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बिहार

20 साल की विधायकी में सत्यदेव राम की संपत्ति में मामूली वृद्धि, पार्टी ने अपने फंड से बनवाया मकान

Janjwar Desk
23 Nov 2020 11:13 AM GMT
20 साल की विधायकी में सत्यदेव राम की संपत्ति में मामूली वृद्धि, पार्टी ने अपने फंड से बनवाया मकान
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दरौली विधानसभा सीट से विधायक चुने गए सत्यदेव राम के पास न लगभग 7 धुर, यानि 475 वर्गफुट के पैतृक जमीन पर बना मकान है, उसमें भी एक फ्लोर पार्टी ने अपने फंड से बनवाया है......

राजेश पाण्डेय की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो/पटना। इस बार कटिहार जिला के बलरामपुर विधानसभा सीट से सीपीआई माले के टिकट पर विधायक चुने गए महबूब आलम के पास पक्का घर न होने की खबर सुर्खियों में रही, पर उसी पार्टी के दरौली विधानसभा सीट से विधायक चुने गए सत्यदेव राम के पास न लगभग 7 धुर, यानि 475 वर्गफुट के पैतृक जमीन पर बना मकान है, उसमें भी एक फ्लोर पार्टी ने अपने फंड से बनवाया है, जबकि दो कमरों का दूसरा फ्लोर विधायक ने खुद बनवाया है। हालांकि उनका ज्यादातर समय क्षेत्र में गुजरता है और वहां किसी कार्यकर्ता के घर पर ही उनका बसेरा होता है।

दरौली से पांचवी बार विधायक चुने गए सीपीआई माले के सत्यदेव राम को पार्टी विधायक दल का उपनेता चुना गया है। सीवान जिला के दरौली प्रखंड के कृष्णपाली गांव निवासी स्वर्गीय राजवंशी राम के पुत्र सत्यदेव राम ने 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के रामायण राम को हराया है। वे एक गरीब परिवार से आते हैं और कभी उन्होंने बाजार में बैठकर मोची का काम भी किया था। हालांकि आज के दौर में जब मुखिया और समिति सदस्य बनने के बाद नेताओं की संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ती है, सत्यदेव राम बारे में एक खास बात है कि उनकी संपत्ति में पिछले कई वर्षों में मामूली वृद्धि ही हुई है।

सत्यदेव राम ने साल 2010 में अपने चुनावी हलफनामे में जानकारी दी थी कि उस वक्त उनकी कुल संपत्ति महज 3 लाख 17 हजार रुपये मूल्य की थी, हालांकि उस वक्त भी वे दो दफा विधायक रह चुके थे। साल 2015 के चुनावी हलफनामे के अनुसार उनकी कुल संपत्ति 11 लाख 36 हजार रुपये मूल्य की हो गई। वहीं साल 2020 के हलफनामे के अनुसार उनकी कुल संपत्ति 30 लाख 59 हजार रुपये मूल्य की थी, जिसमें लगभग 20 लाख की चल और 10 लाख 59 हजार की अचल संपत्ति थी।

पिछले एक दशक में सत्यदेव राम की संपत्ति में महज 27 लाख 42 हजार रुपये की वृद्धि हुई है, वह भी तब, जब इस दौरान वे लगातार विधायक रहे हैं। यह वृद्धि उनके द्वारा विधायक के रूप में सरकार से प्राप्त किए गए वेतन और अचल संपत्ति के बाजार मूल्य में हुई वृद्धि को देखते हुए नगण्य ही कही जाएगी।

सत्यदेव राम का जीवन संघर्ष भरा रहा है। 1988 से राजनीति में कदम रखने वाले सत्यदेव राम 3 बार मैरवा विधानसभा से विधायक रहे हैं। वर्तमान में दरौली विधानसभा सीट से विधायक हैं। सत्यदेव राम अपने राजनीतिक जीवन में रहते हुए तीन बार जेल जा चुके हैं। पिछले कार्यकाल के 5 सालों में से 2 साल वो जेल में रहे। चिल्हमरवा में हुए दोहरे हत्याकांड के मामले में उन्हें जेल हुई थी और 2015 के विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन करते समय ही सत्यदेव राम को गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद वो जेल में रहते हुए ही चुनाव लड़े और न सिर्फ लड़े बल्कि जीत भी दर्ज की थी।

सत्यदेव राम का राजनीतिक सफर लगभग तीन दशक पहले शुरू हुआ था। साल 1987 में गरीबों पर हो रहे जुल्म के खिलाफ मोची का काम छोड़कर जनवरी 1988 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी के प्रदेश किसान सभा इकाई को जॉइन किया और उसी समय घर छोड़ दिया। सत्यदेव राम डॉ भीमराव अंबेडकर के आदर्शों के पदचिन्ह पर चलने तथा दहेज प्रथा को समाप्त करने के मुहिम में लग गये। 1988 से राजनीतिक सफर शुरू करने वाले सत्यदेव राम को भाकपा माले ने 1995 में तत्कालीन मैरवा विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया। सत्यदेव राम ने तत्कालीन विधायक कांग्रेस के गोरख राम को पराजित कर दिया और ग्यारहवीं विधानसभा के सदस्य बन गये।

