सफूरा जरगर की जमानत याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने चौथी बार किया खारिज
जनज्वार ब्यूरो। जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की शोध छात्रा सफूरा जरगर की याचिका पर जमानत देने से इनकार करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले को 23 जून तक के लिए स्थगित कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस राजीव शकधर सोमवार को इस मामले पर सुनवाई कर रहे थे। सफूरा जरगर की ओर से जमानत के लिए चौथा प्रयास है। बता दें कि सफूरा जरगर 24 सप्ताह की गर्भवती हैं।
सफूरा जरगर के वकीलों ने 18 जून को हाईकोर्ट का रूख किया था। उस सुनवाई के अंत में राज्य को एक नोटिस किया गया था। दिल्ली पुलिस को 21 जून तक मामले पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का समय दिया गया था और मामले को 22 जून को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था।
30 मई 4 जून को सरकारी वकील और जरगर के वकीलों के बीच आठ घंटे तक तर्क चले थे। इसके बाद सुनवाई के अंत में जरगर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। जरगर की याचिका को खारिज करते हुए राणा ने कहा था कि जमानत आवेदन में योग्यता नहीं पाई गई।
बता दें कि इससे पहले सफूरा जरगर के समर्थन में कई लोग आए हैं। रविवार 21 जून को अपर्णा सेन समेत 500 बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जरगर की रिहाई को लेकर केंद्र सरकार को पत्र लिखा था। उससे पहले सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स, अमेरिकन बार काउंसिल भी सफूरा जरगर की रिहाई की मांग कर चुका है। अमेरिकन बार काउंसिल ने इसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया था।
अमेरिकन बार एसोसिशन ने कहा था कि यूएपीए के तहत हिरासत में ली गई सफूरा को जमानत देने से इनकार करना इंटरनेशनल कोवनंट फॉर सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है जिसके मुताबिक प्री-ट्रायल डिटेंशन केवल संकीर्ण उद्देश्यों के लिए होना चाहिए जैसे- 'देश छोड़ने से रोकना, सबूत के साथ छेड़खानी से रोकना, या अपराध की पुनरावृत्ति'आदि से रोकना।
बता दें कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों और दिल्ली दंगों को लेकर कोरोना महामारी के बीच दिल्ली पुलिस पिंजरा तोड़ संगठन की नताशा नरवाल और देवांगना कलिता को भी गिरफ्तार कर चुकी हैै। इसलिए सरकार पर विपक्षी दल यह आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार के खिलाफ आवाजा उठाने वालों के खिलाफ कोरोना महामारी का इस्तेमाल का इस्तेमाल किया जा रहा है।