Pakistan Political Crisis : पाकिस्तान में राजनीतिक अंधेरे के आसार, भारत से ही अलग होकर बने देश में लोकतंत्र के कमजोर होने की है लंबी कहानी
Imran Khan Government Crisis : हमारा पड़ोसी पाकिस्तान (Pakistan) में एक बार फिर राजनीतिक अंधेरे की ओर जा रहा है। वहां की इमरान सरकार पर संकट के बादल गहराने लगे हैं। पाकिस्तानी मीडिया में चल रही रिपोर्टों के मुताबिक पाकिस्तानी सेना जिसके प्रमुख उमर जावेद बाजवा (Umar Javed Bajwa) की ओर से प्रधानमंत्री इमरान खान को ओआईसी (Organisation of Islamic Cooperation) के इसी महीने होने वाले सम्मेलन के बाद इस्तीफा देने को कह दिया गया है। पाकिस्तानी मीडिया के मुताबित इमरान खान (Imran Khan) सरकार को सत्ता से बाहर करने का फैसला पाक सेना प्रमुख और पाक सेना के दूसरे कई अफसरों की बैठक के बाद लिया गया। बताया जाता है कि यह बैठक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Pakistan Prime Minister) के सेनाध्यक्ष बाजवा और आईएसआई (ISI) के प्रमुख लैफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम से मुलाकात के बाद आयोजित की गयी थी। रिपोर्टों मे यह भी बताया गया है कि पाक सेना के सभी बड़े अफसर इमारान खान को आसानाी से बच निकलने का रास्ता नहीं देने पर सहमत थे।
बताया जा रहा है कि पाकिस्तान की सत्ताधारी तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी को यह भरोसा था कि पूर्व सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ के वर्तमान सेनाध्यक्ष बाजवा से मुलाकात के बाद फैसला उनके पक्ष में आएगा। पर ऐसा नहीं हो सका। इमरान सरकार बचाने के लिए राहिल शरीफ भी पाक सेना के वर्तमान सैन्य अफसरों की सहमति नहीं हासिल कर सके हैं। गौरलतब है कि पाकिस्तान में विपक्षी दलों के इमरान सरकार के खिलाफ संसद मे अविश्वास प्रस्ताव लाने के बाद प्रधामंत्री इमरान खान शुक्रवार को पाकिसान के सेनाध्यक्ष जनरल उमर जावेद बावजा से मिले थे।
उम्मीद की जा रही थी कि पाकिस्तान के वर्तमान राजनीतिक हालत पर प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष के बीच हुई इस मुलाकात में कोई हल निकाल लिया जाएगा। वहीं पाक मीडिया में यह रिपोर्ट चल रही थी कि इस बैठक में ओआईसी के होने वाले सम्मेलन और बालूचिस्तान के हालातों के बारे में यह बैठक हो रही है। हालांकि अब यह साफ हो गया है कि इस बैठक में प्रधानमंत्री इमरान खान को क्या संदेश सेना की ओर दिया गया है।
यहां आपको बता दें कि साढ़े तीन साल से पाक की सत्ता पर काबित इमरान सरकार के खिलाफ शामिल विपक्षी दलों में मुख्य रूप से नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टों की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स् पार्टी शामिल हैं। इस अवश्विास प्रस्ताव पर पाकिस्तान की संसद में आने वाले 28 मार्च को वोटिंग होनी है। 372 सीटों वाली पाकिस्तान की संसद में इमरान सरकार को बहुमत के लिए 172 सीटों की जरुरत है जबकि फिलहाल उसके पास 155 सांसद ही हैं। इमरान खान की सरकार को सत्ता से अलग करने के लिए अन्य विपक्षी पार्टियों के साथ—साथ कभी धूर विरोधी रहीं पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग ने भी हाथ मिला लिए हैं। ऐसे में पाक की इमरान सरकार पर संकट गहरा गए हैंं।
