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Delhi News: दिल्ली पुलिस ने थानों के सामने कई मुख्य सड़कों पर किया है अतिक्रमण, क्या MCD का बुलडोजर यहाँ भी चलेगा?

Janjwar Desk
26 April 2022 8:52 AM GMT
Delhi News: दिल्ली पुलिस ने थानों के सामने कई मुख्य सड़कों पर किया है अतिक्रमण, क्या MCD का बुलडोजर यहाँ भी चलेगा?
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Delhi News: दिल्ली पुलिस ने थानों के सामने कई मुख्य सड़कों पर किया है अतिक्रमण, क्या MCD का बुलडोजर यहाँ भी चलेगा?

Delhi News: क्या आप जानते हैं कि अतिक्रमण हटाने जाने वाली पुलिस व एमसीडी दिल से चाहते हैं कि आप सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करें| इतना ही नहीं, दिल्ली पुलिस ने पब्लिक स्पेस में कितना अतिक्रमण किया है इसकी बानगी देखनी और समझनी है तो यह रिपोर्ट आपके लिए है|

विवेक कुमार की रिपोर्ट

Delhi News: क्या आप जानते हैं कि अतिक्रमण हटाने जाने वाली पुलिस व एमसीडी दिल से चाहते हैं कि आप सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करें| इतना ही नहीं, दिल्ली पुलिस ने पब्लिक स्पेस में कितना अतिक्रमण किया है इसकी बानगी देखनी और समझनी है तो यह रिपोर्ट आपके लिए है|

बीते सप्ताह दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में बुलडोजर से मलबा, कचरा हटाने के नाम पर एमसीडी और दिल्ली पुलिस ने गरीबों के घरों को जेसीबी से रौंद डाला| आरोप यहाँ तक लगे कि एक समुदाय विशेष के घरों को ही टारगेट किया गया और दंगों के नाम पर उन्हे सरकारी सजा दी गई या यूं कहें कि भाजपाई स्टाइल में सजा दी गई| बुलडोजर से घर गिराने में सरकारी महकमे के मेयर व अन्य सभी अधिकारियों ने माइक के सामने सख्त लहजे में बताया कि सरकारी जमीन पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और उसी क्रम में जहांगीरपुरी के मकानों-दुकानों को तोड़ा गया है|

दिल्ली जैसे शहरों से लेकर देशभर के कस्बों तक में किस प्रकार का अतिक्रमण फ़ैला हुआ है इसपर किसी शोध की जरूरत नहीं पर जो अतिक्रमण हटाने गए हैं वे खुद कितना अतिक्रमण करते हैं वह भी सार्वजनिक स्थानों का इसको जानना आज मौजू है|

दक्षिणी दिल्ली के पॉश इलाकों के पुलिस स्टेशन वसंत कुंज, कालका जी, लाजपत नगर, सरोजिनी नगर, इत्यादि के बाहर की सड़कों पर दिल्ली पुलिस ने खुद ही अवैध रूप से अतिक्रमण करते हुए ज़ब्त की गई और दुर्घटनाग्रस्त गाड़ियों को खड़ा किया हुआ है| वसंत कुंज में जहां एक तरफ की सर्विस रोड ही लगभग पूरी तरह से थाने द्वारा कब्ज़ाई हुई है वहीं कालकाजी और लाजपत नगर में सड़क पर पुलिसिया अतिक्रमण के चलते जाम की स्थिति पूरे दिन बनी रहती है|

सड़कों पर पैसे लेकर अवैध पार्किंग और ठेले लगवाने का पुलिसिया और एमसीडी का धंधा भी जगजाहिर है पर जो बात भरे पेट बैठे माध्यम वर्ग के आंटी-अंकलों को नहीं पता वो यह है कि दिल्ली की कच्ची कालोनियों को बनवाने में अलग-अलह कालक्रम में अलग-अलग किस्म का अर्थशास्त्र काम करता रहा है| जिस जहांगीरपुरी में अवैध निर्माण ढहाया गया वैसा ही अवैध निर्माण पूरी दिल्ली में खुद ये अधिकारी करवाते हैं|

दक्षिणी दिल्ली को दिल्ली के पॉश इलाके के तौर पर गिना जाता है| ताज़ा मामला वहाँ के छत्तरपुर विधानसभा के एक गाँव आया नगर का है| 35 वर्षीय दीपक के पिता ने 20 वर्ष पहले इस गाँव के देहश्यामलात में एक 100 गज का प्लॉट खरीदा था| दीपक के पिता की कोरोना के दौरान असमय मृत्यु हो गई| किसी तरह दीपक ने मकान की दीवारें खड़ी कर ली और अब लेन्टर डालने की तैयारी है|

दीपक ने बताया कि शटरिंग और सरिया बांधने का काम पूरा होने के बाद लेन्टर डालने के लिए मिक्सिंग करने वाली मशीन चलाने वाले रामू ने कहा कि पहले फतेहपुर बेरी थाने से परमिशन ले आओ| दीपक ने कहा तुम मशीन लगाओ जब पुलिस आएगी तो हम बात कर लेंगे पर रामू ने मना कर दिया| इसी तरह कई मशीन वालों से बात की पर सबका एक ही जवाब| थक कर दीपक ने बीट नंबर 6 के हवलदार से मुलाकात की जिसने 100 गज लेन्टर डालने का पुलिसिया रेट 100 रुपये प्रति गज के मुताबिक एक लाख रुपये बताया| दीपक के पैरों तले जमीन सरक गई| काफी मान-मनौवल के बाद दीपक ने 70 हजार रुपये में अपनी जमीन पर अपने घर का लेन्टर डालने के लिए पुलिस को पैसे दिए|

