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राष्ट्रीय

Bilkis Bano gang rape के दोषी रिहाई से पहले 1000 से अधिक दिनों तक पेरोल पर जेल से रहे थे बाहर

Janjwar Desk
19 Oct 2022 10:35 AM IST
Bilkis Bano Gang rape case : ये क्या, नैतिकता को भूलने वाले मंत्री सभी को पढ़ा रहे कानून का पाठ, दोषियों की रिहाई को जबरन ठहरा रहे सही, कहां हैं मोरल पुलिसिंग के हिंदूवादी ठेकेदार। अब बोलते क्यों नहीं।
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Bilkis Bano Gang rape case : ये क्या, नैतिकता को भूलने वाले मंत्री सभी को पढ़ा रहे कानून का पाठ, दोषियों की रिहाई को जबरन ठहरा रहे सही, कहां हैं मोरल पुलिसिंग के हिंदूवादी ठेकेदार। अब बोलते क्यों नहीं।

Bilkis Bano gang rape case : गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) से कहा कि बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों ने 14 साल और उससे अधिक समय जेल में काट लिया था। इस दौरान सभी का व्यवहार अच्छा पाया गया था, इसलिए रिहा करने का फैसला लिया गया। रिहा करने से पहले केंद्र ने भी अपनी मंजूरी दे दी थी।

Bilkis Bano gang rape case : दो दशक पहले हुए गुजरात दंगों ( Gujrat riots 2002 ) के दौरान कुछ लोगों ने नफरत और मानवीयता की सारी हदें पार करते हुए बिलकिस बानो ( Bilkis bano ) के साथ गैंगरेप ( Gang rape ) की घटना को मार्च 2002 में अंजाम दिया था। हत्यारे यहीं पर नहीं रुके, इंसानियत को शर्मसार करते हुए गैंगरेप के दौरान ही उनके परिजनों की हत्या भी उन्हीं के सामने कर दी। सच तो यह है कि बिलकिस की असीम पीड़ा और अकल्पनीय दर्द को आप गहराई से तब जान पाएंगे जब यह जानेंगे कि दोषियों ने ऐसा उस सयम किया जब वो गर्भवती थी।

अब आप जानिए, थका देने वाली न्यायिक प्रक्रिया के बाद इस घटना के 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा मिली। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 10 दोषियों को गुजरात की भाजपा सरकार ( BJP Government) ने रिहाई से पहले 1000 दिनों से अधिक समय के लिए जेल से बाहर रहने का मौका दिया। इसके लिए कानूनी दांवपेंच का सहारा लिया गया। ये लोग पैरोल और फरलो के प्रावधान का लाभ उठाते हुए जेल से बाहर रहे और व्यवस्था ने उनकी इस काम में भरपूर मदद की। सबसे कम जेल से बाहर रहने वाले बाकाभाई वहोनिया हैं। इन्हें अन्य दोषियों की तुलना में सबसे कम यानि 998 दिन जेल से बाहर रहने का मौका मिला।

इन सभी को अच्छे व्यवहार के चलते गुजरात सरकार ( Gujrat Government ) ने इसी साल 15 अगस्त के दिन रिहा कर दिया था। इन लोगों को ठीक उसी दिन रिहा किया गया जिस दिन पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा होता है।

2 दिन पहले गुजरात सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश हलफनामे के मुताबिक रमेश चंदना को सबसे ज्यादा 1576 दिनों के लिए जेल से बाहर रहने का मौका दिया गया। वह 1198 दिन पैरोल और फरलो पर 378 दिन जेल से बाहर रहे। चंदना ने अपनी रिहाई से पहले पैरोल और फरलो पर जेल से बाहर चार साल से अधिक समय बिताया। जनवरी और जून 2015 के बीच 14 दिनों की छुट्टी 136 दिनों में बदल गई। गुजरात हलफनामे के विवरण से यह स्पष्ट होता है कि 11 दोषियों को औसतन 1176 दिनों की छुट्टी फरलो, पैरोल और अस्थायी जमानत के रूप में मिली। बकाभाई वहोनिया 998 दिनों के लिए जेल से बाहर रहा था।

अब इसे भी जान लीजिए

आमतौर पर एक महीने की अधिकतम अवधि के साथ अल्पकालिक कारावास के मामले में किन्हीं विशेष कारण के लिए पैरोल दी जाती है, जबकि लंबी अवधि की सजा में न्यूनतम समय अवधि की सेवा के बाद आमतौर पर अधिकतम 14 दिनों के लिए पैरोल दी जाती है। जबकि फरलो मांगने के लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं है। यह कैदी को कोई कानूनी अधिकार प्रदान नहीं करता है। बस, कानून के इन्हीं प्रावधानों को 11 दोषियों ने भरपूर फायदा उठाया। या यूं कहिए कि भाजपा सरकार ने उन्हें ऐसा करने दिया।

रिहा करने के पीछे गुजरात सरकार का तर्क

गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को रिहा करने का फैसला किया क्योंकि दोषियों ने 14 साल और उससे अधिक उम्र जेल में बिताया और इस दौरान उनका व्यवहार अच्छा पाया गया था। केंद्र सरकार ने भी छोड़ने के प्रस्तावों को अपनी मंजूरी दे दी थी।

इन लोगों ने किया रिहाई का विरोध

कैदियों को दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दायर अपने हलफनामे में गुजरात सरकार ने यह भी कहा कि मार्च 2021 में पुलिस अधीक्षक, सीबीआई विशेष अपराध शाखा, मुंबई और विशेष नागरिक न्यायाधीश (सीबीआई)) सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट, ग्रेटर बॉम्बे ने कैदियों की जल्द रिहाई का विरोध किया था।

