पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति ने सरकारी आदेश को रद्दी की टोकरी में डाला, 49 कर्मियों को तीन साल में अबतक पहला वेतन भी नहीं मिला
विश्वविद्यालय गेट पर मृतक कर्मी राम सोहित मंडल का शव रख कर प्रदर्शन करता परिवार
पूर्णिया से हेमंत कुमार पाण्डेय की रिपोर्ट
जनज्वार। बीते 28 जून को बिहार स्थित पूर्णिया विश्वविद्यालय के कर्मी राम सोहित मंडल की मौत हो गई। वे विश्वविद्यालय शिक्षकेत्तर कर्मचारी संघ के सचिव थे। उनके नेतृत्व में 49 कर्मी 15 जून से विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ धरने पर बैठे थे। इन 49 कर्मियों की नियुक्ति जुलाई 2017 में हुई थी, लेकिन तीन सालों की नौकरी के बाद भी अब तक इन सभी को अपनी पहली सैलरी का इंतजार है।
मृतक की पत्नी सोनी सोहित ने कुलपति प्रो राजेश सिंह सहित अन्य पर राम सोहित मंडल को मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है। वहीं, पीयू शिक्षक संघ ने इस मामले की शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में की है।
राम सोहित मंडल के परिवार में उनकी पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं। उनके परिजनों ने बताया कि अररिया स्थित अपने आवास में ही वे कोचिंग संस्थान चलाते थे, जिससे उनका जीवन यापन हो रहा था। वहीं, मृतक के करीबी ने बताया कि लॉकडाउन में कोचिंग संस्थान बंद होने से उनकी उससे होने वाली आमदनी भी बंद हो गई थी और इसके चलते वे आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे थे।
गैर शिक्षकेत्तर कर्मियों के धरना-प्रदर्शन को विश्वविद्यालय के शिक्षकों और अनुकंपा पर नियुक्त कर्मियों ने भी अपना समर्थन दिया है। इसकी वजहें भी हैं। इनमें से 92 शिक्षकों की प्रोन्नति पिछले कई वर्षों से अटकी हुई है। साथ ही इन्हें भी लॉकडाउन के बावजूद पिछले चार महीने से वेतन भी नहीं मिला है। इसके अलावा 21 अनुकंपा आधारित कर्मियों को भी पिछले चार साल से अपनी नियमित वेतन का अब तक इंतजार है।
क्या है मामला?
तीन नवंबर 2014 को राज्य के शिक्षा विभाग ने पटना हाई कोर्ट के एक आदेश के बाद फारबिसगंज कॉलेज, फारबिसगंज में 52 नए पदों गैर शिक्षण का सृजन किया था। इसके बाद 15 दिसंबर 2014 को भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, बीएनएमयू मधेपुरा ने इन पदों पर नियुक्ति के लिए नोटिफिकेशन जारी किया। जुलाई 2017 में इन पदों में से 49 पर सफल उम्मीदवारों की नियुक्ति की गई थी।
इसके बाद 18 मार्च 2018 को बीएनएमयू के एक हिस्से को अलग करके पूर्णिया यूनिवर्सिटी बनाया गया। इसके बाद फारबिसगंज कॉलेज नए गठित पूर्णिया विश्वविद्यालय का अंगीभूत कॉलेज बन गया। साथ ही, इसके शिक्षक सहित अन्य कर्मचारी भी पीयू का हिस्सा हो गए। इनमें साल 2017 में नियुक्त 49 शिक्षकेतर कर्मी भी शामिल हैं। इस नए विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार में सीमांचल के चार जिले अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार के शैक्षणिक संस्थान आते हैं।
जुलाई 2017 में इनकी नियुक्ति होने के एक साल बाद छह अगस्त 2018 को बीएनएमयू उच्च शिक्षा विभाग से इनकी नियुक्ति को अनुमोदित करने के साथ वित्तीय वर्ष 2018-19 में इनके लिए वेतन भत्ते की मांग करता है।
इसके बाद 30 अगस्त 2019 को शिक्षा विभाग इनकी नियुक्ति को मंजूरी देता है। साथ ही, इसकी जानकारी दोनों विश्वविद्यालयों को दी जाती है। वहीं, ये भी आदेश दिया जाता है कि पूर्णिया विश्वविद्यालय अपनी निधि से इन कर्मियों को नियमित वेतन भुगतान करेगा। राज्य सरकार द्वारा बाद में यह राशि उपलब्ध करवा दी जाएगी। इस संबंध में उच्च शिक्षा विभाग की ओर से एक पत्र लिखा जाता है।
क्या कहते हैं कर्मचारी?
