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सह-शिक्षा के खिलाफ मौलाना सैयद अरशद मदनी अड़िग, पुरुषों-महिलाओं को अलग करने के तालिबानी फैसले का किया समर्थन

Janjwar Desk
25 Sept 2021 10:35 PM IST
सह-शिक्षा के खिलाफ मौलाना सैयद अरशद मदनी अड़िग, पुरुषों-महिलाओं को अलग करने के तालिबानी फैसले का किया समर्थन
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 (मौलाना सैय्यद अरशद मदनी : महिलाओं के शरीर को अल्लाह ने पुरुषों से अलग बनाया है)

मदनी देश में पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग शैक्षणिक केंद्रों की वकालत करते हुए उदाहरण देते हैं कि देश में सैकड़ों विद्यालयों और कॉलेजों में केवल महिलाओं को ही शिक्षा प्रदान की जाती है..

जनज्वार। दारुल उलूम देवबंद के प्रिसिंपल मौलाना सैयद अरशद मदनी (Maulana Sayyed Arshad Madni) ने एक बार फिर विवादित बयान दिया है। दरअसल उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों में पुरुषों (Male) और महिलाओं (Female) को पूरी तरह से अलग-अलग करने के तालिबान की विचारधारा का समर्थन किया है। आरएफई की एक रिपोर्ट के मुताबिक मदनी को लगता है कि अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता पर कब्जा एक सकारात्मक विकास है क्योंकि इस्लामी आंदोलन ने देश को विदेशी कब्जे से मुक्त कर दिया है।

रिपोर्ट के मुताबिक मदनी ने कहा कि वह पुरुषों और महिलाओं को अलग करने के तालिबान की कोशिशों का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को हिजाब की इस्लामी परंपरा (Islamic Traditions) का पालन करने की आवश्यकता है। रिपोर्ट के मुताबिक मदनी ने घूंघट के लिए अरबी शब्द का जिक्र करते हुए यही बात कही, जो इस्लामी अवधारणा को दर्शाता है कि विपरीत लिंग के सदस्यों को एक साथ नहीं लाना चाहिए, यदि वे संबंधी नहीं हैं। मदनी ने कहा कि महिलाओं के शरीर को अल्लाह ने पुरुषों से अलग बनाया है।

वह आगे कहते हैं कि उन्हें इस तरह के कपड़े पहनने चाहिए, जिससे फितना पैदा न हो। हालांकि मदनी इस बात पर अड़े हैं कि उनके स्कूल का तालिबान (Taliban) से कोई ताल्लुक नहीं है, क्योंकि उनका कोई भी नेता भारत स्थित मदरसा में शिक्षित नहीं है।

लेकिन उनका कहना है कि तालिबान का देवबंद आंदोलन (Devband Movement) से कुछ ऐतिहासिक संबंध हैं, जिसके नेता कट्टर ब्रिटिश (British Rule) विरोधी थे और उन्होंने बीसवीं सदी के दूसरे दशक में एक निर्वासित भारत सरकार की स्थापना की। आधुनिक पाकिस्तान (Pakistan) और अफगानिस्तान (Afghanistan) में इस्लामवादियों के बीच देवबंदी एक प्रमुख तनाव है।

मदनी देश में पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग शैक्षणिक केंद्रों की वकालत करते हुए उदाहरण देते हैं कि देश में सैकड़ों विद्यालयों और कॉलेजों में केवल महिलाओं को ही शिक्षा प्रदान की जाती है।

मदनी पूछते हैं कि अगर यह हमारे देश में हो सकता है तो इसमें क्या गलत है कि अफगान सरकार (Afghanistan Govt) भी ऐसा ही करना चाहती है? अगर अफगान सरकार (अलग-अलग शिक्षा) लागू कर सकती है तो इसका मतलब होगा कि लड़कियों के लिए शिक्षा का द्वार खुल गया है।

बता दें कि अफगानिस्तान में 15 अगस्त 2021 के दिन तालिबान ने फिर सत्ता कब्जा ली है। अमेरिकी सुरक्षा बलों के साथ 20 साल की लड़ाई के बाद अब अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban) की सरकार है। नई सरकार ने सत्ता में आते ही फैसला किया था कि पुरुष और महिलाओं को अलग-अलग शिक्षा दी जाएगी। जहां ये सुविधा नहीं होगी वहां बीच में परदा लगाया जाएगा।

तब से यह मुद्दा बार-बार भारत में आ रहा है। इस पर देश में खूब चर्चा हो रही है। मदनी ने पहली बार नहीं है जब सह शिक्षा (Co Education) पर इस तरह का बयान दिया हो। इससे पहले भी उन्होंने कहा था कि लड़का लड़कियों को एक साथ नहीं पढ़ाना चाहिए। सह शिङा के दुष्प्रभाव से युवा पीढ़ी को बचाना बहुत जरूरी है। सह शिक्षा के नतीजे झकझोर देने वाले हैं। मेरा मानना है कि कोई समाज या धर्म बेशर्मी को बढ़ावा नहीं देगा। इसलिए न केवल मुसलमान बल्कि देश में रहने वाले हिंदू भाई भी अपनी तहजीब और संस्कृति बचाने के लिए सह शिक्षा के खिलाफ आवाज बुलंद करें।

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