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Gujarat riots 2002 : तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व डीजीपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कह दी बड़ी बात

Janjwar Desk
31 July 2022 5:51 AM GMT
Gujarat Riots 2002 : तीस्ता सीतलवाड़ को मिली बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने दी अंतरिम जमानत
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Gujarat Riots 2002 : तीस्ता सीतलवाड़ को मिली बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने दी अंतरिम जमानत

Gujarat riots 2002 : तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को अहमदाबाद अपराध शाखा ने जून में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी आने के बाद गिरफ्तार किया था।

Gujarat riots 2002 : अहमदाबाद की अदालत ( Ahmedabad court ) ने गुजरात दंगा 2002 के दंगों के सिलसिले में बेगुनाह लोगों को फंसाने के लिए दस्तावेजों में जालसाजी करने के आरोप में गिरफ्तार सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ( Teesta Setalvad ) और वहां के पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार ( Fromer DGP RB Srikumar ) की जमानत याचिका खारिज कर दी। साथ अदालत का यह कहना कि जमानत देने से गलत संदेश जाएगा, अपने आप में चौंकाने वाली बात है।

हालांकि, तीस्ता सीतलवाड़ ( Teesta Setalvad ) और पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार ( Fromer DGP RB Srikumar ) ने मामले की तफ्तीश करने के लिए गठित किए गए विशेष जांच दल की ओर से लगाए गए आरोपों बेबुनियाद करार दिया लेकिन अदालत ने दोनों के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। बता दें कि तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को अहमदाबाद अपराध शाखा ने जून में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी आने के बाद गिरफ्तार किया था।

अहमदाबाद एसआईटी ( SIT report ) ने अदालत को बताया कि सीतलवाड़ और श्रीकुमार ( Fromer DGP RB Srikumar ) दिवंगत कांग्रेस नेता अहमद पटेल ( Ahmed patel ) के इशारे पर रची गई साजिश का हिस्सा थे, जिसका मकसद गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी सरकार को अस्थिर करना था। एसआईटी ने आरोप लगाया गया है कि 2002 की गोधरा ट्रेन जलाने की घटना के तुरंत बाद पटेल के कहने पर सीतलवाड़ को 30 लाख रुपए का भुगतान किया गया था। आरबी श्रीकुमार को एसआटी ने अपनी रिपोर्ट में एक असंतुष्ट सरकारी अधिकारी करार दिया है। एसआईटी का दावा है कि पूरे गुजरात के निर्वाचित प्रतिनिधियों, नौकरशाही और पुलिस प्रशासन को गुप्त उद्देश्यों के लिए बदनाम करने की योजना के तहत ऐसा किया गया।

अहमदाबाद कोर्ट ने क्या कहा?

अहमदाबाद की अदालत ( Ahmedabad court ) ने कहा कि अगर उन्हें जमानत पर रिहा किया गया तो इससे गलत काम करने वालों को एक संदेश जायेगा कि एक व्यक्ति बिना किसी दंड के आरोप लगा सकता है और इससे बच सकता है। अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश डीडी ठक्कर ने दोनों को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि आरोपियों का मकसद गुजरात सरकार को अस्थिर करना और राज्य को बदनाम करना था। एक अन्य आरोपी व पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने जमानत के लिए आवेदन नहीं किया था। भट्ट पहले से ही एक अन्य मामले में जेल में थे, जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था। सत्र न्यायालय ने आदेश में कहा कि ऐसा लगता है कि आरोपियों का इरादा तत्कालीन सरकार पर गोधरा दंगों को प्रायोजित करने का आरोप लगाने के लिए झूठे दस्तावेजों का उपयोग करके सरकार को अस्थिर करना और देश और विदेश में गुजरात की छवि खराब करना था। उन्होंने एक राजनीतिक गुट के साथ.साथ अन्य देशों से व्यक्तिगत लक्ष्य और मौद्रिक लाभ प्राप्त करने के लिए ऐसा किया। जमानत मिलने पर वे निश्चित रूप से गवाहों के साथ छेड़छाड़ करेंगे और जांच को प्रभावित करेंगे।

तीस्ता और पूर्व डीजीपी पर हैं ये आरोप

यहां पर यह बता देना जरूरी है कि अहमदाबाद शहर की अपराध शाखा ने भारतीय दंड संहिता की धारा 468 यानि धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी और 194 दोषी साबित करने के इरादे से झूठे सबूत देना या गढ़ना के तहत गिरफ्तार किया था।

SIT का दावा - पटेल के कहने पर सीतलवाड़ को मिले थे 30 लाख रुपए

अहमदाबाद की कोर्ट ( Ahmedabad court ) में जमानत याचिका का विरोध करते हुए एसआईटी ने एक गवाह के बयान का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि आरोपी तत्कालीन सीएम मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस के दिवंगत नेता अहमद पटेल के इशारे पर की गई साजिश का हिस्सा थे। 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड के तुरंत बाद पटेल के कहने पर सीतलवाड़ ( Teesta Setalvad ) को 30 लाख रुपए का भुगतान किया गया था। श्रीकुमार एक असंतुष्ट सरकारी अधिकारी थे, जिन्होंने पूरे गुजरात राज्य के निर्वाचित प्रतिनिधियों, नौकरशाही और पुलिस प्रशासन को गुप्त उद्देश्यों के लिए बदनाम करने के मकसद से सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया और जरूरी प्रक्रियाओं को बाधित किया।

गुजरात दंगे में मारे गए थे 1000 से अधिक लोग

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) ने 2002 के गुजरात दंगा मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य लोगों को एसआईटी द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका 24 जून को खारिज कर दी थी। यह याचिका गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने दायर की थी। एहसान जाफरी 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में मारे गए 68 लोगों में शामिल थे। इससे एक दिन पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 लोग मारे गए थे। इन घटनाओं के बाद ही गुजरात में दंगे भड़के थे। इन दंगों में एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे।

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