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मुस्लिम नाबालिग बीवी से पति का शारीरिक संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं, Delhi HC ने फैसले के पीछे दिये ये तर्क

Janjwar Desk
24 Aug 2022 3:05 AM GMT
दिल्ली HC ने हाथ से सीवर की सफाई पर जताई चिंता, मुंडका में मरे 2 कर्मचारियों के परिजनों को डीडीए दे 10-10 लाख का मुआवजा
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दिल्ली HC ने हाथ से सीवर की सफाई पर जताई चिंता, मुंडका में मरे 2 कर्मचारियों के परिजनों को डीडीए दे 10-10 लाख का मुआवजा  

Delhi High Court Verdict : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जब विवाह के बाद शारीरिक संबंध बनते हैं तो उसे यौन अपराध संरक्षण अधिनियम ( POCSO Act ) के तहत नहीं लिया जा सकता।

Delhi High Court Verdict : देशभर में लंबे अरसे से समान आचार संहिता ( UCC ) को लेकर बहस जारी है लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ( Delhi High Court ) ने एक फैसला सुनाकर सबको चौंका दिया है। अब इस फैसले को लेकर चर्चा जोरों पर है। दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट जस्टिस जसमीत सिंह ने अपने एक फैसले में माना है कि मुस्लिम कानून ( Muslim Law ) के मुताबिक एक नाबालिग लड़की जो यौवन प्राप्त कर चुकी है। वह अपने माता-पिता की सहमति के बिना शादी कर सकती है। उसे अपने पति के साथ रहने का अधिकार है। कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे मामलों में जब विवाह के बाद शारीरिक संबंध बनते हैं तो उसे यौन अपराध संरक्षण अधिनियम ( POCSO Act ) के तहत नहीं लिया जाएगा। यहां पर अहम सवाल यह है कि यूसीसी की मुहिम का क्या होगा, जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) की ओर से केंद्र सरकार को बार-बार नोटिस जारी किया जाता है।

जस्टिस सिंह गिनाए ये आधार

अपने फैसले को यूसीसी की राह में रोड़ा बनने को लेकर उठाए जा रहे सवालों का जवाब देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस जसमीत सिंह कहा कि जिस मामले को लेकर हमने ये आदेश दिया है वो सामान्य मामलों से अलग है। इस मामले में शादी के समय लड़की की उम्र करीब 15 साल 5 महीने बताई जा रही है। यहां स्थिति सामान्य मामलों से अलग इसलिए है कि शादी के बाद लड़की गर्भवती हो गई। जस्टिस सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता कानूनी रूप से एक-दूसरे से विवाहित हैं। वैवाहिक नियमों के मुताबिक उन्हें एक-दूसरे के साथ से अलग नहीं किया जा सकता है। जस्टिस सिंह ने आगे बताया अगर याचिकाकर्ता अलग हो जाते हैं तो इससे लड़की और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को ज्यादा आघात पहुंचेगा। यहां राज्य का उद्देश्य याचिकाकर्ता संख्या 1 के सभी हितों की रक्षा करना है। अगर याचिकाकर्ता ने जानबूझकर शादी के लिए सहमति दी है और अपने जीवनसाथी के साथ खुश है, तो राज्य याचिकाकर्ता के निजी स्थान में प्रवेश करने और जोड़े को अलग करने वाला कोई नहीं है। ऐसा करना किसी व्यक्तिगत स्थान का अतिक्रमण करने के समान होगा।

पहले के फैसले से ताजा मामले को बताया अलग

दिल्ली हाईकोर्ट ( Delhi High Court ) के जस्टिस जसमीत सिंह ने मौजूदा मामले को अपने एक अन्य आदेश से अलग करते हुए कहा कि पहले वाले मामले में उन्होंने कहा था कि एक मुस्लिम व्यक्ति पर पॉक्सो अधिनियम ( POCSO ) के तहत यौवन को प्राप्त कर चुकी एक नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध रखने आरोप में पॉक्सो लगाया जा सकता है। ऐसा इसलिए कि ये दोनों मामले अलग-अलग हैं। पिछले मामले में नाबिलग का शोषण हुआ था। उस मामले में शादी से पहले यौन संबंध स्थापित किए गए थे और शारीरिक संबंध स्थापित करने के बाद आरोपी ने अभियोजक से शादी करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि पोक्सो अधिनियम ताजा मामले में प्रभावी नहीं होगा क्योंकि यहां पर शादी के बाद शारीरिक संबंध स्थापित किए गए थे और यह यौन शोषण का मामला नहीं था बल्कि एक ऐसा मामला था जहां दो लोग एक दूसरे से प्यार करते थे और उन्होंने शादी भी की, उसके बाद शारीरिक संबंध बनाए शादी से पहले दोनों के बीच शारीरिक संबंध की कोई शिकायत सामने नहीं आई है।

Delhi High Court Verdict : बता दें कि ताजा मामले में मुस्लिम जोड़े ने इस साल की शुरुआत में बिहार के औरिया जिले में मुस्लिम रीति-रिवाजों के मुताबिक शादी की थी। सुरक्षा के मद्देनजर इस दंपति ने अदालत का रुख किया और खुद को सुरक्षा देने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी। इस दंपति ने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि लड़की के परिजनों ने इस शादी का विरोध किया था। लड़की के परिजनों ने आईपीसी की धारा 376 के तहत और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत उसके पति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाई थी।

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