किसानों ने शुरू किया न्यूज़ चैनलों का बहिष्कार, .'आजतक' को दिया सीधा जबाब- आपके चैनल से नहीं करनी बात
Photo:social media
जनज्वार। केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन कर रहे हैं। हरियाणा, पंजाब आदि कई राज्यों के किसान 'दिल्ली चलो' मार्च कर कई झंझावातों से जूझते हुए दिल्ली पहुंच रहे हैं और बड़ी संख्या में किसान सिंधु बार्डर सहित अन्य इलाकों में आंदोलनरत हैं। इन सबके बीच मीडिया की भूमिका को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं, चूंकि देश के 400 से ज्यादा किसान संगठनों द्वारा आहूत किए गए किसानों के इतने बड़े आंदोलन को मीडिया न तो उतनी तवज्जो दे रहा है, न कवरेज।
हालांकि इसके पीछे कारण क्या हो सकता है, इसे कमोबेश हर कोई समझ रहा है। इस बात को किसान भी समझ रहे हैं और उन्होंने एक तरह से कथित मेन स्ट्रीम मीडिया का बायकॉट करना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में किसानों द्वारा निजी समाचार चैनल 'आजतक' के पत्रकार से बात करने और बाइट देने से इंकार करने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।
वायरल हो रहे इस वीडियो में साफ तौर से देखा जा सकता है कि 'आजतक' की महिला पत्रकार अपने कैमरा पर्सन के साथ आंदोलनरत किसानों के पास गई है। वे किसानों से बात करना चाहतीं है और अपनी माइक में उनका बाइट लेना चाहतीं हैं, पर वहां मौजूद किसान एक तरह की व्यंग्यात्मक हंसी के साथ साफ-साफ कहते नजर आ रहे हैं कि हमें आजतक से बात नहीं करनी...हम आजतक से बात नहीं करेंगे।
इसके बाद वे महिला पत्रकार अपने कैमरा पर्सन के साथ वापस जाती नजर आतीं हैं। वापस जाते हुए वे कह रहीं हैं ठीक है, कोई बात नहीं, आपलोग अपना ख्याल रखिएगा।
रवि नायर नामक एक ट्विटर हैंडल से इस वाकये की वीडियो क्लिप शेयर की गई है। रवि नायर ने इस घटना को लेकर 'आजतक' पर तंज भी किया है। उन्होंने लिखा है 'बधाई आजतक। आपने अपनी कड़ी मेहनत से इस उपलब्धि को हासिल किया है।'
सवाल यह उठता है कि आखिर यह नौबत आई क्यों। कोई आंदोलन होता है तो आंदोलनकारी अमूमन मीडिया को देखते ही अपनी बात कहने के लिए खुद आगे आ जाते हैं, ताकि उनकी भावनाओं, समस्याओं और बातों को लोगों और संबंधित अधिकारियों और सरकारों तक पहुंचाया जा सके। फिर ऐसा क्यों हो रहा है कि आंदोलनकारी किसी न्यूज़ चैनल के साथ बात करने से सीधे-सीधे इंकार कर रहे हैं।
हालांकि इसके लिए सीधे तौर पर मीडिया संस्थानों को ही दोषी कहा जा सकता है। मीडिया संस्थान अगर अपनी भूमिका का सही तरीके से निर्वहन किए होते तो सँभवतः आज ऐसी नौबत नहीं आती।
इस किसान आंदोलन को ही देखा जाय तो इतने बड़े आंदोलन और लाखों किसानों के दिल्ली मार्च के दौरान पुलिस और सरकार द्वारा आंदोलनकारियों को रोकने की घटनाओं का खासतौर पर कथित मेन स्ट्रीम मीडिया में न तो कोइ खास कवरेज मिला, न उनकी समस्याओं और बातों को रखा गया। फिजूल की बातों को लेकर घँटे-दो घँटे पैनल डिस्कशन आयोजित करने वाले टीवी चैनलों से किसान आंदोलन की खबरें एक तरह से नदारद रहीं, या फिर कुछ सेकंड-मिनट की कवरेज कर इनके द्वारा खानापूर्ति की रस्म अदा की गई।
जब किसानों को रोकने के लिए उनके ऊपर सर्द मौसम में पानी की बौछारें की जा रहीं थीं, उनके ऊपर आंसू गैस के गोले दागे जा रहे थे, तब ज्यादातर टीवी चैनलों पर हिंदुस्तान-पाकिस्तान, क्रिकेट और बॉलीवुड की खबरें दिखा कर कर ध्यान भटकाया जा रहा था।
कई चैनलों-अखबारों ने इस आंदोलन को लेकर अनर्गल प्रलाप शुरू कर इसे भटकाने और बांटने की कोशिश भी शुरू कर दी। दैनिक जागरण अखबार ने तो किसानों के दिल्ली कूच के बीच 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगने जैसी फर्जी खबरें बिना किसी स्तर की पुष्टि किए प्रकाशित कर दीं।