Mirzapur Ground Report : योगी के ड्रीम प्रोजेक्ट को लग रहा है ग्रहण, भूखे- प्यासे सड़क दुर्घटनाओं में मरने को विवश हैं गायें
(मिर्जापुर की सड़कों पर आसरा बनाती गायें)
संतोष देव गिरि की रिपोर्ट
Mirzapur Ground Report। उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने गौ संरक्षण अभियान (Cow Protection Campaign) को बढ़ावा देने की गरज से पूरे प्रदेश में गौ आश्रय स्थल खुलवाने के साथ ही स्पष्ट निर्देश दिया था कि कोई भी गाय सड़कों पर घूमती हुई नजर ना आए। गौ आश्रय स्थल में संरक्षण देने के साथ उनके चारे-पानी छांव की उचित व्यवस्था की जाए, ताकि इनका संरक्षण हो सके। मुख्यमंत्री के इस फरमान से गौ प्रेमियों में उत्साह के साथ-साथ उम्मीद जगी थी कि सड़कों पर घूमकर प्लास्टिक के कचरे का सेवन कर असमय काल के गाल में समा जाने वाली गायों की अब दशा में सुधार होगा और उनके संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन दुर्व्यवस्था और भ्रष्टाचार की भेंट के शिकार हुए गौ आश्रय स्थलों को वह स्वरूप नहीं मिल सका जिसे साकार करने का सपना मुख्यमंत्री ने देखा था।
मजे की बात रही है कि यहांं की सच्चाई को उजागर करने वाले लोगों पर ही कार्रवाई हुई, उनका उत्पीड़न हुआ है। यहां की हकीकत को छुपाने का भरसक प्रयास किया गया जिसका नतीजा यह रहा है कि यह व्यवस्था आज भी चली आ रही है। इसकी एक नजीर मिर्जापुर जनपद (Mirzapur) भी रहा है जहां गौ आश्रय स्थलों की हकीकत को उजागर करने पर उन बेगुनाह लोगों पर कार्रवाई की गई जो इसके हकदार ही नहीं थे। आश्चर्य की बात है कि मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट को पलीता लगाने वाले लोगों को प्रशासन का भी प्रश्नय मिलता रहा जिनका आज तक बाल बांका भी नहीं हो पाया है।
यही कारण है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल गौ संरक्षण योजना को पलीता लग रहा है। बात करें पूर्वांचल के जनपदों की तो यहां की गौशालाओं की हकीकत किसी से छुपी हुई नहीं है। जौनपुर, मिर्जापुर, वाराणसी, भदोही, सोनभद्र, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बलिया आदि जनपदों में गोवंश आश्रय स्थलों की बदहाली यहां तक की चारा इत्यादि का अभाव अक्सर कहीं ना कहीं से सुर्खियों में होता है। गोवंश आश्रय स्थलों से निकलने वाली इन बेजुबान गायों की होने वाली असमय मौतों पर भले ही जिम्मेदार पर्दा डालकर सब कुछ ठीक-ठाक होने का दावा करते हैं, लेकिन हकीकत इससे कुछ और ही है।
मौजूदा ठंड के समय को देखते हुए जिला, तहसील, विकासखंड स्तर पर स्थापित गोवंश आश्रय स्थल में जिला प्रशासन व नगर पालिका द्वारा किस प्रकार की व्यवस्थाएं पशुओं के लिए की जा रही हैं किसी से छुपी नहीं है। आलम यह है कि कई गोवंश आश्रय स्थलों की अभी तक बाउंड्री वाल भी पूरी नहीं हुई है। छांव की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। यहां छांव के नाम पर टीन सेड है जहां वह ठंड में कैसे रहेंगे यह भी सहज ही समझा जा सकता है। प्रतिवर्ष ठंड में सैकड़ों पशुओं की दर्दनाक मौत होती है। लापरवाही के चलते तमाम पशुओं की ठंड में आए दिन मौत होती रहती है। गौ आश्रय स्थल खुले में होने के कारण ऐसी समस्याएं होती रहती है, बावजूद इसके ठोस व्यवस्था अभी तक नहीं की गई है जिससे इन गायों का संरक्षण हो सके।
मिर्ज़ापुर नगर निवासी राज महेश्वरी विश्व हिंदू परिषद के नगर अध्यक्ष हैं। उनकी दिनचर्या की शुरुआत गौ सेवा के साथ शुरु होती है और गौ सेवा के बाद ही ही समाप्त होती है। महेश्वरी सड़कों पर घूमने वाली गायों के संरक्षण की दिशा में दशकों से लगे हुए हैं। वह इन्हें भोजन पानी के साथ-साथ उनके जख्मों को भी भरने का निरंतर काम करते आ रहे हैं।
