं और ये यादव जाति के हैं। इनके पास करीब 50 या उससे अधिक भैंसे हैं। किसी व्यक्ति के पास तीन-चार तो किसी के पास मात्र एक या दो भैंसे भी हैं।
इस दल में शामिल धमन यादव नाम के एक व्यक्ति ने बताया कि हमारे इलाके में अपने पशुओं को लेकर मधुबनी जिला चले जाने की परंपरा हमारे पुरखों से हैं। हमारे दादा लोग भी ऐसा किया करते थे, फिर बाप भी ऐसा करते थे और हमारे बाद अब हमारे बच्चे भी ऐसा करेंगे। खैरा थाना क्षेत्र के बघंदर गांव के धमन यादव बताते हैं कि हमारे पड़ोस के कई गांव के लोग भी अपने-अपने झुंड में जाते हैं।
धमन ने बताया कि हम ऐसा पशुओं को हरा चारा उपलब्ध कराने के लिए करते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे इलाके में पहाड़ी जमीन है। गर्मी शुरू होते ही हरा घास नहीं मिलता हैंऔर हमारे पशु हरे घास ही खाते हैं, उनको जिंदा रखना है तो जाना ही होगा।
उन्होंने बताया कि हम अपने पशुओं को हरा घास छोड़ और किसी चीज की आदत नहीं लगाते क्योंकि इससे खर्च बढ जाएगा। दरअसल हरा घास प्रकृति प्रदत्त मुफ्त उपहार है और उसके लिए कोई पैसा लगता नहीं।
धमन यादव कहते हैं कि हमारे पास थोड़ी-बहुत खेती है और हमारे इलाके में 12 आना पहाड़ ही है, चार आना जमीन है। उसमें भी एक-दो फीट के बाद पत्थर निकल जाता है। अगर धान नहीं हुआ तो समझिए कुछ नहीं हुआ। वे कहते हैं कि पर्याप्त मात्रा में पुआल भी नहीं होता है।
वे कहते हैं कि गरमी में आदमी पंखा से बाहर नहीं निकलता है और हम पूरी गरमी धूप में गुजार देते हैं, पसीना टपकता रहता है ताकि हमारे पशु जिंदा रहें।
धमन खुद 20 साल से पशुओं को लेकर मधुबनी जिला जाते व आषाढ शुरू होने पर लौटते हैं। ये लोग कहीं बगीचे में, खुली जगह पर रूक कर रात गुजार लेते हैं। खाने के लिए सत्तू चूड़ा लेकर चलते हैं। चूंकि पशु दूध देते हैं तो बेच कर बच जाने पर रात में उनसे खीर भी ये बना लेते हैं।
कहते हैं कि हम जब उधर जाते हैं तो 20 रुपये लोटा ही हम दूध बेच देते हैं और घर पर होते हैं तो भाव थोड़ा ठीक मिल जाता है। इस दल में शामिल सकलदेव यादव कहते हैं कि सरकार की योजनाओं का लाभ हमें ठीक से मिलता नहीं। गरीबी अधिक है। जन वितरण प्रणाली में भी ये लोग गड़बड़ी की बात उठाते हैं।
इस दल में शामिल विनोद यादव कहते हैं कि सरकार की योजनाओं का लाभ हमें नहीं मिलता है। वे कहते हैं कि अगर हमारे लिए कुछ रोजगार धंधा हो जाता तो अच्छा होता। दल में शामिल मोहन यादव व अन्य लोग कहते हैं कि योजनाओं का लाभ उन्हीं को मिलता है जिसका प्रभाव होता है।
मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल दूसरी बार सरकार में आने के बाद अलग से पशुपालन मंत्रालय का गठन किया। इससे पहले यह कृषि मंत्रालय का एक विभाग होता था। पशुपालन मंत्रालय का गठन पशु संरक्षण व संवर्द्धन को बढावा देने के लिए किया गया है लेकिन पशुपालकों के ऐसे पलायन से इतना तो साफ है कि इन्हें ऐसी योजनाओं का लाभ पाने में अभी लंबा वक्त लगेगा।