- Home
- /
- अंधविश्वास
- /
- Diwali पर बढ़ा उल्लुओं...
Diwali पर बढ़ा उल्लुओं की तस्करी का खतरा, कॉर्बेट सहित उत्तराखंड के जंगलों में बढ़ाई गई सुरक्षा
उत्तराखंड में उल्लुओं की सुरक्षा के लिए अलर्ट जारी।
रामनगर। दीपावली पर जहां चारों तरफ मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना का माहौल रहता है, वहीं दीपावली के आसपास के ये कुछ दिन उनके वाहन उल्लुओं के लिए शामत भरे होते हैं। अंधविश्वास की वजह से देश के कई हिस्सों में धन की देवी माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तांत्रिक उल्लुओं का बलि देते हैं। जिस वजह से उतराखंड के जंगल के पहरेदारों को इनकी हिफाज़त में मुस्तेद रहना पड़ता है।
उल्लुओं की रक्षा के लिए अवकाश रद्द
उत्तरांखंड में दो तिहाई हिस्से पर जंगल होने की वजह से उल्लुओं की बहुतायत है। इसलिए दिवाली के दिनों में उल्लुओं के दुश्मनों की नजर इन जंगलों पर लगी रहती है। जिस वजह से इन दिनों जंगल में उल्लू का शिकार करने के लिए घुसपैठ करने वाले शिकारियों की रोकथाम के लिए वन-महकमा हर साल अलर्ट मोड पर रहता है। वनकर्मियों की छुट्टियां निरस्त करने से लेकर जंगलों में विशेष गश्त हर साल का रूटीन है। इसी रूटीन के चलते इस साल भी कॉर्बेट नेशनल पार्क और राजाजी नेशनल पार्क सहित सभी जंगलों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
दक्षिण भारत में है उल्लुओं की बलि देने की प्रथा
अंधविश्वास के चलते लोग उल्लुओं की जान के पीछे पड़े रहते हैं। लोग मानते हैं कि उल्लू की बलि दिए जाने से तंत्र-मंत्र विद्या को अधिक बल मिलता है। इसकी बलि दी जाने से जादू-टोना बहुत कारगर सिद्ध होने की धारणा के कारण लोग उल्लुओं को पकड़ने के लिए जंगलों की ओर रुख करते हैं। अंधविश्वास की इस मूर्खता के चलते दुर्लभ होती उल्लुओं की प्रजाति पर अत्याचार पुराने समय से होता आ रहा है। उल्लू के मुंह, पंजे, पंख, मस्तिष्क, मांस सहित उसकी हड्डियों को तंत्र विद्या में उपयोग कर तंत्र विद्या से जुड़े जुड़े लोग लोगों की मूर्खता के कारण लाखो के वारे-न्यारे करते हैं। दक्षिण भारत में दाक्षडात्य ब्रित और रावण संहिता नामक शास्त्रों में उल्लू की बलि दिए जाने का उल्लेख भी मिलता है।
संरक्षित प्राणी है उल्लू है
प्रख्यात नेचुलरिस्ट एजी अंसारी बताते हैं कि भारतीय वन्य जीव अधिनियम, 1972 की अनुसूची-एक के तहत विलुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में शामिल उल्लू संरक्षित प्राणी है। इसके शिकार या तस्करी करने पर कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है। वैसे तो पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं, लेकिन ब्राउन फिश आउल, कोलार्ड स्कॉप्स, रॉक आउल, डस्की आउल, बॉर्न आउल, मोटल्ड वुड आउल, ग्रेट होंड आउल, मोटल्ड आउल, यूरेशियन आउल यह कुछ इनकी प्रजातियां विलुप्त प्रजाति के रूप में चिह्नित है। इनके पालने और शिकार करने दोनों पर प्रतिबंध है।
उत्तराखंड का कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय पार्क है। यह राज्य के नैनीताल जिले के रामनगर के पास स्थित है। इस पार्क को बंगाल बाघ की रक्षा के लिए हेली नेशनल पार्क के रूप में स्थापित किया गया था। इसे बाघ परियोजना पहल के तहत आने वाला पहला पार्क माना जाता है । यहां हर साल नंवबर से लेकर मई तक पार्क में पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है। इस पार्क में भी दीपावाली को लेकर कार्बेट पार्क में रेड अलर्ट जारी किया गया है। कॉर्बेट नेशनल पार्क के वार्डन आरके तिवारी ने बताया कि ई-सर्विस सिस्टम पर कर्मचारियों की तैनाती की गई है जो की थर्मल कैमरों की जद में आने वाली हर एक गतिविधियों पर नज़र रखेंगे। सुबह से शाम तक कैमरों से निगरानी रखी जाएगी। सभी डीएफओ, रेंजरों के गश्त पर निगरानी रखने के आदेश दिए गए हैं।
अलर्ट जारी
रामनगर वन प्रभाग के डीएफओ चंद्रशेखर जोशी व तराई पश्चिमी वन प्रभाग के डीएफओ बीएस शाही ने भी अलर्ट जारी किया है। इन दोनों वन प्रभाग के जंगलों की सीमाएं खुली हैं और यहां पर शिकारियों के घुसने की सबसे ज्यादा आशंका है। ऐसे में इन वन कर्मियों को विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। वहीं, राजाजी टाइगर रिजर्व प्रशासन ने पहले ही अधिकारियों, कर्मचारियों के अवकाश पर रोक लगा दी है। इसके अलावा, टाइगर रिजर्व क्षेत्र के हिरण, कांकड़, सांभर, उल्लू आदि वन्यजीवों के शिकार करने वालों पर निगरानी के आदेश दिए गए हैं। तराई पूर्वी वन प्रभाग के प्रभागीय वन अधिकारी संदीप कुमार के अनुसार दीपावली के मद्देनजर वन विभाग अलर्ट पर है। वन विभाग ने कॉम्बिंग शुरू कर दी है। डीएफओ कुमार ने कहा अगर कोई भी जंगल में तस्करी या वन्यजीवों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ वन अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी।