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राष्ट्रीय

Birbhum Massacre : हिंसा का बदला हिंसा, बीरभूम में नरसंहार का खेला, जवाब दो ममता?

Janjwar Desk
24 March 2022 8:24 AM GMT
जिस रामपुरहाट में जिंदा जला दिए गए 8 लोग, वहीं से बड़ी मात्रा में बम बरामद, हाई अलर्ट
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बीरभूम के रामपुरहाट गांव में 6 बैरल भरे हुए देशी बम बरामद।

Birbhum Massacre : पिछले 50 साल में बंगाल में कांग्रेस, CPIM और तृणमूल पार्टी सत्ता में आई, लेकिन राजनीतिक हिंसा का खेल बंद नहीं हुआ।

Birbhum Massacre : पश्चिम बंगाल ( West Bengal ) के बीरभूम जिले के बोगटुई ( Birbhum Massacre ) गांव में सोमवार यानि 21 मार्च की रात को दो गुटों के बीच लड़ाई में 10 लोगों को जिंदा जला दिया गया। देश और दुनिया में इस अमानवीय घटना को लेकर बंगाल सुर्खियों में है। साथ ही शर्मसार भी है। ममता सरकार ( Mamata Government ) पर कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठ रहे हैं और उनके पास इन सवालों का जवाब नहीं है।

वैसे, बंगाल में हिंसा के बदले प्रतिहिंसा कोई नई बात नहीं है। इस बार अंतर केवल इतना है कि हिंसक गतिविधयों में शामिल लोग जिस सत्ता के संरक्षण के दम पर विरोधियों का सफाया अभी तक करते आये उसी के दुष्चक्र में फंसकर लोगों ने आपस में ही एक-दूसरे की हत्या कर दी। यानि हिंसा की इस राजनीति में अब टीएमसी ( TMC ) खुद झुलसने लगी है। यही वजह है कि ममता बनर्जी ( Mamata banerjee ) घटना के तीन दिन बाद भी चुप हैं। उनकी ये चुप्पी बंगाल सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी है। इसके बावजूद ताज्जुब यह है कि बदले की राजनीति से राज बेपर्दा न हो जाए, इस बात को सुनिश्चित करने के लिए टीएमसी अब भी मगजमारी में जुटी है, उनके नेता विरोधियों पर ही सवाल उठा रहे हैं। पर, इसका असर बहुत कम हो रहा है। लोग जान गए हैं कि टीएमसी के दो गुटों के लोगों ने आपसी रंजिश में खूनी खेल क्यों खेला।

ममता सरकार को सवालों का जवाब तो देना होगा

बंगाल को बदनाम और मर्माहत करने वाली इस घटना के बाद अब सीएम ममता बनर्जी ( Mamata banerjee ) से सवाल पूछे जा रहे हैं, क्या यही है बंगाल की पहचान, क्या हमने आपको इसी दिन के लिए बार-बार चुना, अगर नरसंहार को ही बंगाल की पहचान बनाए रखना है तो फिर आप किस बंगाली अस्मिता की बात करती हुई नहीं थकतीं, बंगाल के लोग तो बुद्धि चातुर्य, सांस्कृतिक धरोहर, टैगोर की विश्व शांति, स्वामी विवेकानंद और राम कृष्ण मिशन के संदेश, बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए जाने जाते हैं। ममता दीदी, बताइए, अगर ये सच है तो फिर आपके बंगाल में ये सब क्या हो रहा है?

बंगाली समाज ने कम्युनिस्टों के आतंक खुद को बचाने के लिए आपके हाथों में सत्ता की चाबी सौंपी दी थी न, आपको दुर्गा का रूप माना ना, आपके स्थानीय और बाहरी के नारे पर भरोसा करते हुए एक साल पहले फिर से मुख्यमंत्री बनाया न, क्या यही दिन देखने के लिए, कि बंगाल में नरसंहार का दौर चलेगा और उसमें हम अपनों को मरते देखते रहेंगे। जो बोलेगा उसका सफाया होगा, बंगाल श्मशान घाट में तब्दील होगा, चुप क्यों हैं, हमारी शेरो वाली माता - ममता दीदी, जवाब दीजिए।

Political Violence : बीरभूम में 22 साल में ली 41 की जान

दरअसल, बीरभूम ही नहीं बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास दशकों पुराना है। इससे पहले बीरभूम जिले के नानूर में 2000 में 11 किसानों को घर में बंद कर जिंदा जला दिया गया था। तब इस घटना ने पूरे देश को हिला दिया था। आज बीरभूम ने आठ लोगों को जिंदा जलाने की घटना से बंगाल के साथ पूरा देश फिर से मर्माहत है। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में पिछले 21 साल में राजनीतिक हिंसा की 8 बड़ी घटनाएं हुई हैं। इनमें 41 लोगों की जान जा चुकी है।