इस बारे में जनज्वार ने उन 49 कर्मियों में शामिल एक से बात की। वे हमसे इस शर्त पर बात करने के लिए तैयार हुए कि उनके नाम को गोपनीय रखा जाएगा। उन्होंने कहा, 'जब शिक्षा विभाग ने वेतन जारी करने का आदेश विश्वविद्यालय को दे दिया तो इसके बाद हमने कुलपति प्रो राजेंद्र सिंह से मुलाकात कर वेतन की मांग की। इस पर उनका कहना था. यूनिवर्सिटी नई है और इसके पास फंड भी नहीं है, हम बजट भेज रहे हैं और जैसे ही पैसा आएगा, हम आपको पैसा दे देंगे'।
इसके बाद चार फरवरी 2020 को विश्वविद्यालय वित्तीय वर्ष 2020-21 का बजट उच्च शिक्षा विभाग को भेजता है। इससे पहले 19 जनवरी, 2019 को 2019-20 के लिए एरियर संबंधित बजट भी भेजा जा चुका होता है। इस बजट में फारबिसगंज कॉलेज के गैर शिक्षण कर्मियों के लिए 2,70,70,212 रुपये दर्ज हैं। यहां हम ये मान सकते हैं कि पीयू ने इन 49 कर्मियों की नियुक्ति को मंजूरी दे दी, इसके बाद ही इनके वेतन आदि के लिए सरकार से बजट की मांग की जाती है।
विश्वविद्यालय द्वारा बजट की मांग किए जाने के एक साल बाद 28 अप्रैल 2020 को सरकार पीयू के कर्मियों के लिए मार्च 2020 से मई 2020 तक यानी तीन महीने का वेतन-भत्ते 17,29,42,833 रुपये भेजती है। इसमें इन 49 कर्मियों के वेतन के भी शामिल होने का जिक्र होता है।
इसके बाद 29 मई 2020 को राज्य सरकार पीयू के कर्मियों के अप्रैल 2019 से फरवरी 2020 तक बकाये वेतन और पेंशन का भी भुगतान कर देती है। इसके तहत पूर्णिया विश्वविद्यालय को कुल 8,33,90,138 करोड़ रुपये मिलते हैं। इसमें भी 49 गैर शिक्षकों के वेतन भत्ते भी शामिल होते हैं। हालांकि, उच्च शिक्षा विभाग द्वारा वेतन और अन्य भत्ते जारी कर दिए जाने के बाद भी पीयू ने अब तक इसे जारी नहीं किया है।
विश्वविद्यालय के एक कर्मी हमें नाम न छापने के शर्त पर बताते हैं, 'जब हमारा वेतन भुगतान रोका जाता है तो हम कुलपति से मिलते हैं। उनसे हम कहते हैं कि ये कोरोना का समय है। सरकार भी विभागों से कह रही है कि इस समय कर्मचारियों के पैसे का भुगतान न रोका जाए। इसके बाद हमने उन्हें चेतावनी दी कि अगर हमारा भुगतान नहीं किया जाता है तो हम 18 मई से धरना-प्रदर्शन करेंगे'।
वे आगे बताते हैं कि धरना शुरू करने के एक दिन पहले 17 मई को विश्वविद्यालय प्रशासन कहता है कि इसकी कोई जरूरत नहीं है, सभी कर्मियों को वेतन दिया जाएगा। हालांकि, अपनी बात से पलटते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन प्रक्रियागत खामी को वजह बताते हुए इन सभी का वेतन फिर रोक देता है।
इस फैसले से निराश कर्मी तीन जून 2020 को धरना शुरू करते हैं। इसके बाद चार जून को स्वतः संज्ञान लेते हुए पूर्णिया के जिला अधिकारी राहुल कुमार अपनी मध्यस्थता में एक बैठक करते हैं।
इन कर्मियों में से एक कर्मी की मानें तो डीएम इन कर्मियों से संबंधित सारे दस्तावेजों को देखकर इन्हें सही बताते हैं। साथ ही, विश्वविद्यालय से एक हफ्ते के भीतर इनका वेतन आदि भुगतान करने के लिए कहते हैं। लेकिन, इसके बावजूद कर्मियों को वेतन सहित अन्य भत्ते का भुगतान नहीं किया जाता है।
इसके खिलाफ 49 कर्मी और अनुकंपा पर नियुक्त 21 कर्मी 15 जून से फिर धरने पर बैठ जाते हैं। यह धरना रिपोर्ट लिखे जाने तक जारी है।
