Chhattisgarh News : नरसंहार पर बवाल, मारे गए लोग नक्सल नहीं आदिवासी थे, कांग्रेस ने क्यों रमन सिंह से माफीनामे की मांग की
नरसंहार के लिए भाजपा की तत्कालीन सरकार दोषी थी।
Chhattisgarh News : छत्तीसगढ़ में लंबे अरसे तक भाजपा सरकार ( BJP Government ) के कार्यकाल के दौरान आदिवासियों के नरसंहार ( Tribal Massacre ) को लेकर नए सिरे से सियासी बवाल चरम पर है। सियासी बवाल को हवा सोमवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा विधानसभा में करीब नौ साल पहले आठ आदिवासियों की हत्या को लेकर जस्टिस वीके अग्रवाल आयोग की रिपोर्ट ( Justice VK Agrawal Commission Report ) पटल पर रखा। रिपोर्ट में बताया गया है कि करीब नौ साल पहले सुरक्षा बलों ने जिन आठ लोगों की हत्या की थी वो आदिवासी ( Tribal ) थे न कि नक्सल ( Naxal ) ।
विधानसभा के पटल पर पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार इस मामले में दोषियों के खिलाफ तेजी से क़ानूनी कार्रवाई की दिशा में कदम उठाएगी। सीएम भूपेश बघेल ( CM Bhupesh Baghel ) ने कहा कि इस मामले में किसी भी दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
रमन सिंह ( Raman Singh ) सहित पूरी भाजपा ( BJP ) माफी मांगे जांच रिपोर्ट से यह सामने आने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा है कि इस नरसंहार के लिए भाजपा की तत्कालीन सरकार दोषी थी। एड़समेटा ही नहीं रमन राज में समूचा बस्तर भाजपा सरकार ने आदिवासियों का कत्लगाह बना दिया था। बस्तर के आदिवासियों के लोकतांत्रिक संवैधानिक अधिकारो को रमन सरकार ने बंधक बना लिया था। 15 सालों तक भाजपा सरकार बस्तर में आदिवासियों पर अत्याचार करते रही है। एड़समेटा में चार नाबालिगों सहित 8 लोगों की हत्या की जांच के लिए पीड़ितों को न्याय दिलाने उस समय भी कांग्रेस तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शहीद नंदकुमार पटेल के नेतृत्व में राजभवन गई थी। उसके बाद ही न्यायिक जांच आयोग का गठन हुआ था। जरा भी नैतिकता बची हो तो भाजपा की प्रभारी पुरंदेश्वरी इस समय बस्तर में हैं,अपनी सरकार की इस क्रूर और अमानवीय कृत्य के लिए रमन सिंह सहित पूरी भाजपा बस्तर की जनता से माफी मांगें। भाजपा राज में राज्य के आदिवासियों को उनके घर गांव में घुस कर मारा गया। आदिवासियों को कभी नक्सली बताकर मार दिया जाता था, कभी नक्सलियों का मददगार बता कर सलाखों के पीछे डाल दिया जाता था।
परंपरागत त्यौहार मना रहे थे गांव के लोग
बीजापुर के एड़समेटा में कई पीढ़ियों से मनाए जा रहे परंपरागत त्यौहार के लिए गांव वाले इकट्ठा हुए थे। रमन सरकार ने उन पर बर्बरतापूर्वक हमला करवा कर क्रूर नरसंहार करवाया था। इस नरसंहार के बाद बस्तर की मातृशक्ति ने तत्कालीन भाजपा सरकार के खिलाफ आंदोलन किया था। एड़समेटा बीजापुर में किया गया एक साल के भीतर दूसरा नरसंहार था।
क्या कहा था रमण सिंह सरकार ने
तत्कालीरन सीएम रणम सिंह ने उस समय कहा था कि सुरक्षा बलों ने आत्मरक्षा के लिए गोली चलाई थी। जबकि जांच आयोग में स्पष्ट हो गया कि एड़समेटा में मासूम ग्रामीण इकट्ठा हुए थे।
जस्टिस वीके अग्रवाल आयोग की रिपोर्ट में क्या कहा?
जस्टिस वीके अग्रवाल आयोग ने पुलिस के इस दावे को पूरी तरह से फर्जी करार दिया है। अग्रवाल आयोग ने इस गोलीबारी में एक कॉन्स्टेबल की मौत को लेकर कहा है कि उनकी मौत भी।उनके ही साथियों की गोली से हुई थी। सुरक्षाबलों को बेहतर प्रशिक्षण और आवश्यक उपकरण उपलब्ध कराए जाने की अनुशंसा की है। आयोग की यह दूसरी रिपोर्ट है। इसमें यह बात सामने आई है कि माओवादियों के नाम पर भोले-भाले आदिवासियों की हत्या की गई है।
दरअसल, बीजापुर के गंगालूर थाना के एड़समेटा गांव में 17-18 मई 2013 की रात, कथित मुठभेड़ की घटना को लेकर व्यापक विरोध के बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज वीके अग्रवाल के रूप में एकल जांच आयोग का गठन किया था। जांच आयोग का कार्यकाल 6 महीने तय किया गया था लेकिन आठ साल बाद अब कहीं जाकर सदन में रिपोर्ट पेश की गई है। आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह घटना 'दहशत में प्रतिक्रिया' और सुरक्षा बलों द्वारा गोलीबारी के कारण हुई। मारे जाने वालों में तीन नाबालिग़ करम बुदरू, पुनेम लखू और करम गुड्डू समेत करम जोगा, पुनेम सोनू, करम पांडू, करम मासा, करम सोमलू और बुधराम गांव के आदिवासी थे।
सुरक्षा बलों ने जलती हुई आग के आसपास इकट्ठे लोगों को देखकर गलती से उन्हें नक्सली संगठन का सदस्य मान लिया। सबूतों के आधार पर साबित हो गया है कि आग के आसपास व्यक्तियों की सभा 'बीज पंडूम' उत्सव के लिए थीं। आयोग ने साफ शब्दों में कहा है कि मारे जाने वाले लोग नक्सली संगठन के नहीं थें। सुरक्षाबल के जवानों ने 44 राउंड फ़ायरिंग की थी, जिसमें अकेले देव प्रकाश ने 18 राउंड फ़ायरिंग की थी। जस्टिस वीके अग्रवाल आयोग ने कहा है कि सभी घायलों और मारे गए लोगों के परिजन को राज्य सरकार ने मुआवजा दिया था। जबकि राज्य की नीति में मृतक या घायल नक्सलियों या उनके परिजनों को मुआवज़ा नहीं दिया जाता। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार ने घायल व मृतकों को नक्सली के रुप में स्वीकार नहीं किया था।
बस्तर में 17 आदिवासियों की मौत भी फर्जी
Chhattisgarh News : इससे पहले 2019 में जस्टिस वीके अग्रवाल आयोग ने जून 2012 में बीजापुर के सारकेगुड़ा में हुए कथित मुठभेड़ में 17 माओवादियों के मारे जाने के पुलिस के दावे को फ़र्ज़ी कररार देते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मारे जाने वाले लोग गांव के आदिवासी थे। इस मामले में आज तक राज्य सरकार ने 17 निर्दोष आदिवासियों के मारे जाने के मामले में एफआईआर तक दर्ज नहीं की है।