Hathras Gangrape : बिटिया की दर्दनाक मौत भी न बदल सकी मानवीय हिकारत, घटना के बाद से छावनी में तब्दील है पीड़िता का घर
(हाथरस कांड का पूरा हुआ एक साल)
Hathras Gangrape (जनज्वार) : हाथरस गैंगरेप कांड को हुये एक साल का समय पूरा हो गया। पिछले साल आज ही के दिन यूपी पुलिस ने पीड़िता की मौत के बाद परिवार की मर्जी के बगैर ही उसका शव जला दिया था। घटना के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे। न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया तक में कवरेज हुई थी। इस कांड कोे लेकर प्रशासन सहित सरकार की भी तमाम किरकिरी हुई थी।
पिछले साल की घटना के बाद से ही पीड़ित परिवार का घर सीसीटीवी (CCTV) कैमरों की निगरानी में है। दरवाजे पर मेटल डिटेक्टर सहित सीआरपीएफ (CRPF) के 100 से ज्यादा जवान तैनात हैं। बारिश की वजह से यहां पानी भर गया है, मेटल डिटेक्टर भी आधा पानी में डूबा है।
मृतका के गांव में सिर्फ 4 घर दलितों के हैं। जहां दलित परिवारों के घर हैं, वो गांव का अछूत कोना है। (Hathras Case) पूरे गांव में पक्की सड़क है, लेकिन यहां नहीं है। पूरे गांव की गंदगी यहीं फेंकी जाती है। इन परिवारों को इस गंदगी में रहने की आदत है। यहां तैनात सीआरपीएफ जवान तक गंदगी से आजिज आ चुके हैं और कहते हैं, 'हम साल भर से इस गंदगी में रह रहे हैं। लेकिन लोगों ने न तो कूड़ा डालना बंद किया और न ही इसकी सफाई ही होती है।
पीड़िता के एक भाई का कहना है कि, 'ऊंची जाति के लोग तो हमें ही कचरा समझते हैं। तभी तो हमारे घरों के चारों तरफ कचरा है। गैंगरेप की घटना और पीड़िता की मौत के बाद सरकार के बड़े अधिकारियों, मंत्रियों, विपक्ष के नेताओं और जिले के प्रशासनिक अधिकारियों के दौरे हुए, लेकिन किसी ने भी इस गंदगी को यहां से हटाने के बारे में नहीं सोचा।
क्या कहती है पीड़िता की मां?
पीड़िता की मां कहती हैं कि कुछ दिन पहले जब यहां बारिश का पानी भरा था और गली से निकलना मुश्किल था, तो सीआरपीएफ के कुछ जवान छत के रास्ते कथित ऊंची जाति के लोगों के घर से होते हुए बाहर गए थे। तब उन घरों की महिलाओं ने ताना मारा था कि वे अछूतों के घर से उनके घर में होकर क्यों निकले? इसके बाद ही पुलिस वालों ने सड़क बनाने की मांग की। जिसके बाद अब पीड़ित परिवार के दरवाजे तक सड़क बिछाने का काम किया जा रहा है, लेकिन पीड़ित परिवार इस नई सड़क को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है।
मृतका की भाभी कहती हैं, 'यहां आज भी नालियां नहीं बन पाई हैं। हम लोगों को बर्तन तक धोने के बाद पानी को गड्ढे में इकट्ठा करना पड़ता है, और फिर से उसे बाल्टी में भरकर बाहर फेंककर आते हैं। इस गांव में हमारे लिए कभी कुछ रहा ही नहीं। सिवाय लोगों द्वारा मिलेने और दिए जाने वाले भेदभाव के। वह बताती हैं, 'अब सड़क बिछाई जा रही। हमें खुश होना चाहिए था कि हमारे दरवाजे तक सड़क आ रही है, लेकिन हमें अब फर्क नहीं पड़ता। हम अब इस गांव में बस अपने दिन गिन रहे हैं।
एक साल हो गया नजरबंद है परिवार
परिवार की सुरक्षा में सीआरपीएफ की 135 जवानों की पूरी कंपनी तैनात है। ये जवान तीन शिफ्टों में पहरा देते हैं। घर की छत, दरवाजे और बाहर हर समय हथियारों से लैस जवान तैनात रहते हैं। पीड़ित परिवार का कोई भी सदस्य घर से बाहर बिना सुरक्षा के नहीं निकल सकता है। यहां तक कि गांव की दुकान तक भी जब कोई जाता है तो सुरक्षाकर्मी साथ रहते हैं। मृतका का छोटा भाई कहता है, 'सुरक्षा की वजह से मुझे नौकरी छोड़नी पडी है। मैं अपने घर में ही हूं। मैं किसी दोस्त से भी नहीं मिल पाता हूं और न ही घर से बाहर निकल पाता हूं।'