इन 49 कर्मियों में एक 58 वर्षीय राम नारायण सहनी भी हैं, जिन्हें 28 साल से वेतन नहीं मिला है। वे कहते हैं, 1992 में मेरा वेतन भूपेंद्र नारायण मिथिल विश्वविद्यालय ने रोक दिया था, उसके बाद अब तक सैलरी नहीं मिली है। वे सुबह और शाम कोचिंग ट्यूशन करके घर चला रहे हैं।
विश्वविद्यालय प्रशासन का पक्ष
इस सारे मुद्दों पर हमने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो राजेश सिंह की प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया, लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई। साथ ही, उन्हें बीते 29 जून को ई-मेल भी किया था, लेकिन अब तक इसका जवाब नहीं मिल पाया है।
वहीं, पीयू के कुलसचिव प्रो रवींद्र नाथ ओझा ने विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से इन सारे मुद्दों पर पक्ष रखा। उन्होंने कहा, 'इन कर्मियों के वेतन भुगतान की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, लेकिन इसके लिए मैं कोई समय सीमा नहीं बता सकता। यह हमारा अधिकार तो नहीं है, कुलपति ही इसे जारी कर सकते हैं। प्रो ओझा ने बताया कि पहले रेगुलर शिक्षकों के दो महीने का वेतन भुगतान किया जाएगा, इसके बाद 49 कर्मियों के पेमेंट पर काम होगा'।
उन्होंने इस बात से भी साफ इनकार किया कि राम सोहित मंडल को विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से प्रताड़ित किया जा रहा था। प्रो आरएन ओझा ने कहा, कोई किसी को क्यों इस तरह प्रताड़ित करेगा।
कुलपति पर कमीशनखोरी का आरोप
पीयू शिक्षक संघ के संयुक्त सचिव अभिषेक आनंद ने वीसी पर कमीशनखोरी का आरोप लगाया है। उन्होंने हमें बताया, हर कर्मी से 30 परसेंट मांगा गया। कहा गया कि आप अपनी सैलरी का 30 परसेंट दे दीजिए, तो आपको सैलरी दे देंगे।
वहीं, बीते 24 जून को संघ के अध्यक्ष मनोज कुमार सिंह सहित आठ अन्य ने 22 जून को पुलिस उपाधीक्षक को एक आवेदन लिखा था। इसमें कहा गया है कि चार जून को डीएम के साथ हुई बैठक में सहमति के बावजूद भी हमें वेतन नहीं दिया गया और अब इसमें देरी किया जा रहा है। भुगतान के बदले पैसे की मांग की जा रही है।
शिक्षक संघ के संयुक्त सचिव अभिषेक आनंद का कहना है,'जब से यह विश्वविद्यालय बना है तब से यहां कोई काम नहीं हुई है। केवल प्रताड़नाएं हुई है। कुलपति विश्वविद्यालय में अपनी मनमानी चला रहे हैं। इनके खिलाफ जो भी जाता है या तो उसे सस्पेंड कर दिया जाता है या फिर कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता है'।
बीती 13 जून को अभिषेक आनंद के साथ डॉ मनोज कुमार सिंह और डॉ विनोद कुमार ओझा को निलंबित किया गया। इनके खिलाफ विश्वविद्यालय के कार्यों में बाधा पैदान करने सहित अन्य आरोप हैं।
49 कर्मियों की वेतन भुगतान में देरी के अलावा अन्य मामले
लॉकडाउन के दौरान डेप्युटेशन पर भेजने से एक का डिप्रेशन में जाना
16 मई को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा आठ शिक्षकेत्तर कर्मचारियों को अलग-अलग कॉलेजों में प्रतिनियुक्ति कर दी जाती है। एक सूत्र की मानें तो इन सभी ने अपने वेतन को लेकर अपनी आवाज बुलंद की थी, जिसकी सजा इन्हें देशव्यापी लॉकडाउन के बीच दी जाती है।