1. 27 जुलाई 2000 को बीरभूम के नानूर में 11 मजदूरों को जिंदा जला दिया गया था। एक विवादित जमीन पर खेती करने की वजह से CPIM कार्यकर्ताओं ने 11 मजदूरों को जिंदा जला दिया था। इस मामले में जांच के बाद 82 CPIM कार्यकर्ताओं को आरोपी बनाया गया था, जिसमें 44 दोषी करार दिए गए।

2. 2009 के आम चुनाव में सत्ताधारी CPIM की राज्य में करारी हार हुई और तृणमूल कांग्रेस मुखर होने लगी। 30 जून 2010 को नानूर इलाके में CPIM कार्यकर्ताओं ने तृणमूल के एक कार्यकर्ता की गोली मारकर हत्या कर दी। इसका बदला लेने के लिए 200 से अधिक तृणमूल कार्यकर्ताओं ने बंगाल के कद्दावर नेता और पूर्व विधायक आनंद दास के घर के पास प्रदर्शन किया और उनकी घसीटकर हत्या कर दी।

3. 22 अप्रैल 2010 को बीरभूम के सुरी क्षेत्र के मोहम्मदपुर बाजार में आदिवासी और विशेष समुदाय के माफियाओां के बीच रेत उत्खनन को लेकर झड़प हुई। इस झड़प में 4 लोगों को मौके पर ही मार दिया गया था। 100 से ज्यादा घर फूंक दिए गए।

4. 2011 में पंचायत चुनाव के दौरान मोहम्मदपुर बाजार इलाके में तृणमलू और CPIM कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़प हुई। इस घटना में CPIM के 4 कार्यकर्ताओं की मौके पर ही हत्या हुई थी।

5. माकड़ा गांव में भाजपा और तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच झड़प में 4 की हत्या। चार में से भाजपा के 3 और तृणमूल के 1 कार्यकर्ता की हत्या हुइ्र थी। यह घटना 27 अक्टूबर 2014 माकड़ा गांव पर सियासी वर्चस्व को लेकर झड़प हुई थी।

6. बीरभूम के दरबारपुर गांव अवैध खनन और रेत तस्करी को लेकर CPIM और तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच विवाद इतना बढ़ा कि दोनों ओर से बमबाजी हुई। स्कूल और कॉलेजों पर भी दोनों गुट ने बम फेंकना शुरू कर दिया। इस हिंसक झड़प में 7 लोगों की मौत हुई थी।

7. 2021 में विधानसभा चुनाव के बाद पूरे बंगाल में पोस्ट पोल हिंसा शुरू हुई। इसमें बीरभूम सबसे अधिक सुर्खियों में था। राजनीतिक हिंसा में यहां एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। वहीं डर से हजारों परिवार ने पलायन शुरू कर दिया था। CBI जांच के दौरान बीरभूम से कई आरोपियों को गिरफ्तार भी कर चुकी है।

बंगाल में सत्ता बदली राजनीति हिंसा नहीं

पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा की शुरुआत 1970 में कांग्रेस और माकपा के बीच सत्ता संघर्ष से हुई। नब्बे के दशक में यह और भी अधिक तेजी से बढ़ी, जो अब तक निरंतर जारी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ( NCRB ) ने 2018 की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 2018 में बंगाल में 12 हत्याएं हुईं हैं। 1999 से 2016 के बीच पश्चिम बंगाल में हर साल औसतन 20 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। इनमें सबसे ज्यादा 50 हत्याएं 2009 में हुईं। ममता सरकार ने 2019 से NCRB को राजनीतिक हत्या का आंकड़ा देना बंद कर दिया। पिछले 50 साल में बंगाल में कांग्रेस, CPIM और तृणमूल पार्टी सत्ता में आई, लेकिन राजनीतिक हिंसा का खेल बंद नहीं हुआ।

इसी बीरभूम में टैगोर ने की थी शांति निकेतन की स्थापना

1901 में रविंद्रनाथ टैगोर ने बीरभूम के वोलपुर में शांति निकेतन की स्थापना की थी। 1919 में उन्होंने 'कला भवन' के नाम से एक स्कूल की नींव रखी थी, जो 1921 में विश्वभारती विश्वविद्यालय का एक हिस्सा बन गया।

Birbhum Massacre : बता दें कि ताजा बीरभूम हत्याकांड ( Birbhum Violence ) में अब तक 20 आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं। सभी आरोपी स्थानीय हैं और उनकी उम्र 20 से 25 वर्ष के बीच है। आरोपियों को बुधवार को कोर्ट में पेश किया जहां किसी भी वकील ने उनका केस नहीं लिया। रामपुरहाट के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी सौविक डे ने 10 आरोपियों को 14 दिनों की पुलिस हिरासत में भेजते हुए घटना को भयानक, भयावह और बर्बर बताया। बाकी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। दूसरी तरफ कलकता हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है। हाईकोर्ट में इस नरसंहार पर आज सुनवाई भी होनी है। वहीं ममता बनर्जी, कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी, भाज्पा का प्रतिनिधिमंडल आज बीरभूम पहुंचने वाला है।

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