Jammu-Kashmir : यूएपीए कानून वह बन गया जो उसका कभी मकसद नहीं था : HC
Jammu-Kashmir : यूएपीए कानून वह बन गया जो उसका कभी मकसद नहीं था : HC
jammu-Kashmir : जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ( Jammu-Kashmir High Court ) ने 25 मई को गैर कानूनी गतिविधि निवारक अधिनियम ( UAPA ) पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यूएपीए गैर कानूनी गतिविधियों को रोकने वाला कानून था। इसके उलट बाध्यकारी परिस्थितियों की वजह से यह वह बन गया जो उसका कभी मकसद नहीं था। जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस वीसी कौल की खंडपीठ ने पीडीपी के युवा नेता वहीद पारा को आतंकवाद से संबंधित एक मामले में जमानत देते हुए ये बात कही।
UAPA ने कानूनी ढांचे को अपने दायरे में लिया
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ( Jammu-Kashmir High Court ) की जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस वीसी कौल की खंडपीठ ने कहा कि कानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम ( UAPA ) जैसा कि इसके नाम से साफ है, शुरू में एक निवारक कानून के रूप में सोचा गया था। इसने गैर कानूनी गतिविधियों को रोकने के लिए कमोबेश प्रावधान किए गए थे। हालांकि, बाध्यकारी परिस्थितियों के कारण यूएपीए ( UAPA ) वह बन गया जिसके बारे में कभी विचार नहीं किया था। पीठ ने कहा कि यूएपीए ( UAPA ) ने अब आतंकवादी गतिविधियों और उससे जुड़े मामलों से निपटने के लिए मजबूत कानूनी ढांचे को अपने दायरे में ले लिया है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जनहित के बीच संतुलन जरूरी
पीठ ने कहा कि यूएपीए ( UAPA ) के तहत अपराधों कोकरने पर जमानत देना या खारिज करना अदालत की शक्ति है। इसे यूएपीए की धारा 43-डी 5 द्वारा बचाव के लिए सीआरपीसी में तय अच्छी तरह से स्थापित कानूनी मानकों पर प्रयोग करने की जरूरत है। अदालत ( Jammu-Kashmir High Court ) ने कहा कि यूएपीए की धारा 43डी एक प्रावधान का प्रतीक है, जिसे कुछ लोग व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमले के रूप में देख सकते हैं। हालांकि, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता को जनहित के विचारों के प्रति संतुलित किया जाना है।
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