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Mahabharat Bhim: 76 की उम्र में प्रवीण कुमार काट रहे हैं मुश्किल की जिंदगी, महाभारत में डंका बजाने वाले एक्टर का ये है दर्द

Janjwar Desk
25 Dec 2021 5:10 PM IST
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(उम्र के इस पड़ाव पर मुश्किल भरे दिन काट रहे हैं महाभारत के भीम) 

खेल के शिखर से फिल्मी ग्लैमर तक कामयाब सफर तय कर चुके 'भीम' उम्र के इस पड़ाव पर आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। लेकिन अब ऐक्टर का दर्द खुलकर सामने आया है...

Mahabharat Bhim: टीवी चैनल दूरदर्शन का लोकप्रिय सीरियल 'महाभारत' (Mahabharat) शायद ही आप भूले हों। लगभग 30 साल पहले इस सीरियल को देखने के लिए हर घर, गली, चौराहा और नुक्कड़ पर भीड़ जमा हो जाती थी। पिछले साल लॉकडाउन में भी इस शो को खूब देखा गया और आज के दौर के दर्शकों के द्वारा भी खूब पसंद किया गया। इसके किरदारों की फिर से चर्चा होने लगी।

'महाभारत' को याद करते ही आपके मन में 'गदाधारी भीम' का चेहरा सबसे पहले उभरकर आता होगा। ये किरदार 6 फुट से भी ज्यादा लंबे भीमकाय प्रवीण कुमार सोबती (Praveen Kumar Sobati) ने निभाया था। उन्होंने न सिर्फ ऐक्टिंग की दुनिया में सफलता हासिल की, बल्कि खेल के मैदान में भी कामयाबी का परचम लहराया, लेकिन जिंदगी के इस शानदार सफर को तय करने वाले 76 वर्षीय प्रवीण को अब पेंशन की दरकार है। उन्होंने गुहार लगाई है कि जीवन यापन के लिए उन्‍हें भी पेंशन दी जाए।

प्रवीण कुमार सोबती का खेल के मैदान में भी कोई सानी नहीं था। दो बार ओलंपिक, फिर एशियन, कॉमनवेल्थ में कई गोल्ड, सिल्वर मेडल हासिल कर चुके प्रवीण 1967 में खेल के सर्वोच्च पुरुस्कार 'अर्जुन अवॉर्ड' से नवाजे गए। खेल के शिखर से फिल्मी ग्लैमर तक कामयाब सफर तय कर चुके 'भीम' उम्र के इस पड़ाव पर आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।

ऐक्टर ने क्या कहा?

प्रवीण कुमार सोबती ने बताया कि कोरोना ने सभी रिश्तों को बेनकाब कर दिया। सब रिश्ते खोखले हैं। इस मुश्किल वक्त में सहारा देना तो दूर अपने भी भाग जाते हैं। उन्होंने कहा, 'मैं 76 साल का हो गया हूं। काफी समय से घर में ही हूं। तबीयत ठीक नहीं रहती है। खाने में भी कई तरह के परहेज हैं। स्पाइनल प्रॉब्लम है। घर में पत्नी वीना देखभाल करती है। एक बेटी की मुंबई में शादी हो चुकी है। उस दौर में भीम को सब जानते थे, लेकिन अब सब भूल गए हैं।'

भीम का प्रोफाइल

प्रवीण कुमार सोबती पंजाब के अमृतसर के पास एक सरहली नामक गांव के रहने वाले हैं। उनका जन्म 6 सितंबर 1946 को हुआ था। बचपन से ही मां के हाथ से दूध, दही और देसी घी की हैवी डाइट मिली तो शरीर भी भारी-भरकम बन गया। उनकी मां जिस चक्की में अनाज पीसती थी, प्रवीण उसे उठाकर ही वर्जिश करते थे। जब स्कूल में हेडमास्टर ने उनकी बॉडी देखी तो उन्हें गेम्स में भेजना शुरू कर दिया। वो हर इवेंट जीतने लगे। साल 1966 की कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए डिस्कस थ्रो के लिए नाम आ गया। ये गेम्स जमैका के किंगस्टन में था। सिल्वर मेडल जीता।

इसके अलावा, साल 1966 और 1970 के एशियन गेम्स, जो बैंकॉक में हुए। दोनों बार गोल्ड मेडल जीतकर लौटा। 56.76 मीटर दूरी पर चक्का फेंकने में मेरा एशियन गेम्स का रिकॉर्ड था। इसके बाद अगली एशियन गेम्स 1974 में ईरान के तेहरान में हुईं, यहां सिल्वर मेडल मिला। करियर एकदम परफेक्ट चल रहा था, फिर अचानक पीठ में दर्द की शिकायत रहने लगा।

जिंदगी का खौफनाक वाकया

प्रवीण कुमार ने कहा, 'जब साल 1972 में जर्मनी के म्यूनिक शहर में ओलंपिक्स हो रहे थे, मैं भी हिस्सा लेने पहुंचा था। ये वही ओलंपिक्स हैं, जिनमें फिलिस्तीन के एक आतंकी संगठन ने ओलंपिक्स में भाग लेने आए इजराइली ग्रुप के 11 प्लेयर को बंधक बनाकर मौत के घाट उतार दिया था। ये खेलों के इतिहास का सबसे खौफनाक चेहरा था। मैं उसी स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में था। जब नाश्ते के लिए डाइनिंग एरिया की तरफ जा रहा था। गोलियां चलने की आवाजें सुनाई दीं। कुछ देर बाद पता चला कि आंतकियों ने हॉकी टीम को मौत के घाट उतार दिया है। ये मेरे लिए न भूलने वाला वाकया है।'

बीआऱ चोपड़ा का क्या था रिएक्ट?

प्रवीण कुमार ने बताया कि उन्हें बीएसएफ में डिप्टी कमांडेंट की नौकरी भी मिल गयी थी। एशियन गेम्स और ओलंपिक्स से इतना नाम हो गया था कि 1986 में एक दिन मैसेज मिला कि बीआर चोपड़ा महाभारत बना रहे हैं और वो भीम के किरदार के लिए चाहते हैं। उनसे मिला। देखते ही बोले भीम मिल गया। यहीं से बुलंदी का एक और रास्ता खुला। भीम का किरदार इतना पॉपुलर हुआ कि बॉलीवुड फिल्में भी मिलने लगीं। करीब 50 से ज्यादा फिल्मों में रोल मिले। उस समय पॉपुलर टीवी सीरीज चाचा चौधरी में साबू का रोल मिला।

ऐक्टर के साथ सौतेला व्यवहार

ऐक्टर का कहना है कि पंजाब की जितनी भी सरकारें आईं। सभी से उनकी शिकायत है। जितने भी एशियन गेम्स या मेडल जीतने वाले प्लेयर थे, उन सभी को पेंशन दी, लेकिन उन्हें वंचित रखा गया, जबकि सबसे ज्यादा गोल्ड मेडल जीते। वो अकेले एथलीट थे, जिन्होंने कॉमनवेल्थ को रिप्रेजेंट किया। फिर भी पेंशन के मामले में उनके साथ सौतेला व्यवहार हुआ। हालांकि, अभी उन्‍हें बीएसएफ से पेंशन मिल रही है, लेकिन उनके खर्चों के हिसाब से यह नाकाफी है।

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