मानवता के खिलाफ अपराध का सबसे घिनौना रूप

सीबीआई ने पिछले साल उनकी समय से पहले रिहाई का विरोध करते हुए कहा था कि उन्होंने एक "जघन्य, गंभीर और गंभीर" अपराध किया है। एक विशेष न्यायाधीश ने भी रिहाई का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि अपराध केवल इस आधार पर किया गया था कि पीड़ित एक विशेष धर्म के हैं। इस मामले में यहां तक कि नाबालिग बच्चों को भी नहीं बख्शा गया था। यह घृणा अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध का सबसे खराब रूप है। यह समाज की चेतना को प्रभावित करता है। इस बात का जिक्र विशेष न्यायाधीश आनंद एल यावलकर ने पिछले साल मार्च में गोधरा उप-जेल के अधीक्षक को लिखे पत्र में कहा था।

जेल समिति ने की थी रिहाई की सिफारिश

गुजरात जेल सलाहकार समिति ने 11 दोषियों की रिहाई की सिफारिश की थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कैदियों के 14 साल जेल में पूरा कर लिया है। गोधरा उप-जिला जेल प्राधिकरण की टिप्पणी के आधार पर हमने ये फैसला लिया है कि सभी 11 दोषियों के बेहतर आचरण और गतिविधि को देखते हुए इन्हें अब रिहा कर देना चाहिए।

दोषियों ने पैरोल के समय गवाहों को दी थी धमकियां

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 11 दोषी अपने जेल कार्यकाल के दौरान लगातार पैरोल और फरलो पर बाहर रहे। इस दौरान सजायाफ्ता कैदियों ने कई गवाहों को धमकियां भी दी थी। गवाहों ने इस बात की शिकायत भी की थी।

मामला विचाराधीन है मैं टिप्पणी नहीं कर सकता : गृह सचिव

गुजरात के राज्य सचिव (गृह) राज कुमार ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सरकार ने पहले ही अदालत के सामने तथ्यों को रखा था। उन्होंने कहा कि यह मामला अदालत के सामने विचाराधीन है। मैं इस पर आगे कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। इस तरह की टिप्पणी करने वालों में दाहोद के एसपी, सीबीआई और मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत के अलावा दाहोद कलेक्टर, अतिरिक्त डीजीपी (कारागार) और गोधरा के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश भी शामिल हैं। इन लोगों ने इस मामले में अपनी आपत्ति जताई थी। गुजरात गृह विभाग ने केवल इतना कहा कि राज्य सरकार कलेक्टर की अध्यक्षता वाली जेल सलाहकार समिति की सिफारिश से सहमत है।

Gujrat news : 20 साल पहले क्या हुआ था




गुजरात दंगों ( Gujrat riots 2002 ) के दौरान दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में 3 मार्च, 2002 को भीड़ ने 14 लोगों की हत्या कर दी थी। इसी दौरान बिलकिस बानो का सामूहिक बलात्कार ( Bilkis Bano gang rape case ) किया गया। तब वो गर्भवती थी। मारे गए लोगों में उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी। इस मामले में अदालत ने 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी, लेकिन गुजरात सरकार ने 14 साल का समय पूरा होने के बाद सभी को रिहा कर दिया। सरकार के इस फैसले के खिलाफ पीड़ित पक्ष ने विरोध किया। अब इस मामले में दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली तीन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई जारी है।


Bilkis Bano gang rape case : दोषियों का असली सच

1. रमेश भाई रूपाभाई चंदना रिहाई से पहले 1576 दिन जेल से बाहर रहे। इनमें 1198 दिन पैरोल और 378 दिन फरलो पर शामिल है।

2. जसवंत नाई रिहाई से पहले पैरोल 950 दिन और फरलो पर 219 दिन जेल से बाहर रहे। यानि 1169 जेल से बाहर रहने का मौका मिला।

3. शैलेश भट्ट रिहाई से पहले पैरोल पर 934 दिन और फरलो पर 163 दिन जेल से बाहर रहे। इन्हें रिहाई से पहले 1103 दिन जेल से बाहर रहने का मौका मिला।

4. बिपिन चंद्र जोशी को पैरोल पर 909 दिन और फरलो पर 170 दिन बाहर रहे। यानि इनको रिहाई से पहले 1079 दिन तक जेल से बाहर रहने का मौका मिला।

5. प्रदीप मोधिया रिहाई से पहले पैरोल 1011 दिन और फरलो 223 दिनों तक जेल से बाहर आजाद रहे। मोधिया 1234 दिन के लिए जेल से बाहर रहे।

6. बाकाभाई वहोनिया रिहाई से पहले पैरोल 807 दिन और फरलो 191 दिन जेल से बाहर रहे। यानि इनको 998 दिन तक सरकार की ओर से जेल से बाहर रहने का मौका मिला।

7. राजूभाई सोनी रिहाई से पहले पैरोल पर 1166 दिन और फरलो पर 182 दिन बाहर रहे। कुल 1348 दिन जेल से बाहर रहने का इन्हें अवसर मिला।

8. मितेश भट्ट पैरोल पर 771 दिन और फरलो 234 दिन जेल से बाहर रहे। रिहाई से पहले 1005 दिन जेल से बाहर रहने का मौका मिला।

9. रोधश्याम शाह को पैरोल 895 दिन ओर फरलो 154 दिन जेल से बाहर रहे। शाह को कुल 1049 दिन जेल से बाहर रहने का अवसर मिला।

10. केशरभाई वोहोनिया को पैरोल 972 दिन और फरलो 203 दिन, यानि कुल 1175 दिन ये भी जेल से बाहर रहे।

11. गोविंद नाई को पैरोल 986 दिन और फरलो 216 दिन जेल से बाहर रहे। इन्हें 1202 रिहाई से पहले जेल से बाहर रहने दिया गया।

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