इनमें से ही एक 27 वर्षीय अनुज आनंद हैं। बीते 16 मई को उनकी प्रतिनियुक्ति पूर्णिया से 30 किलोमीटर दूर गवर्मेंट डिग्री कॉलेज, बायसी कर दिया जाता है। इसके बाद अनुज ने 18 मई को कुलसचिव को एक पत्र लिखकर अग्रिम वेतन भुगतान, लॉकडाउन के दौरान आवश्यक पास और आवाजाही के लिए साधन की मांग की थी, लेकिन अनुज की मानें तो कुलसचिव ने उनकी इन मांगों को दरकिनार कर दिया।
अनुज बताते हैं कि इन सारी परेशानियों के चलते वे डिप्रेशन में चले गए। साथ ही, प्रतिनियुक्ति के फैसले ने उन्हें भीतर से तोड़ने का काम किया। इसके बाद वे काम के दौरान ही डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं और उनके मस्तिष्क के बायें हिस्से में सूजन हो जाता है। इससे उनका दायां हाथ अभी 20 परसेंट कम काम कर रहा है।
अनुकंपा आधारित कर्मियों का वेतन चार साल से लंबित
जून 2016 में बीएन मंडल विश्वविद्यालय अनुकंपा पर आधारित 67 लोगों की नियुक्ति करता है। मार्च 2018 में इनमें से 24 कर्मी नए पूर्णिया विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार में आ जाते हैं। इनमें से कार्यरत सभी 21 कर्मियों का वेतन भी चार साल से लंबित है और ये सब भी धरने पर हैं।
इनमें से एक ने नाम सार्वजनिक करने की शर्त पर हमसे बात की। वे कहते हैं,'नियुक्ति के छह महीने बाद भी जब हमें वेतन नहीं मिला था तो उस वक्त बीएन मंडल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अवध किशोर राय से मुलाकात की। उन्होंने तत्काल सभी को तत्काल एक-एक लाख रुपये देने का आदेश दिया। साथ ही जब तक नियमित वेतन नहीं मिलता है, तब तक के लिए 15, 000 रुपये प्रति माह भी दिया जाने लगा। लेकिन, पीयू के क्षेत्राधिकार में आने के बाद कुलपति ने इसे बंद कर दिया'।
पदोन्नति के फायदे से वंचित 92 शिक्षक
साल 2018 की शुरुआत में बीएन मंडल यूनिवर्सिटी ने वर्षों से लंबित कई शिक्षकों को पदोन्नत किया था। हालांकि मार्च 2018 में पीयू के बनने के बाद इसके वीसी प्रो राजेश सिंह ने इनकी पदोन्नति पर कोई फैसला नहीं लिया। पूर्णिया विश्वविद्यालय के क्षेत्राधिकार में आने वाले 92 शिक्षकों को अब तक पदोन्नति का इंतजार है।
इनमें से एक शंभू लाल वर्मा पूर्णिया कॉलेज में 1992 से कार्यरत हैं। वे हमसे कहते हैं,'राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों में पदोन्नति लागू हो गई, लेकिन यहां हकमारी हो रही है। बीएन मंडल विश्वविद्यालय उस समय अथॉरिटी था और सारी प्रक्रियाओं को उसने ही पूरा किया था, लेकिन हमारे कुलपति इसे नहीं मानते हैं'।
शंभू लाल वर्मा आगे बताते हैं, 'फारबिसगंज कॉलेज के इन चार्ज प्रिंसिपल अशोक कुमार श्रीवास्तव की मौत पदोन्नति का इंतजार करते.करते हो गई। इसके अलावा कटिहार स्थित एक अन्य शिक्षक कामता प्रसाद की भी मौत हार्ट अटैक से हुई'।
सारांश में कहा जाता सकता है कि वीसी प्रो राजेश सिंह का कार्यकाल नियमित शिक्षकों और अन्य कर्मियों के लिए तकलीफदेह ही दिखाई दे रहा है। साथ ही, उनके नेतृत्व में इस विश्वविद्यालय के केवल दो साल के इतिहास में ही कई काले अध्याय शामिल हो चुके हैं।