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राष्ट्रीय

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के 'लव जिहाद' अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

Janjwar Desk
3 Dec 2020 1:02 PM GMT
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लव जिहाद अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
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वरिष्ठ अधिवक्ता एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक और पूरक अर्जी दायर कर पेगासस मामले में एफआईआर दर्ज कर जांच की मांग की। 

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि संसद के पास मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की कोई शक्ति नहीं है और यदि यह अध्यादेश लागू किया जाता है तो यह बड़े पैमाने पर जनता को नुकसान पहुंचाएगा और समाज में अराजक स्थिति पैदा करेगा...

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020' और उत्तराखंड के 'फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 2018' को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी गई है। अधिवक्ता विशाल ठाकरे और अभय सिंह यादव के साथ ही कानून शोधकर्ता प्रणवेश की ओर से यह याचिका दायर की गई है।

याचिका में कहा गया है कि यूपी अध्यादेश संविधान के मूल ढांचे को बिगाड़ने वाला है। याचिका में कहा गया है, 'सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि क्या संसद के पास संविधान के तीसरे भाग के तहत निहित मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की शक्ति है।'

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि संसद के पास मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की कोई शक्ति नहीं है और यदि यह अध्यादेश लागू किया जाता है तो यह बड़े पैमाने पर जनता को नुकसान पहुंचाएगा और समाज में अराजक स्थिति पैदा करेगा।

दलील में कहा गया है, 'यहां यह उल्लेख करना भी उचित है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य सरकार की ओर से पारित अध्यादेश विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के खिलाफ है और यह समाज में भय पैदा करेगा।'

यह भी दलील दी गई है कि जो कोई लव जिहाद का हिस्सा नहीं भी होगा, उसे भी झूठे मामले में फंसाया जा सकता है। दलील में केसवानंद भारती मामले का हवाला देते हुए कहा गया है, 'अदालत ने कहा है कि संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, लेकिन संसद संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती है।'

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे राज्य सरकारों द्वारा पारित अध्यादेशों से दुखी हैं और उन्होंने शीर्ष अदालत के समक्ष प्रार्थना की कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड द्वारा पारित कानून को शून्य घोषित किया जाना चाहिए, क्योंकि वे संविधान के मूल ढांचे पर चोट करते हैं और साथ ही बड़े पैमाने पर सार्वजनिक नीति और समाज के खिलाफ भी हैं।

दलील दी गई है कि यह अध्यादेश समाज के बुरे तत्वों के हाथों में एक शक्तिशाली उपकरण बन सकता है और इस अध्यादेश का उपयोग किसी को गलत तरीके से फंसाने के लिए किया जा सकता है।

याचिका में कहा गया है, 'ऐसे किसी भी कार्य में शामिल नहीं होने वाले व्यक्तियों को भी झूठे तरीके से फंसाए जाने की आशंका है, अगर यह अध्यादेश पारित हो गया तो घोर अन्याय होगा।'

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