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'पत्रकारिता आज आ चुकी है एक ऐसे मुकाम पर जहां हर तीसरा व्यक्ति बन गया है पत्रकार, जिससे मीडिया की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवाल'

Janjwar Desk
18 Nov 2025 4:43 PM IST
पत्रकारिता आज आ चुकी है एक ऐसे मुकाम पर जहां हर तीसरा व्यक्ति बन गया है पत्रकार, जिससे मीडिया की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवाल
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तकनीकी के आगमन के बाद प्रिंट मीडिया के वर्चस्व को टेलीविजन ने तोड़ा। फिर सैकड़ों चैनल आ गए, फिर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स आ गए, वेब पोर्टल्स आ गए। इन सबके आने से मीडिया का पूरा परिदृश्य ही बदल गया। मीडिया के लिए आज एक बड़ा खतरा खबरों से भ्रम पैदा करना, भड़काऊ खबरें देना है...

सलीम मलिक की रिपोर्ट

हल्द्वानी। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं मीडिया अध्ययन विद्याशाखा द्वारा भारतीय प्रेस दिवस पर एक दिवसीय संगोष्ठी के दौरान राज्य के लब्ध पत्रकार व राष्ट्रीय सहारा के कुमांऊ ब्यूरो प्रमुख गणेश पाठक को सम्मानित किया गया।

डॉ. राजेन्द्र क्वीरा के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में पत्रकारिता को वैचारिक उद्यम की तरह मानने वाले संगोष्ठी के मुख्य अतिथि गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात पत्रकार डॉ. दिलीप चौबे ने कहा कि 16वीं सदी से प्रिंट मीडिया का इतिहास शुरु होता है। देश में औपनिवेशिक सत्ता से संघर्ष का इतिहास रहा है। भारत में पत्रकारिता की शुरुआत आजादी की लड़ाई के साथ साथ ही हुआ। जब भारत के अखबार तेजी से बढ़ रहे थे तो उसके नियमन के लिए प्रेस परिषद का गठन किया गया। आजादी से 80 के दशक तक मीडिया एक आर्दश से बंधा हुआ था, सटीक व संतुलित खबरें दी जाती थी।

तकनीकी के आगमन के बाद प्रिंट मीडिया के वर्चस्व को टेलीविजन ने तोड़ा। फिर सैकड़ों चैनल आ गए, फिर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स आ गए, वेब पोर्टल्स आ गए। इन सबके आने से मीडिया का पूरा परिदृश्य ही बदल गया। मीडिया के लिए आज एक बड़ा खतरा खबरों से भ्रम पैदा करना, भड़काऊ खबरें देना है। अखबार अब कॉरपोरेट कर्म हो गए हैं इसीलिए जनहित व विज्ञापनदाताओं के हितों में एक असंतुलन पैदा हुआ है। पत्रकारों का मुख्य दायित्व है कि वह सत्ता से सवाल करें। प्रिंट के पत्रकार अपनी पत्रकारिता बहुत ईमानदारी व विवेक के साथ करते हैं, वह जब किसी सूचना को समाचार में तब्दील करते हैं उस वक्त उनका विवेक व अनुभव ही समाचार की प्रस्तुति की दिशा को तय करता है। प्रिंट पत्रकारों की जिम्मेदारियां ज्यादा हैं इसीलिए उनके लिए चुनौतियां भी अधिक हैं। इन चुनौतियों से मुकाबला करने के लिए हमें और अधिक विवेक के साथ तैयार होना होगा।