ऐसा पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान में किसी सत्ताधारी दल पर संकट आया हो। इससे पूर्व में पाकिस्तान में सरकारों के पतन का एक लंबा सिलसिला रहा है। भारत से पाकिस्तान के विभाजन के सिर्फ 11 वर्षों बाद ही पाकिस्तान के लोकतंत्र पर पहला हमला वहीं की सेना की ओर से किया गया था। 1958 में पाकिस्तान में पहला सैन्य तख्तापलट हुआ था जब पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति इसकंदर अली मिर्जा ने पाकिस्तानी संसद को भंग करते हुए वहां के प्रधानमंत्री फिरोज खान नून को सत्ता से बाहर कर दिया था। राष्ट्रपति मिर्जा ने पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनजल अयूब खान को चीफ मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त किया था। फिर सिर्फ 13 दिनों के बाद ही जरनल अयूब खान ने खुद को राष्ट्रपति घोषित करते हुए राष्ट्रपति इसकंदर मिर्जा को देश से निर्वासित कर दिया था।
उसके बाद 04 जुलाई 1977 की रात को आॅपरेशन फेयर प्ले चलाकर (Operation Fair Play) तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल जियाउल हक ने उस समय के प्रधानमंत्री जुल्फिक्कर अली भुट्टो का तख्तापलट कर दिया था। फिर उस घटना के 22 साल बाद अक्टूबर 1999 में पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ ने उस समय के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार का तख्तापलट कर दिया था। बाद में परवेज मुशर्रफ खुद पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने थे। साल 1999 के बाद से पाकिस्तान का लोकतंत्र हमेशा कमजोर सरकारों के लिए ही जाना गया है।
पाक में इस दौरान जितनी भी सरकारें बनीं हैं वो सेना की कठपुतली ही बनीं रहीं। ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान में जिस राजनेता के सिर पर पाकिस्तानी सेना का हाथ होता उसे ही सत्ता हाथ लगती है। इन्हीं परिस्थितियों के बीच ही वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान साढ़े तीन साल पहले पाक सेना सुपात्र बनकर देश के प्रधानमंत्री बन पाए थे। अब जब सेना का उनपर से भरोसा जा रहा है उनकी कुर्सी जाने के भी आसार बनते जा रहे हैं। पाकिस्तान और भारत दोनों देश एक साथ आजाद हुए। भारत से ही निकलकर पाकिस्तान बना। दोनों जगहों पर लोकतंत्र लागू हुआ। पर भारत के उलट पाकिस्तान का लोकतंत्र हमेशा ही संकट में रहा है। कई बार सैन्य तख्तापलट हुए, कई बार इसकी कोशिश हुई। हर बार पाकिस्तान के लोकतंत्र पर लोगों का भरोसा कम हुआ यह अब भी जारी है।
विविधाताओं से भरे देश भारत में अलग-अलग भाषाओं, क्षेत्रों के बावजूद, तमाम गरीबी और बेरोजगारी के बावजूद, तमाम अलग-अलग धर्मों और राजनीतिक विचारधारों के बावजूद यहां का लोकतंत्र आजादी के बाद से अब तक किसी सैन्यतानाशाह के प्रभाव से अक्षुण्ण रहा। शायद इसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि तमाम बुराईयों के बावजूद यहां के नेताओं ने लोकतंत्र की जड़ों को बचाकर रखा। भारत की राजनीतिक प्रणाली में हर सामाजिक और आर्थिक वर्ग के लोगों को प्रतिनिधित्व मिला। इससे यहां के लोकतंत्र की जड़े मजबूत होती गई। वहीं इसके उलट पाकिस्तान सत्ता में हमेशा वहां का पूंजपति वर्ग हावी रहा। राजनीति में 90 प्रतिशत से अधिक का दखल धनाढ्यों का ही रहा। ऐसे में आम जनता की भावनाओं और उम्मीदों पर कभी खरा नहीं उतर पाए। ऐसे में जनमानस की इच्छा जो दिखाकर सैन्य तानाशाहों के राजनेताओं को सत्ता से बेदखल करना आसान बना रहा।
एक बार फिर पाकिस्तान में लोकतंत्र अंधेरे की ओर जाता दिख रहा है। अगर इमरान की सरकार जाती दिख रही है तो यह तय है कि यह सरकार पाकिस्तान के वास्तविक हुक्मरान यानी वहां की सेना का विश्वास खो चुकी है। अब पाकिस्तान की सत्ता पर वही काबिज होगा जिसने सेना और आईएसआई का भरोसा जीत लिया हो या फिर जीतने की कोशिश कर रहा हो। बहरहाल होता क्या है? यह देखने वाली बात होगी। इमरान खान की सरकार पाकिस्तान में बनी रहती है या सत्ता से बेखदल होती है इसकी सही तस्वीर 28 मार्च को ही साफ होगी जब पाकिस्तान की संसद में अवश्विवास प्रस्ताव पर वोटिंग होगी। तब तक हमें इंतजार करना होगा।