Mirzapur News : मिर्जापुर के पर्यटन स्थल पर खुले में फेंके जा रहे गोवंशों का शव, नगर पालिका ही उड़ा रही नियमों की धज्जियां
(मृत गायों के शवों को फेंकता मिर्जापुर नगर पालिका का वाहन)
मिर्जापुर से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट
Mirzapur News। गौ संरक्षण अभियान को धता बताते हुए मिर्जापुर नगर पालिका (Mirzapur Nagar Palika) के जिम्मेदार मुलाजिम गोवंशों की दुर्दशा करने पर तुले हुए हैं। चारा-पानी तथा देखभाल के अभाव में मिर्जापुर नगर पालिका के अधीन टांडा फाल अस्थाई गौशाला में गोवंश दम तोड़ने को मजबूर हैं। हैरानी की बात है कि इन नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए नगर पालिका के कारिंदे जिनके कंधों पर इनके संरक्षण का भार है वह इन्हें जीते जी तो सम्मान नहीं दे पा रहे हैं, मरने के बाद भी इन की दुर्दशा करने से बाज नहीं आ रहे हैं।
बताया जाता है कि टांडा फाल में पिछले कुछ दिनों से गोवंशों के दम तोड़ने का सिलसिला जारी है, गोवंशों के दम तोड़ने के बाद इनके शव को बेहतर ढंग से मिट्टी खोदकर दफन करने के बजाए नगर पालिका के वाहनों से जंगलों पहाड़ों में फेंक दिया जा रहा है जिन की दुर्दशा देख गौ प्रेमी जहां आहत हो रहे हैं वहीं पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ गौ प्रेमी सरकार के कायदे कानून की भी धज्जियां उड़ती हुई नजर आ रही है। जनपद में जिस नगर पालिका अंतर्गत यह मामला आता है उसके रहनुमा भी कोई और नहीं बल्कि भगवा पार्टी के ही भगवाधारी अध्यक्ष हैं।
गोवंश संरक्षण (Cow Protection) के नाम पर जहां वर्तमान सरकार भारी-भरकम बजट खर्च करने की बात करती है, लेकिन नगर पालिका मिर्जापुर (Mirzapur) के द्वारा मृत गोवंश को जैसे तैसे फेंक कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जा रही है। मिर्ज़ापुर नगर पालिका द्वारा मृत गोवशोंं को पर्यटन स्थल खड़ंजा पाल के समीप खुले में फेंक कर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया जा रहा है, जबकि बताया जा रहा है कि गोवंशों के दम तोड़ने के बाद उनका विधि पूर्वक शव का निस्तारण सुनिश्चित किया जाना चाहिए, ताकि पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ इनके शव की दुर्दशा ना होने पाए। लेकिन इन्हें नजर अंदाज करते हुए नगर पालिका द्वारा पूरी तरह से मनमाना रवैया अपनाया जा रहा है।
इस संबंध में जब ईओ नगर पालिका मिर्जापुर से वार्ता की गई उन्होंने मामले से अनभिज्ञता जताई। जबकि मौके पर कई गोवंशो के अवशेष स्पष्ट ही दिखाई देते हैं, जिसका वीडियो भी तेजी से वायरल हो रहा है। हैरानी की बात यह है कि मृत गोवंशों के शव को किसी अन्य वाहन से नहीं, बल्कि नगर पालिका के वाहन से ही पहाड़ों पर ले जाकर फेंका जा रहा है। इसके बावजूद भी नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ ले रहे हैं।
बताते चलें कि गौशाला में रहने वाले को की मौत होने पर सरकार द्वारा तय किए गए गाइडलाइन के तहत उन्हें दफनाने की समुचित व्यवस्था की गई है पर नगर पालिका प्रशासन को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास ही नहीं है। ईओ नगर पालिका को मृत गोवंशो के अवशेषों को नष्ट करने के सरकारी गाइडलाइन की जानकारी नहीं है या वह जानबूझकर अनभिज्ञता जता रहे हैंं या तो वही जाने, लेकिन जिस प्रकार से नगर पालिका के अधीन गौ आश्रय स्थल की लापरवाही सामने लगातार आ रही है।
इससेे स्पष्ट है कि नगर पालिका अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन बखूबी नहीं कर पा रहा है। लोगों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि दम तोड़ने के बाद गौ के शव को समुचित ढंग से दफनाने के बजाय उसे पर्यटन स्थल के समीप खुले में पहाड़ों पर फेंक दिए जाने स जहां उनकी दुर्दशा हो रही है वही आसपास के ग्रामीणों के साथ-साथ राहगीरों का भी चलना मुश्किल हो गया है। गौ के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंंकने वाले अपनी राजनीतिक मजबूरियों के कारण शायद इस मुद्दे पर कुछ न बोले, लेकिन आम जनमानस में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि गौ गौ संरक्षण अभियान सिर्फ दिखावा साबित हो रहा है सर की बात है कि जिम्मेदार लोगों पर कोई कार्रवाई भी ना होने से इनके हौसलेेे बुलंद बने हुए हैं।
कहीं हड्डी और चमड़ा कारोबारियों से सांठगांठ तो नहीं?
सरकारी गौ आश्रय स्थलों में दम तोड़ने के बाद इन बेजुबानों की जो दुर्दशा हो रही है वह किसी से छुपी हुई नहीं है। इससे भी बड़ा सवाल जनमानस के दिलो-दिमाग में कौंध रहा है कि कहीं इसके पीछे हड्डी और चमड़ा कारोबारियों की कोई साजिश तो नहीं है। दरअसल इस बात को बल इसलिए पड़ रहा है कि गौ आश्रय स्थलों में दम तोड़ने के बाद गौ को दफनाने की जब व्यवस्था सुनिश्चित की गई है तो आखिरकार ऐसा न कर इन्हें क्यों खुले में इनके शव को फेंका जा रहा है, तो बरबस ही लोगों का ध्यान इस ओर जा रहा है कि कहीं हड्डी और चमड़ा कारोबारियों को बढ़ावा देने के लिए यह जिम्मेदारों की मौन स्वीकृति तो नहीं है? जिनकी अंदर ही अंदर एक राय हो।
पूर्व में भी कई गायों की हो चुकी है टांडाफाल में मौत
मिर्जापुर नगर पालिका के अधीन टांडा फाल पहाड़ी स्थित गौशाला में पूर्व में भी कई गायों की मौत हो चुकी है तथा कई लापरवाही भी यहां उजागर हो चुकी है। मसलन चारा, पानी के अभाव से लेकर अन्य बुनियादी समस्याएं। बावजूद इसके कोई कार्रवाई न होने से संबंधितों के जहां हौसले बुलंद बने हुए हैं।
यदि कभी गाहे-बगाहे कोई कार्रवाई भी होती है तो छोटे कर्मचारियों को बलि का बकरा बना दिया जाता है, जबकि जिम्मेदार साफ बच जाते हैं। जैसा कि यहां पूर्व में भी हो चुका है तत्कालीन जिलाधिकारी रहे अनुराग पटेल के कार्यकाल में दर्जनभर गायों की हुई मौत के मामले में एक ऐसे अधिकारी को बलि का बकरा बना कर सरकार के कोप का शिकार होना पड़ा था जबकि जिम्मेदार साफ बच निकले थे। अब देखना यह है कि इस मामले में प्रशासन क्या कार्रवाई तय करता है।