दरअसल दीपक जैसे हजारों लोग पुलिस के इस चंगुल में फँसते हैं जिसमे पूरा सहयोग न्यायपालिक के आदेश से पुलिस प्राप्त करती है| आया नगर में वर्ष 2011 से न्यायालय के आदेशानुसार किसी भी प्रकार के नए निर्माण पर रोक है| पर जिस व्यक्ति ने सारे जीवन की पूंजी से जमीन, मकान बनने के लिए ली है उसे तो मकान चाहिए| बस यहीं से पुलिस की पौ-बारह हो जाती है|

आया नगर में रहने वाले पवन नेगी सीआरपीएफ से रिटायर होने के बाद अब एक सिक्युरिटी एजेंसी के लिए काम करते हैं| उन्होंने बताया कि पहले तो पुलिस निर्माणाधीन साइटों को ढूँढने के लिए दिन भर कालोनी में मोटरसाइकिल पर चक्कर लगाती थी पर अब देश ही स्मार्ट हो गया तो पुलिस कहाँ पीछे रहती इसलिए पुलिस ने स्मार्ट तरीका निकाल लिया| अब पुलिस सबसे पैसा न लेकर केवल लेन्टर डालने वालों से पैसा लेती है और वह भी इतना जितना कि सबसे लेने पर भी न मिलता| इसके लिए पुलिस ने एक अनोखा तरीका निकाला जिसमे वह निर्माणाधीन इमारत में शटरिंग और सरिया लगने का इंतजार करती है| पुलिस जानती है कि शटरिंग का किराया प्रतिदिन के हिसाब से लगता है और जो मिक्सर की मशीन लगाता है वह दरअसल पुलिस का ही आदमी है जो बिना पुलिस के इजाजत के मशीन नहीं लगाएगा| और तो और वही पुलिस को सूचित भी कर देता है|


इस प्रकार जिस व्यक्ति का रोज का शटरिंग का किराया लग रहा है वह इसी दबाव में आकार पुलिस को मुहमाँगी रकम देता है| हाल ऐसा हुआ कि अब पुलिस ने 100 रुपया गज का रेट बना लिया है| कुछ पुलिस वालों ने आत्मनिर्भर होते हुए मिक्सर मशीन तक खरीद कर रख ली हैं और अपने-अपने गाँव से एक-आध बेरोजगार को मशीन पर बैठ दिया है जो वफादार कुत्ते की तरह सब खबर देने के साथ-साथ मशीन लगा कर उसकी कमाई भी मालिक को देता है|

2011 में दिए अपने आदेश को माननीय न्यायालय ने कभी मुड़ कर भी नहीं देखा कि जो आया नगर बहादुरशाह ज़फ़र की सल्तनत से भी छोटा था वह औरंगजेब के अभियान की तरह बढ़कर इतना कैसे फैल गया? बिल्ली को दूध की रखवाली देकर न्यायपालिका भी सोई पड़ी है| इस बीच जहांगीरपुरी जैसी कच्ची कालोनियों पर बुलडोजर चला कर सरकार ने इतिश्री की और सब दोष आमजन पर मढ़ दिया| हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उसके आदेश की अवहेलना के खिलाफ वह बहुत सख्त कदम उठाएगी पर माननीय न्यायालय की शान में गुस्ताखी करते हुए बताना जरूरी है कि आमजन के मन में आपके लिए 'माननीय' जैसे शब्द की जगह कम होती जा रही है| ऐसा इसलिए क्योंकि, अदालतों की सख्ती गरीबों की पीठ पर पड़ती मिली है जबकि दूसरी तरफ अदालती फैसले मज़लूमों को मजबूत करने की बजाय उनके खिलाफ सरकारी एजेंसियों को ही मजबूत करते प्रतीत होते हैं| ऐसे भी भारत की विधायिका से बनने वाले कानून भी समाज को कमजोर करके सरकारी एजेंसी को ही मजबूत करते हैं| किसी भी कानून को उठा कर देखा जा सकता है कि जिनके लिए कलानून बना वो क्या वाकई उससे संरक्षित हुए या प्रशासन ने उसका इस्तेमाल पैसे ऐंठने या अन्य राजनैतिक आकाओं के लिए किया?

जहांगीरपुरी, कठपुतली कालोनी, फरीदाबाद की खोरी बस्ती, मध्यप्रदेश का खरगॉन और देश भर के गरीबों को अमीरों के अवैध बने बंगले, जैसे दिल्ली की सैनिक कालोनी, गुड़गाँव का पाँच सितारा मेदांता अस्पताल, फरीदाबाद अरावली के आश्रम और फार्म हाउस: मूँह चिढ़ा -चिढ़ा कर कह रहे हैं कि वोट देने वालों के लिए देश में अलग कानूनं है और नोट देने वालों के लिए अलग|

जागरूप नागरिक बनने के क्रम में पढे हुए मौलिक अधिकार और अन्य बातें असल जीवन में छलावा ही प्रतीत होती दिख रही है| साफ-साफ देखा जा सकता है कि संविधान में नागरिकों को मिला मौलिक अधिकार -14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार), सभी नागरिकों के लिए नहीं है| ठीक ऐसे ही उच्च और उच्चतम न्यायालय की आर्टिकल 226 और 32 के तहत प्राप्त शक्तियां भी गरीबों और अल्पसंखयकों के मौलिक अधिकारों को बचाने के लिए कम और फूँ-फ़ा कर अखबारी सुर्खी बनाने के लिए अधिक हैं|

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