Govind Pansare murder case : 7 साल बाद भी नहीं सुलझी मौत की गुत्थी, बॉम्बे HC ने कहा - कब तक करें इंतजार!
Govind Pansare murder case : 7 साल बाद भी नहीं सुलझी मौत की गुत्थी, बॉम्बे एचसी ने कहा - कब तक करें फाइनल रिपोर्ट का इंतजार!
Govind Pansare murder case : सामाजिक कार्यकर्ता और वामपंथी नेता गोविंद पानसरे की हत्या ( Govind Pansare murder ) के मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ( Bombay High Court ) ने महाराष्ट्र के विशेष जांच दल ( Maharashta SIT) की लेटलतीफी जांच पर नाराजगी जाहिर की। अदालत की नाराजगी का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इस बार हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी महाराष्ट्र एटीएस ( Maharashtra ATS ) को सौंप दी है। अब तक महाराष्ट्र के अपराध जांच विभाग सीआईडी का विशेष जांच दल यानि एसआईटी मामले की जांच कर रही थी।
बॉम्बे हाईकोर्ट ( Bombay High Court ) के न्यायमूर्ति रेवती मोहिते देरे और न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने तीन अगस्त को कहा कि हमने पानसरे के परिवार द्वारा दाखिल आवेदन को स्वीकार करते हुए मामले की जांच एटीएस को स्थानांतरित कर दी है। पानसरे के परिवार के सदस्यों ने याचिका दाखिल कर विशेष दल से जांच कराने की अपील की थी, जिसके बाद बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर 2015 में एसआईटी का गठन किया गया था।
3 अगस्त तक फैसला लेना होगा
इस मामले में सवाल यह उठता है कि क्या दाभोलकर पानसरे हत्याकांड ( Govind Pansare murder ) की जांच निष्कर्ष तक पहुंच भी पायेगा या नहीं। हाईकोर्ट ने जिस तरह से एसआईटी की जांच को लेकर टिप्पणियां की है उससे तो अब ये आशंकाएं खड़ी होने लगी हैं कि कहीं न कहीं से कोई दबाव है जो पूरे प्रकरण की तह तक जाने में जांच दल के समक्ष बाधाएं पैदा करता है। इस मामले को लेकर अदालत ने सीबीआई, पुलिस के विशेष जांच दल और राज्य सरकार को अनेकों बार खरी खरी सुनाई लेकिन उसके बावजूद जांच किसी निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंची है। एक दिन पहले अदालत ने जांच अधिकारियों से कहा कि जांच ऐसे ही तो अधूरी नहीं छोड़ी जा सकती। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि जांच को लेकर पानसरे परिवार ने जो मांग की है उस पर 3 अगस्त तक निर्णय लेना ही पड़ेगा इसलिए अपना जवाब स्पष्ट शब्दों में पेश करें।
विचारधाराओं के टकराव से जुड़ा है मामला
इस मामले में असल बात यह है कि पनसारे की हत्या ( Govind Pansare murder ) का मामला विचारधाराओं के टकराव से जुड़ा है। टकराव के चलते ही 20 अगस्त 2013 में नरेंद्र दाभोलकर की हत्या हुई, 20 फरवरी 2015 को गोविंद पानसरे और 30 अगस्त 2015 को एक और बुद्धिजीवी एमएम कलबुर्गी की भी हत्या कर दी गई। बेंगलुरु में 5 सितंबर 2017 को पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या को भी इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है।
कोर्ट ने राजनेताओं को भी दी थी नसीहत
बॉम्बे हाईकोर्ट ( Bombay High Court ) ने मामले की सुनवाई के दौरान राजनीतिक दलों को सलाह भी दी थी कि वे विरोध की आवाजों को दबने न दें। इस देश में कोई भी संस्थान सुरक्षित नहीं है। भले ही वो न्यायपालिका ही क्यों न हो। यही नहीं, अदालत ने यहां तक कह डाला था कि भारत की छवि अपराध और बलात्कार वाले देश की बन गई है। देश ऐसी दुखद स्थिति का सामना कर रहा है जहां कोई भी किसी से बात नहीं कर सकता या उन्मुक्त नहीं घूम सकता। जांच अधिकारी इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। क्या महाराष्ट्र के सीएम के पास वक्त नहीं है?