संगोष्ठी में विवि के कुलपति प्रोफेसर नवीन चन्द्र लोहनी ने कहा कि मीडिया में तकनीकी के आने से पत्रकारिता का स्वरूप बहुत बदल चुका है। ऐसे समय में अभिव्यक्ति कौशल भी बचा रहे, जनसरोकार भी बचे रहें, ये बहुत जरूरी है आज की युवा पीढ़ी के लिए। सोशल मीडिया में काम कर रहे लोगों के लिए भी बहुत जरूरी है कि वह नए कौशलों के साथ पत्रकारिता के मानकों को भी बनाए रखें। समाचारों की दूरी भी घट गई है दुनिया के ग्लोबल होने से। उन्होंने कहा कि जब हम गांव में थे तो शाम तक अखबार पहुंचता था तब भी वह ताजा लगता पर आज कुछ घंटों बाद ही खबरें बासी हो जा रही हैं, प्रिंट मीडिया के लिए चुनौतियां बहुत बढ़ी हैं। इस अवसर पर पत्रकारिता के चतुर्थ सेमेस्टर के शिक्षार्थियों की कार्यशाला का समापन समारोह भी था लिहाजा उन्हें भी प्रमाण पत्र बांटे गये।

प्रिंट मीडिया का इतिहास और वर्तमान परिदृश्य विषय पर हुई इस संगोष्ठी में विशिष्ट वक्ता के रूप में दैनिक जागरण के संपादक विजय यादव ने कहा कि प्रिंट मीडिया एक दस्तावेज की तरह है, जहां हर चीजे सहेजी हुई होती है। आज हम सूचना युग में हैं सूचनाओं का समुद्र हमारे सामने है ऐसे दौर में प्रिंट मीडिया के सामने बहुत चुनौतियां हैं क्योंकि खबरों की तात्कालिकता बढ़ गई हैं, क्योंकि अखबार ने 24 घंटे बाद आना है ऐसे में यह तय करना कि वह खबर जो कल सुबह तक बासी हो जाएगी उसे किस तरह से परोसा जाए। पाठक आपको 24 घंटे बाद क्यों पढ़े, पाठकों को खबर का कौन सा नया स्वरूप दें, जो उन्हें आकर्षित करे यह चुनौती प्रिंट मीडिया के सामने है। उन्होंने प्रिंट मीडिया में कार्य कर रही पीढ़ी से कहा कि हम खबरें देने में थोड़ा विलंबित हों जाएं लेकिन बिना खबरों को सोचे परखे न दें तभी प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता बनी रहेगी। आगे उन्होंने कहा कि अखबारों का जनसरोकारों से जुड़ना बहुत जरूरी है। उन्होंने भाषायी शुद्धता पर जोर देते हुए कहा कि यह पढ़ने-लिखने से ही आएगी, क्योंकि अखबार भाषा के मानक भी स्थापित करता है इसीलिए एक पत्रकार को भाषायी रूप से शुद्ध व समृद्ध होना चाहिए।

सम्मानित हुए पत्रकार गणेश पाठक ने कहा कि पत्रकारिता एक ऐसे मुकाम पर आ चुकी है कि अब हर तीसरा व्यक्ति पत्रकार बन गया है, जिससे पत्रकार व पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि आज जनसरोकारों की पत्रकारिता पूरी तरह तिरोहित हो गयी है। स्तुतिगान की पत्रकारिता ज्यादा बढ़ गयी है। पत्रकारिता का सच वह है जो मनुष्य-समाज व राष्ट्र के के हित में है। जो राष्ट्र-मनुष्यता व समाज के हित में नहीं है, उसका पुरजोर विरोध कर लिखना एक पत्रकार होने का एक पैमाना है। पत्रकारिता एवं मीडिया अध्ययन विद्याशाखा के निदेशक प्रो. राकेश चन्द्र रयाल ने भारतीय प्रेस दिवस के इतिहास पर बहुत विस्तार से बात रखी।

इस अवसर पर शहर के कई गणमान्य पत्रकार ओपी नेगी, जगमोहन रौतेला, दया पांडे, चन्द्रशेखर भट्ट, विपिन चन्द्रा, नवीन चन्द्र पाठक, नीमा पाठक, गणेश जोशी, भूपेन्द्र सिंह, प्रो.पीडी पंत, प्रो. गिरिजा पांडे, जितेन्द्र पांडे, एमएम जोशी, कल्पना लखेड़ा, शैलेन्द्र टम्टा, पूर्णिमा, सुनील श्रीवास्तव, डॉ. शशांक शुक्ला आदि मौजूद रहे।

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