Begin typing your search above and press return to search.
दिल्ली

लाखों खर्च के बाद स्टीफंस अस्पताल ने परिवार के पैसे खत्म होने पर महिला का हटाया वेंटिलेटर, 3 घंटे में मौत

Janjwar Desk
13 Aug 2020 1:54 PM GMT
लाखों खर्च के बाद स्टीफंस अस्पताल ने परिवार के पैसे खत्म होने पर महिला का हटाया वेंटिलेटर, 3 घंटे में मौत
x
महिला कुशीनगर जिले के एक किसान परिवार की थीं, जब लगा कि यह परिवार और पैसे नहीं दे पाएगा तो अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया, इसके कुछ ही देर बाद बीमार महिला की मौत हो गई...

राहुल सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार। उत्तरप्रदेश के कुशीनगर की एक महिला मरीज राजमती का दिल्ली के स्टीफंस अस्पताल के डाॅक्टर बिना बीमारी के वास्तविक कारणों की वजह बताए कई दिनों तक इलाज करते रहे और तरह-तरह की जांच व खर्च के नाम पर बिल बनवाते रहे। जांच व इलाज के नाम पर किसान परिवार को एडवांस में बिल जमा करने को कहा जाता रहा और जब महिला की तबीयत अधिक खराब हुई तो बाकी पैसे जमा करने का फरमान सुनाकर महिला को दूसरे अस्पताल या फिर घर ले जाने का दबाव बना दिया। अस्पताल से घर ले जाने के 3 घंटे के अंदर ही महिला की मौत हो गई। वरिष्ठ अधिवक्ता व असहायों के स्वास्थ्य मुद्दों पर काम करने वाले अशोक अग्रवाल का आरोप है कि महिला के लिए नियमतः बिना वैकल्पिक प्रबंध किए ही वेंटिलेटर हटा दिया।

जब स्टीफंस अस्पताल ने महिला को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया तो परिजनों ने उन्हें भर्ती कराने के लिए तीन-चार दूसरे अस्पतालों दूसरे का चक्कर काटा। हर जगह उन्हें बेड नहीं होने की बात कह कर भर्ती लेने से इनकार कर दिया गया और आखिरकार महिला की मौत हो गई।

अब इस मामले में मृत 45 वर्षीया महिला राजमती के भाई प्रभाकर सिंह ने तीन अस्पतालों स्टीफंस, जीबी पंत व सफदरजंग एवं भारत सरकार व दिल्ली सरकार को आरोपी बनाते हुए सोनिया बिहार थाने में मामला दर्ज करवा दिया है।

राजमती के भाई प्रभाकर सिंह ने इस संबंध में जनज्वार से कहा कि एक अस्पताल में मरीज का सही ढंग से इलाज नहीं करना, वास्तविक बीमारी नहीं बताया, जांच रिपोर्ट की काॅपी नहीं दी और दूसरे अन्य अस्पतालों में मरीज को बेड नहीं उपलब्ध करवाया जिस वजह से उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया है। उन्होंने कहा कि ये अस्पताल भारत सरकार व दिल्ली सरकार के हैं, इसलिए हमने अपनी बहन की मौत के लिए उन्हें भी आरोपी बनाया है।

मृत महिला राजमती कुशीनगर जिले के हांटा तहसील के सिंहपुर गांव की रहने वाली थीं। जबकि देवरिया जिले में उनका मायका है। राजमति के पति सुरेंद्र सिंह सामान्य किसान हैं और गांव में खेतीबाड़ी करते हैं। इस दंपती के बच्चे हैं एक 19 साल का एक 17 साल का। एक किसान परिवार को अस्पताल की ओर से एक सप्ताह में लाखों का बिल थमा दिया गया।


क्या है पूरा मामला?

प्रभाकर बताते हैं बहन की तबीयत खराब होने पर इलाज के लिए उन्हें गांव से हमलोग दिल्ली लेकर आए। यहां कुछ रिश्तेदार थे जिनके यहां ठहरे। बहर को यूरिन व मल त्याग जैसी समस्याएं थीं। चार अगस्त को जब उन्हें लेकर स्टीफंस अस्पताल गए तो काउंटर पर पहले 75 हजार रुपये एडवांस में जमा करने का कहा। इस पर हमलोगों ने कहा कि 65 हजार रुपये है तो वही जमा करवा दिया। फिर अगले दिन जीजा से 80 हजार रुपये का बिल दिया।

फिर हमलोगों ने 55 हजार रुपये जमा करवा दिया। वे कहते हैं कि हर जांच के लिए और दवा के लिए अलग से बिल दिए गए। उनके अनुसार, एक-एक दिन की दवा का दस-दस हजार रुपये का बिल था, एक दिन का बिल 20 हजार रुपये का था।

प्रभाकर का कहना है कि डाॅ मनु गुप्ता उनकी बहन का इलाज कर रहे थे, उन्होंने हमलोगों को कहा था कि वे ठीक हो जाएंगी। वे कहते हैं कि जब हम पर बिल का भारी दबाव बनाया गया तो वकील अशोक अग्रवाल ने हमें सलाह दी कि आप लोग इएसडब्ल्यू में बेड ले लीजिए, इससे आपको सिर्फ दवा का पैसा लगेगा।

