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दिल्ली दंगे का एक साल : इंसाफ की बाट जोहती आंखों में अपनों को खोने का गम, खौफ के साये में जीते लोग

Janjwar Desk
3 March 2021 1:29 PM GMT
दिल्ली दंगे का एक साल : इंसाफ की बाट जोहती आंखों में अपनों को खोने का गम, खौफ के साये में जीते लोग
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दंगों को ख़त्म हुए एक साल हो गया है लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो हर रोज़ दंगों को जी रहे हैं, इन दंगों में मासूम लोगो ले अपनी जान गवाई, दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से में एक साल पहले हुए दंगों में भारी जान-माल का नुकसान हुआ, दिल्ली पुलिस के मुताबिक़ तीन दिनों तक चली हिंसा में 53 लोगों की जानें गईं, ढेर सारे घर, दुकान जला दिए गए...

दिल्ली दंगा प्रभावित इलाकों से लौटकर तोषी मैंदोला की रिपोर्ट

जनज्वार,दिल्ली। दिल्ली दंगों को ख़त्म हुए एक साल हो गया है लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो हर रोज़ दंगों को जी रहे हैं। इन दंगों में मासूम लोगों ने अपनी जान गवाईं। दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से में एक साल पहले हुए दंगों में भारी जान-माल का नुकसान हुआ। दिल्ली पुलिस के मुताबिक़ तीन दिनों तक चली हिंसा में 53 लोगों की जानें गईं, ढेर सारे घर, दुकान जला दिए गए। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ मरने वालों में 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे। पुलिस ने दंगों से जुड़ी 752 एफ़आईआर दर्ज की, बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ़्तार किया गया जिनमें एनआरसी-सीएए का विरोध करने वाले छात्र नेता और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल हैं।

इसके साथ ही सप्लीमेंट्री चार्जशीट दावा करती है कि 'मुस्लिम दंगाईयों' ने पुलिस और गैर-मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा दूसरी तरफ से बिना किसी बदले या उकसावे के की थी। हालांकि 'जनज्वार' मानता है कि दंगाईयों का न कोई धर्म होता है और न ही कोई ईमान। दंगाई सिर्फ दंगाई होते है जिनका मकसद देश में तनाव की स्थिति पैदा करना होता है। 'जनज्वार' की टीम ने आज दिल्ली हिंसा के कई इलाकों का जायजा लिया है कि क्या दिल्लीवालों की जिन्दगी पटरी पर लौट आई है या लोग अभी भी दंगों के साए में जी रहे है।


शिव विहार के रहने वाले 52 साल के मोहम्मद वकील दिल्ली दंगों मे अपनी आंखे खो चुके हैं। मोहम्मद बताते हैं कि 25 फरवरी की रात हमारे लिए बेहद डरावनी रही। मैं घर की बालकिनी में खड़ा था और अचानक से मेरे ऊपर किसी ने तेज बॉल की तरह तेजाब की पन्नी फेंक कर मारी लेकिन मुझे लगा जैसे मानो किसी ने मेरे ऊपर तेज पत्थर मारा हो। मोहम्मद वकील की बेगम बताती हैं कि इलाके कि लाइट काट दी गई और दंगा शुरु हो गया।

वहीं फारुकिया मस्जिद के कमेटी मेंबर हाजी अब्बास (83) बताते हैं कि एक साल पहले 25 फरवरी को फ़ारूकिया मस्ज़िद में दंगाइयों की एक भीड़ दाखिल हुई, मस्ज़िद में आग लगा दी गई। मस्ज़िद में कुल जमा सात-आठ लोगों को पीटा गया, जिनमें वो खुद भी शामिल थे लेकिन एक साल बाद भी इस हिंसा के चश्मदीद गवाहों और पीड़ितों की शिकायत पर पुलिस ने जो कुछ किया है उसे सामान्य नही कहा जा सकता है।

पुलिस ने इस शिकायतों पर अब तक कोई भी एफ़आईआर नहीं दर्ज की है। वो बताते हैं कि यह सब हिन्दुओं ने किया था। वो सब दंगाई हिंदू थे। इन दंगों में 23 साल के मासूम राहुल ठाकुर ने भी अपनी जान गंवाई है। परिवार बताता है कि बेटा उस दिन सो रहा था अचानक बाहर दंगों की आवाज आई, तो बेटा बाहर देखने गया कि क्या हो रहा है उसी दौरान किसी ने उसे गोली मार दी और हमारे कलेजे का टुकड़ा बे-मौत मारा गया। 1 साल हो गया है और कातिल अभी तक पकड़ा नहीं गया है। हम इंसाफ की आस लगाकर बैठे हैं, लेकिन सरकार को कोई फर्क नही पड़ता।

वहीं तीन दिनों तक चलने वाली हिंसा में कई दुकानें, घर, पार्किंग एरिया और मस्ज़िद को बुरी तरह से जलाया गया। फ़ारूकिया मस्ज़िद पर बात करते हुए मस्ज़िद के अध्यक्ष हाजी फखरुद्दीन कहते हैं कि पुलिस वर्दी और फौजी वर्दी पहने कई दंगाई मस्ज़िद में घुस गए और तोड़फोड़ की। इन दंगाईयों ने तकरीबन 16 मस्ज़िद और 3 मदरसे को आग लगा दी थी। हर तरफ दहशत ही दहशत थी, वो बेहद डरावना था। फखरुद्दीन कहते है कि भाजपा नेता कपिल मिश्रा के उस नारे ने लोगों को उकसाने और भड़काने का काम किया था लेकिन वाबजूद कपिल मिश्रा का चार्जशीट में कोई नाम भी नही।

दिल्ली जिसे मैट्रो सिटी कहा जाता है जहां लोग काफी पढ़े लिखे है, लेकिन उस दिन मुझसे मेरा धर्म पूछा गया जिसके बाद मुझे खूब मारा गया। मैं मोहम्मद चांद उम्र 32 साल दिल्ली के नूरे इलाही इलाके में रहता हूं और वहीं कारखाने में काम करता हूं। उस दिन दंगे का दूसरा दिन था, घरवालों ने कहा गांव वापिस आ जाओ हालात अच्छे नहीं, तो मैं शाम को गांव के लिए निकल ही रहा था कि कुछ लोगों ने मुझसे मेरा आधार कार्ड मांगा जैसे ही उन्हें पता चला कि मैं एक मुसलमान हूं उन्होंने मुझ पर रोड से हमला किया और मुझे तब तक मारा जब तक मैं अधमरा न हो जाऊं।

'बहुत मुश्किल से हमने कर्जा लेकर इलाज करवाया है और अब मेरे ऊपर लगभग 60 से 70 हजार का कर्जा है। सरकार की तरफ से कोई मुआवजा भी नहीं मिला है। एक साल बाद भी मुझे दिल्ली में डर लगता है। दिल्ली दंगों के एक साल बाद भी शिव विहार, जाफ़राबाद, और चांदबाग मे हालात कुछ खास सामान्य से नहीं दिखाई देते हैं। माहौल पहले के मुकाबले में कुछ तो बदला है।

-साथ में गौरव कीर

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