Uttarakhand : देवस्थानम बोर्ड पर धामी सरकार ने लगाया डेडलॉक, PM मोदी को खून से खत लिखने वाले पुरोहितों को नहीं कोई राहत
(तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी इतनी ज्यादा बढ़ गयी कि उन्हें अब राज्य सरकार पर ही कोई भरोसा नहीं रहा, प्रधानमंत्री मोदी को खून से लिख चुके हैं खत)
सलीम मलिक की रिपोर्ट
Devasthanam board news Uttarakhand, देहरादून। राज्य के धाम व मंदिरों को रेगुलाईज किये जाने के नाम के नाम पर भाजपा सरकार द्वारा बनाये गए 'देवस्थानम बोर्ड' (Devasthanam board) को रद्द किसी भी हाल में नहीं किया जाएगा। बोर्ड की स्थापना के बाद से ही इसका पुरजोर विरोध कर रहे तीर्थ-पुरोहितों को बहलाने-फुसलाने की भाषा से लेकर कई और तरह की इशारेबाजी से बोर्ड भंग न करने की अपनी नियत से वाकिफ करा चुकी सरकार की तरफ से इस मामले में यह बिल्कुल आईने की तरह साफ जैसी पहली टिप्पणी है।
तीर्थ-पुरोहितों के आन्दोलन के बाद मामले के निस्तारण के नाम पर सरकार ने मामले को लटकाने व आंदोलन की तपिश कम करने के लिए जो समिति गठित की थी, उसके मुखिया ने ही साफगोई से यह बयान देकर सरकार के रुख को सामने रखा है।
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देवस्थानम बोर्ड उच्चस्तरीय समिति के अध्यक्ष मनोहरकांत ध्यानी (Manoharkant Dhyani) ने शुक्रवार 8 अक्टूबर को ऋषिकेश में आयोजित एक प्रेस वार्ता में कहा कि किसी भी कीमत पर देवस्थानम बोर्ड (Devasthanam board) को भंग नहीं किया जाएगा। बोर्ड के एक्ट में लिखी गई अगर किसी धारा से पंडा समाज को आपत्ति है, तो उसका निस्तारण किया जाएगा।
मनोहरकांत ध्यानी ने कहा, देवस्थानम बोर्ड के एक्ट को किसी ने भी सही तरीके से नहीं पढ़ा है, इसलिए कुछ राजनीतिज्ञों के इशारे पर पंडा समाज विरोध कर रहा है। एक्ट में किसी भी हकहकूक धारी का हक छीनने का जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा कि देवस्थानम बोर्ड यात्रियों की सुविधा के लिए बनाया गया है। विरोध करने वाली समितियों को आपत्तियां दर्ज करने के लिए बुलाया गया है और जल्द ही आपत्तियां लेकर वह उनका निस्तारण कर अपनी रिपोर्ट सरकार को देंगे।
ध्यानी ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि आप कोई घर बनाते हैं और उसमें कुछ कमियां होती हैं, तो उसे सुधारने की कोशिश की जाती है न कि घर को तोड़कर जमींदोज कर दिया जाता है। उसी तरह देवस्थानम बोर्ड के एक्ट की किसी धारा में यदि पंडा समाज को आपत्ति है, तो वह अपनी आपत्ति दर्ज करा कर उसका निस्तारण सरकार से कराएं। यह तो समझने वाली बात है, मगर बोर्ड को ही भंग करने की मांग जायज नहीं है।
गौरतलब है कि देवस्थानम बोर्ड को लेकर राज्य का पंडा समाज व तीर्थ-पुरोहित बोर्ड की स्थापना से ही इसके विरोध में आंदोलन कर रहे हैं। जिन पवित्र देवस्थानों पर वेदों की ऋचाएं गुंजायमान होती थीं, वहां से सरकार विरोधी नारेबाजी के सुर उभरने लगे। आंदोलन के दौरान पंडा समाज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी खून से पत्र लिख चुके हैं, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। इस आंदोलन के दौरान सरकार के मंत्रियों व भाजपा नेताओं की तरफ से कई बार इशारेबाजी में बोर्ड भंग न करने का इरादा भी जाहिर किया गया, लेकिन पंडा समाज का आंदोलन अपनी गति से चलता रहा।
कोर वोटर्स होने के कारण भाजपा सरकार की ओर से कई बार की इशारेबाजी के बाद भी तीर्थ-पुरोहित नहीं माने तो सरकार ने भाजपा के वरिष्ठ नेता मनोहरकांत ध्यानी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन कर मामला समिति को सौंप दिया, जिसने नवरात्रि के पहले शुक्रवार 8 अक्टूबर को ऋषिकेश में साफगोई से इस मामले का पटाक्षेप करने की कोशिश की।
समिति अध्यक्ष ध्यानी के इस बयान के बाद तीर्थ-पुरोहित समाज की कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं आयी है। वैसे बताया जा रहा है कि तीर्थ-पुरोहित सरकार के इस रुख से सकते में है। उसे भरोसा नहीं हो रहा है कि सरकार उनके साथ इतनी सख्ती से पेश आ सकती है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड (Uttarakhand) में धामों व मंदिरों की व्यवस्थाओं को व्यवस्थित करने के नाम पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने 2020 में देवस्थानम बोर्ड नामक जिन्न को अस्तित्व में लाकर राज्य के तीर्थ पुरोहितों के क्रोध को भड़का दिया था। वैष्णो देवी में मौजूद श्राइन बोर्ड की तर्ज पर गठित इस बोर्ड के गठन के बाद से ही तीर्थ पुरोहित इसका विरोध कर रहे हैं। पुरोहितों ने सामूहिक रूप से भाजपा की सदस्यता छोड़ने की चेतावनी देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) को अपने खून से लिखे पत्र भेजकर देवस्थानम बोर्ड एक्ट (Devasthanam board Act) को रद्द करने की गुहार भी लगायी थी।
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बोर्ड के गठन का नोटिफिकेशन जारी होते ही अभी तक तीर्थ धाम की व्यवस्थाओं को देख रही बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति का अस्तित्व स्वतः समाप्त हो गया था। बोर्ड के गठन से पहले बदरी-केदार मंदिर समिति के लिए 1939 में लाये एक अधिनियम के तहत बदरीनाथ और केदारनाथ धाम की व्यवस्थाओं को व्यवस्थित किया जाता रहा था, लेकिन देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड के कारण करीब 80 साल पुरानी यह बीकेटीसी निरस्त हो गई है। इसी बोर्ड को भंग करने की मांग तीर्थ पुरोहित बीते दो सालों से कर रहे हैं। पुरोहित इसे धार्मिक मामलों में सरकार का बेवजह हस्तक्षेप बता रहे हैं।
पुरोहितों की इस मांग को त्रिवेन्द्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) ने तो क्या ही सुनना था। उनके बाद आये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत तक ने पुरोहितों की मांग पर कोई तवज्जो नहीं दी। बीते दो साल से राज्य के तीर्थ पुरोहित इस मामले को लेकर कभी नरम तो कभी तीखा आंदोलन कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा की 'अपनी' सरकार में देर-सवेर उनकी बात सुन ली जाएगी, लेकिन अगले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा भी इस मामले में कोई दिलचस्पी न लिए जाने पर तीर्थ पुरोहितों का माथा ठनकने लगा है।