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बाबरी विध्वंस केस के फैसले के खिलाफ याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिए टली

Janjwar Desk
13 Jan 2021 12:15 PM GMT
बाबरी विध्वंस केस के फैसले के खिलाफ याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिए टली
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28 वर्ष तक चली सुनवाई के बाद न्यायाधीश एसके यादव ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि ढांचा विध्वंस की घटना के पूर्वनियोजित होने के साक्ष्य नहीं मिले हैं और न ही सीबीआई द्वारा लगाए गए आरोपों के ठोस सबूत मिले हैं, इसलिए मामले से जुड़े सभी आरोपियों को बरी किया जाता है....

लखनऊ। बाबरी विध्वंस केस के फैसले के खिलाफ याचिका पर सुनवाई टल गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने दो सप्ताह के लिए इसे टाल दिया है। बुधवार को सुनवाई के दौरान याचिका में कुछ दस्तावेजी त्रुटि होने के कारण न्यायमूर्ति राकेश श्रीवास्तव की एकल सदस्यीय पीठ ने मामले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करने का आदेश दिया है। याचियों के अधिवक्ता को भी दस्तावेजी त्रुटि दूर करने को कहा है।

बाबरी मस्जिद विध्वंस केस में पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनेाहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा सहित 32 अभियुक्तों को सीबीआई की विशेष अदालत ने 30 सितंबर, 2020 को फैसला सुनाते हुए बरी कर दिया था। हाई कोर्ट में यह याचिका दाखिल कर इस फैसले को चुनौती दी गई है। याचिका अयोध्या निवासी 74 वर्षीय हाजी मुहम्मद अहमद और 81 वर्षीय सैयद अखलाक अहमद ने दायर किया है।

28 वर्ष तक चली सुनवाई के बाद न्यायाधीश एसके यादव ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि ढांचा विध्वंस की घटना के पूर्वनियोजित होने के साक्ष्य नहीं मिले हैं और न ही सीबीआई द्वारा लगाए गए आरोपों के ठोस सबूत मिले हैं, इसलिए मामले से जुड़े सभी आरोपियों को बरी किया जाता है।

वहीं, अयोध्या मुद्दे पर बाबरी के पक्षकार रहे इकबाल अंसारी ने कहा था कि छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में जो हुआ था वो पूरी दुनिया ने देखा। हम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं। अंसारी ने कहा था कि हम संविधान को मानते हैं। हिंदू-मुस्लिम विवाद पूरी तरह खत्म होना चाहिए। अयोध्या में विकास होना चाहिए।

हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में दोनों याचियों ने कहा कि वे इस केस में अभियुक्तों के खिलाफ गवाह थे और विध्वंस के बाद पीड़ित भी हुए थे। उनकी ओर से कहा गया है कि 30 सितंबर, 2020 के फैसले के खिलाफ सीबीआई ने आज तक कोई अपील दाखिल नहीं की है, लिहाजा रिवीजनकतार्ओं को आगे आना पड़ रहा है क्योंकि अदालत के फैसले में कई खामियां हैं।

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