'जनज्वार' से खास बातचीत में सत्यदेव राम कहते हैं 'मेरा जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। पैतृक संपत्ति के नाम पर गांव में 7 धुर का आवासीय भूखंड और तीन-चार कट्ठा कृषि भूमि है। यह कृषि भूमि भी कई टुकड़ों में है, जिस कारण उस पर खेती नहीं हो सकती। उन्होंने मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त की है। इंटरमीडिएट में नामांकन के लिए उनका सेलेक्शन एक बड़े स्कूल में हुआ, पर पैसे के अभाव की वजह से एडमिशन नहीं ले सके और आगे उनकी पढ़ाई बंद हो गई।'

विधायक सत्यदेव राम के पास कभी यह मकान भी नहीं था। मिट्टी के पैतृक मकान में रहा करते थे। उनके ऊपर कुछ केस-मुकदमे थे। उस दौर में उनका वह मकान भी ध्वस्त हो गया। जिस कारण उन्हें और उनके परिवार को रहने की परेशानी होने लगी। जिसके बाद पार्टी की ओर से उनकी पैतृक भूमि पर दो कमरे बनवाए गए और उनका परिवार वहां रहने लगा।

सत्यदेव राम कहते हैं 'विधायक के पद पर रहने से लगभग पौने दो लाख रुपये वेतन मिलता है, पर परिवार के भोजन, बच्चों की पढ़ाई और जीवन यापन के लिए कुछ राशि रखकर शेष राशि वे पार्टी फंड में दे देते हैं। एक बेटा है, जो क्रिकेट के मैदान में अपना कैरियर बनाने की कोशिश कर रहा है और एक बेटी दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही है। राजनीति के इतर अर्थोपार्जन के लिए और कोई साधन नहीं है।'

एक बार राजनीति में कदम रखने के बाद जनसमस्याओं को लेकर संघर्ष की बदौलत सत्यदेव राम ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बिहार विधान सभा चुनाव 2000 में पुनः पार्टी के उम्मीदवार बनाये गये और राजद-सीपीएम गठबंधन के उम्मीदवार गिरधारी राम को हराकर लगातार दूसरी बार विधानसभा पहुचे।

फरवरी 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी वे पार्टी की ओर से उम्मीदवार बने। उन्होंने जीत की हैट्रिक भी लगाई, लेकिन सरकार नही बन सकने के कारण तीन माह राष्ट्रपति शासन रहने के बाद नवंबर 2005 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। इस बार के चुनाव में वे महज 280 मत के अंतर से भाजपा के रामायण मांझी से चुनाव हार गये। नवंबर 2005 के चुनाव के बाद परिसीमन बदल गया और दरौली विधानसभा क्षेत्र को अनुसूचित जाति के लिये आरक्षित किया गया। नये परिसीमन में पंद्रहवीं बिहार विधानसभा का चुनाव 2010 में हुआ जिसमें भाजपा के प्रत्याशी तत्कालीन विधायक रामायण मांझी ने पराजित कर सत्यदेव राम फिर से विधायक बन गए और अबतक लगातार विधायक हैं।

बता दें कि इससे पहले कटिहार जिला के बलरामपुर विधानसभा सीट से भाकपा माले के टिकट पर विधायक चुने गए महबूब आलम के पास पक्का घर न होने की खबर भी सुर्खियों में रही थी। महबूब आलम चौथी बार इस सीट से विधायक बने हैं। चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में महबूब आलम ने अपनी कुल संपत्ति, हाथ में नकदी और बैंक की जमाराशि मिलाकर एक लाख रुपये के करीब बताई है।

महबूब आलम बलरामपुर विधानसभा के आबादपुर थाना क्षेत्र में पड़ने वाले शिवानंदपुर गाँव में 800 वर्ग फ़ुट के मकान में रहते हैं। चार बार विधायक रहने के बाद भी उनके पास अपना पक्का घर नहीं है। दूसरा ये भी बड़ी बात रही कि महबूब आलम को न सिर्फ सीमांचल बल्कि पूरे बिहार में सबसे अधिक मार्जिन जीत हासिल हुई है।

अपने घर की स्थिति को लेकर महबूब आलम ने एक इंटरव्यू में बताया था, मैं एक मार्क्सवादी हूं और मैने अपना पूरा जीवन वर्ग संघर्ष में लगाया है। मैं विधायक हूं और फिर भी मेरे पास पक्का मकान नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इस देश में हजारों लाखों लोगों के पास पक्का मकान नहीं है। हमारा संघर्ष उन लोगों के लिए है न कि अपने लिए।

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