Kisan Andolan : एसकेएम हाईपावर कमेटी की सिंघु बॉर्डर पर किसान नेताओं संग बैठक जारी, आ सकता है अहम फैसला
Kisan Andolan : किसान आंदोलन वापसी को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा के 5 मेंबरी हाईपावर कमेटी केंद्र सरकार से बातचीत समाप्त होने के बाद सिंघु बॉर्डर पहुंच गए हैं। दिल्ली बॉर्डर हाईपावर कमेटी के मेंबरों की किसान आंदोलन नेताओं के बात इस मुद्दे पर बातचीत जारी है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक हाईपावर कमेटी ने आंदोलन वापसी की हामी भर दी है। अब इस बात संभावना है कि देर शाम तक एसकेएम आंदोलन वापसी की घोषणा कर दे।
सिंधु बॉर्डर पर सभी नेता अपने-अपने संगठनों के दूसरे नेताओं से बात कर रहे हैं। माना जा रहा है कि मोर्चे की मीटिंग में किसी तरह के आपसी मतभेद न दिखें, इसके लिए सभी को पहले सूचना दी जा रही है। फिलहाल, केंद्र की तरफ से किसान नेताओं से वार्ता में केस वापसी की हामी भर दी गई है। हालांकि, इसमें अभी वही स्थिति है कि पहले आंदोलन खत्म होगा या फिर केस वापस होंगे।
किसान नेता इस बात पर अड़े हुए हैं कि पहले केस वापस लिए जाएंगे, उसके बाद ही औपचारिक तौर पर आंदोलन खत्म करने की घोषणा होगी। आज की बैठक में केंद्र ने MSP कमेटी में सिर्फ मोर्चे के नेताओं को रखने की बात भी मान ली है।
MSP कमेटी
केंद्र सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि होंगे। कमेटी 3 महीने के भीतर रिपोर्ट देगी जो किसानों को MSP किस तरह मिले, यह सुनिश्चित करेगी। वर्तमान में जो राज्य जिस फसल पर MSP पर जितनी खरीद कर रही है, वह जारी रहेगी।
केस तत्काल लिए जाएंगे वापस
सभी केस तत्काल प्रभाव से वापस लिए जाएंगे। यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा सरकार ने इसके लिए सहमति दे दी है। केंद्र सरकार, रेलवे और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों की तरफ से दर्ज केस भी तत्काल वापस लिए जाएंगे। राज्यों से केंद्र सरकार भी अपील करेगी।
मुआवजा
हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार ने पंजाब की तरह मुआवजा देने पर सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है।बिजली बिल पर किसानों पर असर डालने वाले प्रावधानों पर संयुक्त किसान मोर्चा से चर्चा होगी। उससे पहले इसे संसद में पेश नहीं किया जाएगा। पराली के मुद्दे पर केंद्र सरकार के कानून की धारा 15 में जुर्माने के प्रावधान से किसान मुक्त होंगे।
इससे पहले जिन 3 कृषि सुधार कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन शुरू हुआ था, केंद्र सरकार उन्हें वापस ले चुकी है। लोकसभा और राज्यसभा से पास होने के बाद उनकी वापसी पर राष्ट्रपति मुहर लगा चुके हैं। इसके बाद किसान संगठनों पर आंदोलन वापसी का दबाव बना हुआ है।