वरिष्ठ पत्रकार सौमित्र रॉय की रिपोर्ट
अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा के सिर्फ 3 जिलों में 2001-2011 के दौरान खनन लीज की शर्तों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों से 17,576 करोड़ की वसूली के आदेश दिए थे। उसके बाद से बौखलाई कंपनियों ने ऐसा पेंच फंसाया कि अब केंद्र सरकार ने ऐसे अवैध खनन को ही वैध ठहराने का रास्ता निकाल लिया है।
केंद्र सरकार ने 24 अगस्त 2020 को एक नोटिस जारी कर अपने इस कदम को लेकर 10 दिन में आपत्तियां मांगी हैं। लोगों को इससे पहले कि नोटिस के बारे में पता चले, आपत्तियों की मियाद ही खत्म हो गई।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अगर सिर्फ 3 जिलों के लिए वसूली की रकम 17 हज़ार करोड़ हो सकती है तो समझ लें कि देश भर में धड़ल्ले से जारी अवैध खनन को वैध करने से सरकारी ख़ज़ाने को कितना चूना लगने वाला है।
सवाल यह भी है कि कंपनियों को इस तरह की लूट की इज़ाज़त देना कौन से राष्ट्रहित में है। केंद्र सरकार माइन्स एंड मिनरल्स (विकास एवं नियमन) कानून में बदलाव कर लीज क्षेत्र में खुदाई के दौरान मिली हर चीज़ की लूट को वैध करने जा रही है।
यानी अगर किसी कंपनी को सिर्फ लोहा खनन की लीज मिली है तो उसको तांबा और बॉक्साइट लूटने का भी कानूनी अधिकार मिल जाएगा। मध्यप्रदेश देश के उन गिनती के राज्यों में है, जहां अवैध खनन सरकार की नाक के नीचे धड़ल्ले से होता है। पिछले दिनों राज्य के एक खनिज अधिकारी के यह लोकायुक्त के छापे में करोड़ों की दौलत मिली है।
अब एमएमडीआर एक्ट की धारा 21(5) को वैध ठहरा देने से सरकारी बाबुओं, राजनेताओं और खनन कंपनियों की कितनी जेब भरने वाली है, इसका अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है।