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राष्ट्रीय

रुद्रपुर दंगे के आरोपियों को कोर्ट ने किया रिहा, 11 साल पहले गांधी जयंती पर हुआ था सांप्रदायिक दंगा-4 लोगों की हुई थी मौत

Janjwar Desk
5 Nov 2022 6:36 PM IST
Bihar News : SC/ST और महिला छात्रों से गलत तरीके से ली गई फीस तुरंत वापस करें, हाईकोर्ट ने दिया पटना के विश्वविद्यालयों को आदेश
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एक धार्मिक पुस्तक को लेकर उपजे सांप्रदायिक तनाव ने देखते ही देखते दंगे का रूप ने लिया था, जिसके बाद पूरा दिन सड़कों पर उपद्रवियों का तांडव दिखाई दिया था, इस तरह दो अक्टूबर 2011 का यह दिन रुद्रपुर के इतिहास में काले दिन के रुप में दर्ज हो गया था....

Dehradun news : ग्यारह साल पहले अहिंसा दिवस (गांधी जयंती) के दिन रुद्रपुर शहर में हुए सांप्रदायिक दंगों के सभी आरोपियों को कोर्ट ने शनिवार 5 नवंबर को दोषमुक्त करार दे दिया। इस दंगे में 4 लोगों की मौत हो गई थी, जिसमें कई मुकदमे दर्ज किए थे। दंगे के आरोपी भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन विधायक राजकुमार ठुकराल को कोर्ट द्वारा पहले ही दोषमुक्त किया जा चुका है, जबकि कुछ आरोपियों के मुकदमे को भारतीय जनता पार्टी की त्रिवेन्द्र सरकार ने वापस ले लिया था।

साल 2011 की गांधी जयंती के दिन जब देश अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बताए रास्ते पर चलने का संकल्प दोहरा रहा था ठीक इसी दिन रुद्रपुर शहर की सड़कों पर बलवायी इस शहर को आग में झोंक रहे थे। एक धार्मिक पुस्तक को लेकर उपजे सांप्रदायिक तनाव ने देखते ही देखते दंगे का रूप ने लिया था, जिसके बाद पूरा दिन सड़कों पर उपद्रवियों का तांडव दिखाई दिया था। इस तरह दो अक्टूबर 2011 का यह दिन रुद्रपुर के इतिहास में काले दिन के रुप में दर्ज हो गया था।

इस दंगे की वजह से रुद्रपुर शहर को कई दिनों तक कर्फ्यू से जूझना पड़ा था। दंगा नियंत्रित होने के बाद इसकी जवाबदेही तय करने के लिए कई मुकदमे दर्ज किए गए थे, जिसमें तत्कालीन भाजपा विधायक राजकुमार ठुकराल के सहित कई भाजपा नेता भी शामिल थे।

शनिवार 5 नवंबर को जिस मुकदमे में रुद्रपुर अपर जिला जज तृतीय रजनीश शुक्ला की अदालत ने फैसला सुनाया है उसमें 37 लोग नामजद किए गए थे, जिन्हें दंगे में हुई 4 मौतों के लिए जिम्मेदार बताया गया था। आरोपियों के अधिवक्ता जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दिवाकर पांडे ने बताया कि दंगे का यह पहला मूल मुकदमा था, जिसे कोतवाल आरएस असवाल ने दर्ज कराया था। अदालत ने पुलिस की विवेचना को संदिग्ध माना। पुलिस ने जिन लोगों को गवाह बनाया था, वही मुकर गए। पुलिस के बनाए गए गवाहों ने अदालत में साफ कहा कि जिस समय दंगा हुआ वह घर में थे और उनको कोई जानकारी नहीं है। जिसके बाद साक्ष्य के अभाव में अदालत ने सभी 37 आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया है।

इसी साल 31 मार्च को बरी हुए थे ठुकराल

रुद्रपुर दंगे के जिस मुकदमे के आरोपियों को शनिवार 5 नवंबर को कोर्ट ने बरी किया है, उससे इतर तत्कालीन भाजपा विधायक राजकुमार ठुकराल के खिलाफ भी एक मुकदमा दर्ज हुआ था। सुहेल अहमद के प्रार्थना पत्र पर न्यायालय के आदेश पर 28 अप्रैल, 2012 को रुद्रपुर के तत्कालीन भाजपा विधायक राजकुमार ठुकराल के खिलाफ यह मुकदमा दर्ज किया गया था, जिसमें सुहेल अहमद की ओर से ठुकराल सहित अन्य लोगों पर समुदाय विशेष की दुकानों को निशाना बनाने के साथ ही उसके सब्जी लेने जाने के दौरान रास्ते में मंजूर इलेक्ट्रिकल के पास जसी नाम के व्यक्ति को गोली मार हत्या करने व उसे गोली मार कर घायल करने का आरोप लगाया था।

सुहैल का आरोप था हथियारों से लैस उपद्रवियों की अगुवाई राजकुमार ठुकराल कर रहे थे। इस मुकदमे की सुनवाई के बाद तृतीय अपर जिला जज रजनी शुक्ला ने इसी साल 31 मार्च को अपना फैसला सुनाते हुए पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल व एक अन्य आरोपित पंकज कालरा को बरी कर दिया था।

भाजपा नगर अध्यक्ष का मुकदमा वापस लिया था त्रिवेन्द्र की राज्य सरकार ने रुद्रपुर दंगे में आरोपी बनाए गए भाजपा के नगर अध्यक्ष सहित कई लोगों के मुकदमा राज्य सरकार ने खुद वापस ले लिया था। इन पर दंगा भड़काने, हत्या, लूटपाट, बलवा करना आदि संगीन आरोप थे। कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने 28 अप्रैल 2012 को एक अन्य मुकदमा दर्ज किया था। इसमें तत्कालीन भाजपा नगर अध्यक्ष नत्थूलाल गुप्ता को नामजद किया था, जबकि कई अन्य अज्ञात बताए थे।

किच्छा के नसीम अहमद की तरफ से दर्ज रिपोर्ट में आरोपियों पर रमपुरा स्थित श्मशान घाट के समीप अफजाल नाम के व्यक्ति की हत्या का आरोप था। अफजाल पीलीभीत का रहने वाला था। नत्थूलाल ने तब कोर्ट में बताया था कि राजनीतिक षड्यंत्र के तहत उन्हें झूठा फंसाया गया। इस मुकदमे की जांच के दौरान विरमा कोली, मन्नू, गजेंद्र, जानी भाटिया समेत अन्य के नाम सामने आए थे। सीएम त्रिवेंद्र रावत ने देहरादून भाजपा महानगर अध्यक्ष के एक समारोह में ऐलान किया था कि राजनीतिक रंजिश के चलते जो मुकदमे दर्ज हुए हैं, सरकार उन्हें वापस लेगी, जिसके बाद 1 अगस्त 2017 को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के मंजूरी के बाद गृह विभाग ने इस मुकदमे को वापस ले लिया था।

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