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आरक्षण के दोहरे लाभ से बचने के लिए EWS कोटा से SC-ST-OBC को बाहर रखना तार्किक लिहाज से जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

Janjwar Desk
8 Nov 2022 8:32 AM GMT
आरक्षण के दोहरे लाभ से बचने के लिए EWS कोटा से SC-ST-OBC को बाहर रखना तार्किक लिहाज से जरूरी : सुप्रीम कोर्ट
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आरक्षण के दोहरे लाभ से बचने के लिए EWS कोटा से SC-ST-OBC को बाहर रखना तार्किक लिहाज से जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

SC Decision on EWS Quota Updates : 10वां संवैधानिक संशोधन के तहत शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% आरक्षण से SC-ST-OBC को बाहर रखने का तर्क पूरी तरह से सही है।

SC Decision on EWS Quota Updates : आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के मसले पर लंबे समय से जारी विवाद एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के साथ ही समाप्त हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने 3:2 के बहुमत से 103वें संवैधानिक संशोधन की कानूनी वैधता को सही करार दिया। साथ ही ये भी कहा कि संवैधानिक संशोधन के तहत शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% आरक्षण का तर्क और SC-ST-OBC को इस कटेगरी से बाहर रखने का तर्क पूरी तरह से सही है।

बता दें कि पांच सदस्यीय पीठ में से तीन जजों यानि जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने 103वें संविधान संशोधन को सही माना। जस्टिस एस रवींद्र भट ने एक असहमतिपूर्ण फैसला लिखा, जिससे भारत के मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित ने सहमति जाहिर की।

तार्किकता के लिहाज से SC-ST-OBC को EWS से बाहर रखना सही

ईडब्लूएस कोटा के मसले पर न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि ईडब्लूएस आरक्षण भारत के संविधान द्वारा सक्षम अनुमेय सकारात्मक कार्यों में से एक है। यह समानता के सामान्य नियम का अपवाद है लेकिन इसे संविधान की उन अनिवार्य विशेषताओं में स्वीकार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में इसे संशोधित नहीं किया जा सके।

जहां तक ईडब्लएस आरक्षण के लिए संविधान संशोधन की वैधता का सवाल है तो इस पर अदालत ने विचार किया। पीठ ने यह पाया कि संविधान के अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) के अंतर्गत आने वाले वर्गों को नव सम्मिलित अनुच्छेद 15(6) और 16(6) के प्रावधानों से बाहर रखना समानता के सिद्धांत या फिर यूं कहें कि संविधान मूल ढांचे का उल्लंघन भी है। इसके बावजूद पीठ ने माना है कि ईडब्लूएस आरक्षण से अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) में वर्णित पिछड़े वर्गों को अनुच्छेद 15(6) और 16(6) के प्रावधानों से बाहर रखने के पीछे एक वैध तर्क है। चूंकि एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को पहले से ही आरक्षण हासिल है, ऐसे में उन्हें या उनके किसी भी घटक को अन्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में भी लाभ देने की कोई आवश्यकता नहीं थी। यानि इस मामले में अदालत ने सरकार के तर्क को बहुमत से सही माना है।

उत्तरदाताओं ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटे से एससी, एसटी और ओबीसी का बहिष्कार संवैधानिक योजना में तार्किक होने के साथ—साथ फिट भी बैठता है। ऐसा करने से दोहरे लाभ से बचना जा सकता है। यानि ईडब्लूएस कोटे से एससी, एसटी और ओबीसी को बाहर रखना तार्किक वर्गीकरण का हिस्सा है। न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने अपने फैसले में कहा कि पहले से जिन लोगों को आरक्षण हासिल हैं उन्हें ईडब्ल्यूएस आरक्षण की योजना से बाहर रखना अनिवार्य है। उन्हें पहले से आरक्षण हासिल है इसलिए अन्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए बनाए गए आरक्षण की श्रेणी में एक और लाभ देने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

पहले से तय आरक्षण पर इसका कोई असर नहीं

अनुच्छेद 15 और 16 के मौजूदा खंड के तहत बहिष्कृत वर्गों/जातियों को आरक्षण का लाभ मिलता है। 103वां संशोधन से पहले से निर्धारित निर्धारित कोटा किसी भी तरह से न तो समाप्त होता है न ही प्रभावित होता है। ऐसा करना इसलिए जरूरी था कि ईडब्लूएस कोटा जिस लक्षित वर्ग समूह के लिए तय किया गया है अगर आरक्षण से पहले के लाभार्थियों को भी उसमें शामिल कर लिया जाता तो नया प्रावधान अपने लक्ष्य को कभी हालिस नहीं कर पाता। यानि लक्ष्य के अनुरूप वांछित परिणाम हासिल करने के लिए ऐसा करना जरूरी था।

आरक्षण के लाभार्थियों का विरोध सही नहीं

जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि जो वर्ग पहले से ही अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) के आधार पर प्रतिपूरक भेदभाव के प्राप्तकर्ता थे उनकी ओर से ताजा संविधान संशोधन को लेकर शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं है कि इससे उनके मौलिक और समानता के अधिकारों का दमन हुआ है। बहुमत के आधार पर पीठ ने माना कि आर्थिक रूप से पिछड़ों की स्थिति में सुधार लाना ऐसा किए बिना संभवन नहीं था।

जस्टिस माहेश्वरी की राय से न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने भी सहमति व्यक्त की है। न्यायमूर्ति बेला त्रिवदेई ने अपने फैसले में यह भी कहा कि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को एक अलग वर्ग के रूप में मानना एक उचित वर्गीकरण था।

EWS QUOTA मनमाना और समानता के सिद्धांतों के प्रतिकूल

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस रवींद्र भट ने अपना और सीजेआई ललित के लिए 100 पृष्ठों में फैसला लिखा। जस्टिस भट ने कहा कि सामाजिक रूप से वंचित वर्गों और जातियों को उनके आवंटित आरक्षण कोटा के अंदर रखकर पूरी तरह से इसके दायरे से बाहर रखा गया है। यह उपबंध पूरी तरह से मनमाने तरीके से संचालित प्रतीत होता है। संवैधानिक रूप से एससी-एसटी—ओबीसी समुदायों को बाहर रखना कुछ और नहीं, बल्कि भेदभाव है जो समता के सिद्धांत को कमजोर और नष्ट करता है। जस्टिस भट ने कहा कि आरक्षण के लिए आर्थिक आधार पेश करना अनुमति देने योग्य है। फिर भी, एससी, एसटी और ओबीसी सहित सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से वंचित वर्गों को पूर्व से प्राप्त लाभ के आधार पर इसके दायरे से बाहर रखना नये अन्याय को बढ़ाएगा।

संशोधन के खिलाफ दायर हुई थी 40 याचिकाएं

SC Decision on EWS Quota Updates : दरअसल, 103वां संविधान संशोधन के खिलाफ दायर करीब 40 याचिकाओं पर सुनवाई की। 2019 में 'जनहित अभियान' द्वारा दायर की गई एक अग्रणी याचिका सहित अधिकांश याचिकाओं में संविधान (103वां) संशोधन अधिनियम 2019 को चुनौती दी गई थी।

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