कोई हमसे छू जाए तो गंगाजल छिड़कता है
पीड़िता के पिता कहते हैं, 'गांव में ऊंची जाति के लोगों से हमारा रिश्ता पहले भी बराबरी का नहीं था। इस घटना के बाद बाहर के बहुत से लोग हमारे घर आए, लेकिन गांव के लोग नहीं आए। किसी ने हाल तक नहीं पूछा। इस दूरी की वजह भी जाति ही है। गांव के ठाकुर जाति के एक व्यक्ति कहते हैं, 'यदि हम इन लोगों से छू भी जाएं तो नहाना पड़ता है और गंगाजल छिड़कना पड़ता है।' वहीं पीड़िता का छोटा भाई कहता है, 'गांव के लोगों के यहां हमारा आना-जाना पहले भी सीमित ही था। इस घटना के बाद बिल्कुल बंद हो गया है। हम पूरे परिवार के लोग इसी दो कमरे के घर में रहते हैं।'
पीड़िता की भाभी भरे गले में कहती है, 'हमारा डर तो उसी दिन खत्म हो गया था जिस दिन बिटिया की बॉडी को जबरदस्ती जला दिया गया था। उससे भी बुरा हमारे साथ और क्या होगा। अब तो सबसे बुरा हो चुका है। अब किसी बात का डर नहीं है। अब बस न्याय के लिए लड़ना है। जब तक न्याय नहीं मिलेगा हम लड़ते रहेंगे।
25 लाख मिले, नौकरी और घर का इंतजार
प्रदेश की योगी सरकार ने इस घटना के बाद परिवार को 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी थी, इसके साथ एक सदस्य को नौकरी और मकान भी देने को कहा था। बीते एक साल से पीड़ित परिवार इसी पैसे में से घर का खर्च चला रहा है, कोई भी सदस्य अभी कोई काम नहीं कर पा रहा है। दोनों भाइयों की नौकरी छूट चुकी है। सरकार ने परिवार को एक सरकारी घर और भाई को नौकरी देने का वादा भी किया था, जो अभी तक पूरा नहीं हो सका है। बड़े भाई कहते हैं, 'हम इंतजार कर रहे हैं कि सरकार नौकरी और घर देने का अपना वादा पूरा करे।'
मीडिया से नाराजगी
गांव के ज्यादातर लोग पीड़ित परिवार के बारे में व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि वे तो सरकारी पैसे पर खूब मौज कर रहे हैं। कई लोग जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल बिना किसी हिचक के करते हैं। हालांकि कुछ लोग ये जरूर कहते हैं कि मुख्य आरोपी संदीप की संलिप्तता हो सकती है, लेकिन रामू, रवि और लवकुश बेगुनाह हैं। गांव के लोग कहते हैं, एक साल हो गया, मीडिया ने इस गांव में धूल उड़ानी नहीं छोड़ी। अगर मीडिया पीछे न पड़ता तो हमारे बच्चे जेल में नहीं घर में होते। ये मीडिया ही अदालत बनी हुई है।
गांववालों की नजर में बेगुनाह हैं आरोपी
हाथरस मामले की जांच सीबीआई कर रही है। सीबीआई (CBI) ने बीते साल दिसंबर में अदालत में चार्जशीट दायर करते हुए चारों अभियुक्तों पर गैंगरेप और हत्या के आरोप तय किए थे। मामले की सुनवाई हाथरस की ही एससी-एसटी कोर्ट में चल रही है। पिछली सुनवाई 23 सितंबर को थी और अब अगली सुनवाई 30 सितंबर को होनी है। पीड़िता के बड़े भाई के मुताबिक फिलहाल उनसे सवाल-जवाब हुए हैं। अगली सुनवाई में उनकी मां के बयान लिए जाएंगे। फिर गवाहों की गवाही दर्ज होगी। वहीं गांव के लोगों का कहना है कि इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता कि अदालत क्या फैसला देती है। गांव के लोगों की नजर में आरोपी बेगुनाह ही हैं।