वे कहते हैं कि हमारी मदद के लिए वकील अशोक अग्रवाल ने जब अस्पताल प्रबंधन पर ज्यादा दबाव बना दिया तो उनलोगों ने कहा कि एक-दो टेस्ट और है, वह करना होगा। इस तरह 74, 272 रुपये का नया बिल दे दिया। वे कहते हैं कि इससे पहले न्यूरो टेस्ट का 47 हजार का बिल दिया था और हमें 95 हजार की दवा खरीदनी पड़ी।

प्रभाकर के अनुसार, सोमवार, 10 अगस्त को डिस्चार्ज करने की बात अस्पताल ने कही। इसके बाद हमने जेबी पंत अस्पताल, आरएमएल व सफदरजंग में बेड के बारे में पता करने गए लेकिन हर जगह बेड नहीं होने की बात बतायी गई। यह भी कहा गया कि बेड बुक करा लो जब होगा तब मिल जाएगा। सोमवार को स्टीफंस अस्पताल ने बिल जमा कर मरीज को ले जाने का कहा, लेकिन वे रिपोर्ट देने को तैयार नहीं थे, इस पर हमने कहा कि जब हमने अपने पैसे से जांच करायी तो वे रिपोर्ट क्यों नहीं देंगे।

इसके बाद प्रभाकर मंगलवार, 11 अगस्त की सुबह जेबी पंत अस्पताल गए तो वहां डाॅक्टरों ने कहा कि कम से कम रिपोर्ट की काॅपी लेकर आओ तभी हम मरीज के बारे में कुछ कह सकेगे। इसके बाद स्टीफंस में काफी हुज्जत करने के बाद कुछ कागजात दिए गए और रेफर कर दिया, लेकिन दूसरे किसी अस्पताल में बेड नहीं होने के कारण हम उन्हें घर लेकर आ गए। महिला को आॅक्सीजन सिलिंडर व अन्य मेडिकल उपकरण घर में ही लगाया गया, लेकिन घर लाने के दो घंटे बाद ही शाम सात बजे उनकी मौत हो गई।

वकील अशोक अग्रवाल ने कहा, बिना वैकल्पिक प्रबंध के हटाया वेंटिलेटर, मजिस्ट्रेट के पास जाएंगे

इस मामले में पीड़ित परिवार की मदद करने वाले वकील अशोक अग्रवाल ने कहा कि हर पेसेंट के परिवार के इच्छा होती है कि उसका अच्छे से इलाज हो। जब ये लोग पेसेंट राजमतीको अस्पताल में ले गए तो वहां उन्हें वेंटिलेटर पर डाला। बहुत सारा बिल बना दिया। पीड़ित परिवार को जब मेरे बारे में पता चला तो उन्होंने मुझसे संपर्क किया। यह 600 बेड का अस्पताल है और यहां दस प्रतिशत यानी 60 बेड बीपीएल एवं आर्थिक रूप से कमजोर तबके (EWS-इकोनाॅमिक विकर सेक्शन) के लिए है। मैंने उन्हें कहा कि अस्पताल में इडब्ल्यूएस में पेसेंट को कन्वर्ट कराएं, लेकिन ये अस्पताल जान बूझ कर ऐसा नहीं करते, क्योंकि उसमें इनका भारी-भरकम बिल नहीं बन सकेगा। अगर इनके पास 60 बेड हैं तो बामुश्किल ये चार-पेसेंट ही उस वर्ग के लोगों को देते हैं। जबकि इसके पालन के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का स्प्ष्ट गाइडलाइन है।

जब अस्पताल को यह लगा कि अब ये लोग पैसा नहीं दे पाएंगे और इनके पास कोई साधन नहीं है तो इन्हें मरीज को ले जाने के लिए बोला। इस दौरान इनका डेढ-दो लाख का बिल बना दिया। जीबी पंत अस्पताल ने मरीज को भर्ती लेने से मना कर दिया। वे कहते हैं कि मरीज को वेंटिलेटर से बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था के हटा दिया। अगर वेंटिलेटर से हटाया तो नियमतः उन्हें वेंटिलेटर लगे एंबुलेंस में मरीज को रखवाना चाहिए। ऐसा कुछ नहीं किया। उन्होंने कहा कि यह एक आपराधिक लापरवाही का मामला है। मैंने इन लोगों से पुलिस में शिकायत दर्ज करायी है और एफआइआर दर्ज नहीं की जाएगी तो हम इस मामले में मजिस्ट्रेट के पास जाएंगे।

अशोक अग्रवाल सुप्रीम कोर्ट व दिल्ली हाइकोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं और स्वास्थ्य व शिक्षा के मुद्दे पर काम करते हैं। वे गरीबांें-लाचारों के मुद्दों को उठाते हैं और उनके लिए संघर्ष भी करते हैं।

Next Story

विविध