World Inequality Report 2022: भारत में घटी 65 करोड़ लोगों की कमाई, औसत आय घटकर पहुंचा 53 हजार सलाना
(भारत में 75 फिसदी आबादी की आमदनी घटी)
Annual Income in India: भारत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश ने एक और वैश्विक उपलब्धि हासिल कर ली है। दरअसल, दुनियाभर के गरीब और काफी असमानता वाले देशों की सूची में भारत शामिल हो गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, यहां साल 2021 में एक फीसदी आबादी के पास राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी हिस्सा है जबकि निचले तबके के पास मात्र 13 फीसदी है। 'विश्व असमानता रिपोर्ट 2022' की शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के लेखक लुकास चांसल हैं जो कि 'वर्ल्ड इनइक्यूलैटी लैब' (World Inequality Lab) के सह-निदेशक हैं। इस रिपोर्ट को तैयार करने में फ्रांस के अर्थशास्त्री थॉमस पिकेट्टी समेत दुनियाभर के 100 जाने मानें विशेषज्ञों ने योगदान दिया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अब दुनिया के सर्वाधिक असमानता वाले देशों की सूची में है, जहां गरीबों की हालत और बद्तर हो रही हैं, तो वहीं अमीर दिनोंदिन और अमीर होते जा रहा हैं।
देश की 65 करोड़ की आबादी की आमदनी घटी
वर्ल्ड इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2022 (World Inequality Report 2022) के अनुसार, एक तरफ भारत में वयस्क आबादी की औसत राष्ट्रीय आय जहां 2,04,200 रुपये हैं तो वहीं, करीब 50 फिसदी आबादी की औसत आय महज 53,610 रुपये सिमट गई है। यानि देश की लगभग 65 करोड़ की आबादी साल भर में मात्र 50 हजार रुपये में ही संतोष करने को मजबूर है। वहीं, देश की पहले से अमीर 10 फीसदी आबादी का हिस्सा और अमीर हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के राज में अमीरों की आय गरीबों की तुलना में करीब 20 गुना ज्यादा हो गई है। रुपयों में गिनाएं तो भारत का एक अमीर आदमी गरीबों के मुकाबले साल भर में औसतन 11,66,520 रुपये अधिक कमा रहा है।
50 फिसदी लोगों की कमाई में 13% की गिरावट
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की शीर्ष 10 फीसदी आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय (Nationa Income) का 57 फीसदी, जबकि एक फीसदी आबादी के पास 22 फीसदी हिस्सा है। वहीं, नीचले तबके की 50 फीसदी आबादी की इसमें हिस्सेदारी मात्र 13 फीसदी है। इसके मुताबिक, निचले तबके के 50 प्रतिशत लोगों की कमाई इस साल 13 प्रतिशत तक घट गई है। भारत में अमीर और गरीब के बीच बढ़ती असमानता के बीच, इस रिपोर्ट में लैंगिक असमानता कि भी जिक्र किया गया है। आंकड़ों की मानें तो भारत में लिंग के आधार पर बहुत असमानताएं हैं। देश की औसत आय में महिला श्रम आय का हिस्सा 18 प्रतिशत बताया गया है। यह आंकड़ा एशिया के औसत महिला आय श्रम के 21 फिसदी से कम है।
मध्यम वर्ग के अस्तित्व पर संकट
मगर ताजा रिपोर्ट की मानें तो देश की 50 फिसदी आबादी के पास संपत्ति के नाम पर कुछ नहीं है। उनकी औसत संपत्ति 66, 280 रुपए हैं, जो कुल संपत्ति का 6 फिसदी है। वहीं, भारत का मध्यम वर्ग (Middle Class) भी इसी तरह गरीब है, जिसकी औसत संपत्ति केवल 7,23,930 रुपए है। यह कुल राष्ट्रीय आय का 29.5 प्रतिशत हिस्सा है। जबकि इसकी तुलना में, देश के शीर्ष 10 फीसदी ऐसे लोग हैं, जिनके पास भारत का 65 फीसदी यानि करीब 63,54,070 रुपए की संपत्ति है। वहीं, 1 फिसदी ऐसा वर्ग है जिसके पास औसत आय का 33 फीसदी यानि करीब 3,24,49,360 रुपए संपत्ति हैं।
रिपोर्ट से साफ है कि भारत में मोदी सरकार (Modi Government) के राज में जहां अमीरों की कमाई में रिकॉर्डतोड़ बढ़ोतरी हो रही हैं तो वहीं देश में मध्यम वर्ग का एक बड़ा तबका गरीब होता जा रहा है। वो दिन दूर नहीं जब भारत में आय के आधार पर सिर्फ दो कटेगरी में लोगों को विभाजित किया जाएगा, पहला अमीर और दूसरा गरीब। क्योंकि, मध्यम वर्ग (Middle Class in India) का दायरा तेजी से सिकुड़ता चला जा रहा है। कोरोना काल में मध्यम वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। मासिक वेतन पर निर्भर इस मध्य वर्ग का भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान रहा है। मगर पहले लॉकडाउन और फिर लगातार बढ़ती महंगाई के चलते साल दर साल मध्यम वर्ग की आय कम हो जाती है। भारतीय मध्यम वर्ग ने देश के आर्थिक विकास में हमेशा से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मगर व्यवस्था में निम्न और मध्यम वर्ग (Middle Class) की दशा में सुदार की गति बेहद धीमी रही, जिसके चलते गरीबी तेजी से अपना पैर पसारने लगी है।