पानसरे की बहू ने की थी जल्द जांच की मांग
सामाजिक कार्यकर्ता और वामपंथी नेता गोविंद पानसरे की सात साल पहले कोल्हापुर में उनके घर के सामने हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या किन लोगों ने किस उद्देश्य से की, इस पर आज तक रहस्य बना हुआ है। दूसरी ओर पानसरे परिवार को अब तक न्याय का इंतज़ार है। परिवार ने मांग की है कि जांच जल्द से जल्द पूरी हो और उन्हें न्याय मिले। पानसरे की बहू मुक्ता ने गुरुवार 8 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट में एक अंतरिम आवेदन दायर कर उनकी हत्या की जांच महाराष्ट्र सीआईडी से राज्य एटीएस को स्थानांतरित करने की मांग की थी। याचिका में दावा किया गया था कि 2015 से मामले की जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है। मुक्ता पानसरे की इस याचिका को अदालत ने गंभीरता से लिया है और कहा है कि वह 3 अगस्त 2022 तक की समय सीमा देती है जवाब देने के लिए।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस इतनी लापरवाह हो गई है या राजनीतिक दबाव उसकी जांच प्रक्रिया को पंगु कर रहा है। महाराष्ट्र में विगत कुछ वर्षों में दाभोलकर.पानसरे की जांच का मामला हो, भीमा .कोरेगांव और उससे उपजे शब्द अर्बन नक्सल का प्रकरण हो, सनातन संस्था के खिलाफ चल रही जांच हो या महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक मामला, जिसमें अजीत पवार सहित करीब दो दर्जन राजनेता आरोपी हैं। इन सभी मामलों में अदालत ने न सिर्फ जांच एजेंसियों के कामकाज पर उंगली उठाई है, अपितु उन्हें फटकार भी लगाई है।
हाईकोर्ट को क्यों देना पड़ा कर्नाटक पुलिस का उदाहरण
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र की जांच एजेंसी और सीबीआई को कर्नाटक पुलिस का उदाहरण भी दिया था कि किस तरह से कर्नाटक पुलिस इसी प्रकार के गौरी लंकेश हत्या काण्ड में आरोपियों तक पहुंच कर उन्हें गिरफ्तार कर पूरी साजिश का पटाक्षेप कर दिया। जबकि महाराष्ट्र पुलिस या सम्बंधित जांच एजेंसियां इस बात को लेकर समय बर्बाद कर रही हैं कि दाभोलकर पर जो गोलियां दागी गई हैं, उन्हें जांच के लिए स्कॉटलैंड यार्ड के पास भेजा जाए या गुजरात। बड़ी बात तो यह है कि कुछ महीनों बाद जांच एजेंसियां न्यायालय को बताती हैं कि स्कॉटलैंड यार्ड और भारत के बीच इस बात पर कोई करार न होने की वजह से गोलियों की जांच गुजरात में होगी। उस समय अदालत ने जांच एजेंसियों से पूछा था कि क्या अधिकारियों के बीच सामंजस्य की कमी है या फिर अधिकारियों ने अपनी जांच मात्र मोबाइल फोन रिकॉर्ड तक सीमित कर दी है। गंभीर बात तो यह थी कि यह सब तब हो रहा है जब पूरे मामले की जांच कोर्ट की निगरानी में हो रही है। इस मामले की जांच से जुड़े पुलिस अधिकारियों के तबादले बिना अदालती आदेश के किये जाने पर रोक लगी हुई है। अदालत ने एक सुनवाई के दौरान तात्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को फटकार लगाते हुए कहा था कि राजनीतिक दलों और उनके प्रमुखों को परिपक्वता दिखानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तर्कवादियों नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे की हत्याओं की जांच में कोई बाधा पैदा नहीं हो।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में गिरफ्तार 9 आरोपियों के पक्ष को अपनी टिप्पणियों में शामिल किया है। अदालत ने कहा कि उन्हें कब तक गिरफ्तार रखा जा सकता है लेकिन लगता है कि इन सब बातों का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और आज सात सालों बाद भी जांच एजेंसियां कोई ठोस निष्कर्ष अदालत के समक्ष नहीं रख सकी हैं।
साल 2015 में हुई थी गोविंद पनसारे की हत्या
Govind Pansare murder case : बता दें कि गोविंद पानसरे ( Govind Pansare murder ) को 16 फरवरी, 2015 को कोल्हापुर में गोली मार दी गई थी। कुछ दिन बाद 20 फरवरी को उनकी मौत हो गई। इस मामले की जांच करने वाली सीआईडी ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया था। कार्यकर्ता के परिवार ने पिछले महीने उच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल कर इस मामले की जांच एटीएस को स्थानांतरित करने की मांग की थी। उन्होंने दावा किया था कि एसआईटी अभी तक इस मामले में कोई सफलता हासिल नहीं कर पाई है।
एसआईटी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अशोक मुंदरगी ने अदालत से कहा कि यदि जांच एटीएस को सौंपी जाती है तो एसआईटी को कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि वह भी राज्य सरकार की ही एजेंसी है। मुंदरगी ने कहा कि हम इससे सहमति जताते हैं। एटीएस को मामला स्थानांतरित किया जा सकता है और एसआईटी के कुछ अधिकारी एटीएस की मदद कर सकते हैं। अदालत ने जब पूछा कि जांच का नेतृत्व कौन वरिष्ठ अधिकारी करेगा तो मुंदरगी ने कहा कि अतिरिक्ति महानिदेशक एटीएस का वरिष्ठतम अधिकारी हैं। वह जांच की निगरानी करेंगे। बुधवार को अदालत ने दाभोलकर और पानसरे हत्याकांड में गिरफ्तार तीन आरोपियों द्वारा दायर आवेदनों पर विचार करने से भी इनकार कर दिया, जिन्होंने इस स्तर पर जांच को किसी अन्य एजेंसी को स्थानांतरित करने का विरोध किया था।