महेश्वरी 'जनज्वार' को बताते हैं कि मिर्जापुर में आश्रय स्थलों की व्यवस्था असहनीय हो चली है। आश्रय स्थलों में तो गायें मर ही रही हैं सड़कों पर भी इनकी दुर्दशा होती जा रही है। गायें असमय वाहनों से कुचलकर दर्द और तड़पन के बीच दम तोड़ रही हैं जिसके समाधान की दिशा में कोई कारगर कदम उठाया नहीं जा रहा है। इसको लेकर वह काफी दुःखी भी हैं। मिर्जापुर जनपद की सड़कों, मार्गों पर दिन- रात गोवंशों के लगने वाले जमावड़े की ओर वह इशारा करते हुए वह बताते हैं कि किस प्रकार से यह गोवंश बेजुबान सड़कों पर दम तोड़ रहे हैं। इससे मुख्यमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को ग्रहण लग रहा है।
गौरतलब हो कि मिर्जापुर जनपद उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर स्थित होने के साथ-साथ मध्य प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है। यह जनपद जंगलों और पहाड़ों के रूप में सुविख्यात है, लेकिन कालांतर में देखा जाए तो भू- माफियाओं और खनन माफियाओं कि कुदृष्टि के चलते धीरे-धीरे जंगलों और पहाड़ों का अस्तित्व समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। यही कारण है कि तकरीबन एक दशक पूर्व जो हरियाली और जंगलों का विशाल क्षेत्रफल यहां नजर आता था वह अब धीरे-धीरे घटता नजर आ रहा है। ऐसे में जंगली जीव जंतुओं के भी रहने-खाने के संकट उनके समक्ष उत्पन्न हो गए हैं जिससे यह गोवंश भी अछूते नहीं है।
बेघर हुए गोवंश किसानों की खेती को चौपट करने का काम करते थे। खेतों की ओर से फटकार मिलने के बाद इनका रूख सीधे-सीधे जंगलों की ओर होता था, लेकिन जंगलों में भी चारे और पानी का अभाव होने के कारण यह अब इधर-उधर भटकने के लिए विवश हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा गौ आश्रय स्थल खुलवाए जाने के बाद यह उम्मीद जगी थी कि अब यह सड़कों पर और खुले में नजर नहीं आएंगी, इन्हें गौ आश्रय स्थलों पर संरक्षण दिया जाएगा लेकिन देखने में ठीक इसके उल्टा आ रहा है।
जंगलों मेंं खत्म होती हरियाली, गौ आश्रय स्थलों पर सूखा भूसा वह भी भरपेट नहीं, खेतों की ओर रूख करने पर किसानोंं की मिलने वाली फटकार के बाद इन बेजुबानों ने सड़कों और नेशनल हाईवे को ही अपना ठौर-ठिकाना बना लिया है। जिसका आलम यह है कि अक्सर यह बेजुबान वाहनों की चपेट में आकर तड़प-तड़प कर मरने को विवश हैं। लाश की सड़कों इस कदर होने वाली दुर्दशा को देखकर हर किसी का अंतर मन द्रवित हो उठता है।
मिर्जापुर से मध्य प्रदेश को जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग से लगे मिर्जापुर-प्रयागराज मार्ग, मिर्जापुर-सोनभद्र मार्ग, मिर्जापुर वाराणसी मार्ग इत्यादि पर इन बेजुबानों के शवों को सड़कों पर बिखरे हुए देखा जा सकता है। ऐसे में बरबस ही लोगोंं के जेहन में एक सवाल उठता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस गौ संरक्षण योजना को परवान चढ़ते हुए देखने का सपना देखा था क्या वह साकार हो रहा है?
कहीं दर्जनों तो कहीं सैकड़ों की तादात में सड़कों से लेकर गांव में इधर-उधर भटक रहे बेजुबानों को देखकर इस बात का आकलन कर पाना कठिन होता है कि आखिरकार पूरे प्रदेश में खुलवाए गए गौ आश्रय स्थलों पर जब गौ को संरक्षण दिया जा रहा है तो फिर यह कहां से इतनी तादाद में सड़कों पर मरने को विवश है? जाहिर सी बात है इसमें लंबा खेल खेला जा रहा है। जिसकी गहराई से पड़ताल करने के साथ ही जांच की भी आवश्यकता है। वरना वो दिन दूर नहीं जब सड़क दुर्घटना में सर्वाधिक संख्या गोवंशो की गिनी जाएगी।