प्रो. अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी का माले ने जताया कड़ा विरोध, सुप्रिया बोलीं कब तक नाम और धर्म देख करते रहेंगे कायराना हरकतें !

लखनऊ। भाकपा (माले) ने अशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. अली खान महमूदाबाद को फौरन और बिना शर्त रिहा करने की मांग की है। इसी के साथ पार्टी ने आइसा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष मनीष कुमार पर उनके सोशल मीडिया पोस्ट के कारण केस दर्ज करने के खिलाफ 21 मई को जनसंगठनों के राज्यव्यापी विरोध दिवस के आह्वान का सक्रिय समर्थन किया है।
माले के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने सोमवार 19 मई को जारी बयान में कहा कि देशभक्ति की आड़ लेकर अभिव्यक्ति की आजादी व असहमति को चुप कराने और लोकतंत्र को सीमित करने का पूरे देश में, विशेष रूप से भाजपा-एनडीए शासित राज्यों में अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत मनगढंत आपराधिक केस दर्ज किए जा रहे हैं और मनमानी गिरफ्तारियां हो रही हैं।
माले नेता ने कहा कि डॉ. महमूदाबाद का फेसबुक पोस्ट किसी भी कोण से आपत्तिजनक नहीं था। उनके पोस्ट में नफ़रत फैलाने, युद्ध-उन्माद की आलोचना और नागरिकों की पीड़ा को साझा करने की बात कही गई थी। इसके बावजूद हरियाणा पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार करने का जो उतावलापन दिखाया गया, वह हतप्रभ करने वाला है।
माले नेता ने कहा कि वहीं दूसरी तरफ मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के मंत्री विजय शाह सहित भगवा ब्रिगेड के लोगों को नफरत फैलाने, सांप्रदायिक जहर उगलने, सेना व नौकरशाही में कार्यरत महिलाओं को ट्रोल करने की पूरी छूट है। मंत्री विजय शाह के विरुद्ध हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कठोर रुख अपनाए जाने के बावजूद भाजपा बेशर्मी से उन्हें बचा रही है। लोकतंत्र और संविधान पर हमला करने वालों को तिरंगा यात्रा निकालने का हक नहीं है।
राज्य सचिव ने कहा कि सवाल करना, आलोचना करना, जवाब मांगना कोई अपराध नहीं है। ये हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है। आइसा के प्रदेश अध्यक्ष मनीष कुमार के खिलाफ जिस फेसबुक पोस्ट के लिए आजमगढ़ में एफआईआर दर्ज की गई है, उसमें ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय युद्धक विमानों के नुकसान की अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट पर मोदी सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाए गए थे और जवाबदेही की मांग की गई थी। इस एफआईआर को निरस्त करने के लिए आइसा, इंकलाबी नौजवान सभा (आरवाईए), अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) आदि जनसंगठनों ने 21 मई को राज्यव्यापी प्रतिवाद दिवस मनाने की घोषणा की है। इसे सक्रिय समर्थन देने के अलावा भाकपा (माले) मंगलवार (20 मई) को मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ मजदूर संगठनों के देशव्यापी प्रदर्शन में भी शामिल होगी।
वहीं इसके खिलाफ विपक्ष ने भी पूरा मोर्चा कस लिया है। कांग्रेस नेत्री सुप्रिया श्रीनेत ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखते हुए कहा है, अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को हरियाणा पुलिस ने एक पोस्ट लिखने के लिए गिरफ़्तार किया है। पर उस पोस्ट में ऐसा क्या है जिससे सरकार को आपत्ति है? उस पोस्ट में प्रोफेसर अली ख़ान ने पाकिस्तान की कलई खोल कर रख दी है, पाकिस्तान द्वारा आतंकियों को दिए जा रहे समर्थन और संरक्षण का सच बयाँ किया है। भारतीय सेना की जमकर प्रशंसा की है, सरकार के कर्नल सोफिया क़ुरैशी को सामने करने की सराहना की है।
सुप्रिया आगे कहती हैं, 'इसके साथ ही असल में उन्होंने अपने पोस्ट में धर्म के नाम पर हो रही हिंसा और नफ़रत भड़काने के ख़िलाफ़ बोला है - और यही बात शायद BJP को चुभ गई, क्योंकि नफरत भड़काना ही तो BJP को आता है। नरेंद्र मोदी ने एक ऐसी जाहिलों की भीड़ बनायी है - जिसको सोचने समझने और तर्कसंगत बात कहने से दिक्कत है। सत्ता के सामने सच बोलने के लिए हिम्मत चाहिए, लेकिन इन पाखंडियों को उसी हौसले से तो तकलीफ़ होती है - क्योंकि सच के सामने इनकी झूठ की लंका धराशायी हो जाती है। पर मोदी जी के न्यू इंडिया में BJP के उपमुख्यमंत्री के सेना के नतमस्तक होने और एक मंत्री द्वारा कर्नल सोफिया कुरैशी के ख़िलाफ़ बेहद आपत्तिजनक बात कहे जाने पर कोई एक्शन नहीं लिया जाएगा, कोई गिरफ्तारी नहीं, कोई बर्खास्तगी नहीं।
सुप्रिया कहती हैं, 'यह असल में सिर्फ़ एक आदमी के ख़िलाफ़ एक्शन की बात नहीं है, यह उस तंत्र की बात है जहाँ बोलने, लिखने, सवाल करने वालों को डराया जाता है। जहाँ असहमति को अपराध बनाया जाता है, जहाँ सरकार को आईना दिखाना देशद्रोह कहलाता है और जहाँ राजा की बात में हाँ में हाँ मिलाने वालों के 100 ख़ून माफ़ हैं। और यह सब सरकारी तंत्र, निरंकुश पुलिस प्रशासन और कठपुतली बन चुकी एजेंसियों के माध्यम से किया जा रहा है।
लेकिन कितने लेखकों, कितने बुद्धिजीवियों, कितने प्रोफेसरों को चुप कराइयेगा यह देश भी तो कुछ सवाल पूछ रहा है. जवाब देना पड़ेगा। और कब तक नाम और धर्म देखकर कार्यवाही कीजिएगा? वास्तव में, इस देश का प्रधानमंत्री कायर है।