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Modi राज में उन छात्रों ने की सबसे ज्यादा आत्महत्या जिन्हें PM मानते हैं भारत का भविष्य, क्यों टूट रहा व्यवस्था से भरोसा?

Janjwar Desk
1 Sept 2022 1:06 PM IST
Modi राज में उन छात्रों ने की सबसे ज्यादा आत्महत्या जिन्हें PM मानते हैं भारत का भविष्य, क्यों टूट रहा व्यवस्था से भरोसा?
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file photo

NCRB Suicide Report 2021 : राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ( NCRB ) के मुताबिक 1995 से अब तक 2 लाख छात्रों ने आत्महत्या की। साल 2021 में सबसे ज्यादा 13000 छात्रों ने आत्महत्या की। ताजा अनुमान के अनुसार भारत में हर रोज औसतन 35 से अधिक व्यक्ति आत्महत्या ( Suicide) कर रहे हैं।

NCRB Suicide Report 2021 : विभिन्न मसलों पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरों ( NCRB ) के आंकड़े आते ही मोदी सरकार ( Modi Government ) के सुशासन की कलई भी खुलकर सामने आ गई है। महंगाई और बेरोजगारी से तो लोग परेशान थे ही, अब तो देश का भविष्य यानि छात्रों ( Student suicide ) की जिंदगी ही खतरे में है। चौंकाने वाली बात ये है कि मोदी राज ( Modi Raj ) में सबसे ज्यादा खतरे में या अपने असुरक्षित भविष्य को लेकर निराश छात्र ही रिकॉर्ड स्तर पर आत्महत्या ( Suicide News ) कर रहे हैं। पिछले तीन सालों के आंकड़े तो और भी चिंताजनक तस्वीर बयां करते हैं।

महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक में ऐसे छात्रों की संख्या सबसे ज्यादा

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ( NCRB Suicide Report 2021 ) के आंक़़ड़ों के मुताबिक साल 2021 भारत में 13000 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की, जो अब तक का रिकॉर्ड है। 1995 के बाद से अब तक लगभग 2 लाख से ज्यादा छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। 2021 में 13,089 छात्र आत्महत्याओं ( student suicide ) में से लगभग आधे यानि 6,077 5 राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा के रहने वाले थे। इसके अलावा अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने सामूहिक रूप से 7,012 छात्रों ने आत्महत्या की। जिन पांच राज्यों में सबसे ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की उनमें महाराष्ट्र 1834, तमिलनाडु 1246 और कर्नाटक 855 मौतें शामिल है। यानि तीन राज्यों में कुछ आत्महत्या करने वाले छात्रों की औसत संख्या करीब एक तिहाई के बराबर है। इन पांच राज्यों में केवल ओडिशा पिछड़ा राज्य है, शेष राज्य हर मामले में दूसरे राज्यों से बेहतर स्थिति में हैं। इसके बावजूद वहां के छात्रों में आत्महत्या की ज्यादा प्रवृत्ति चौंकाने वाली है।

बदली परिस्थितियां जिम्मेदार

मनोचिकित्सकों और सलाहकारों की माने तो इस मसले पर गहन शोध अध्ययन की आवश्यकता है। ऐसा इसलिए आत्महत्या एक ऐसी मनोदशा है जिससे अंततः जीवन की हानि होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता की आर्थिक स्थिति, कोविड-19 महामारी से उत्पन्न हालात और अध्ययन के नए तरीकों से उत्पन्न होने वाली शैक्षिक चुनौतियों की वजह ये स्थितियां उत्पन्न हुई हैं। मार्केटिंग कंसल्टेंट मनोचिकित्सकों के मुताबिक पारिवारिक संघर्ष से लेकर शैक्षणिक दबाव और दिनचर्या की कमी से लेकर बदलती परिस्थितियों का सामना करने में असमर्थ होने वाले सभी छात्र इससे प्रभावित हैं।

छात्रों का क्यों टूटा व्यवस्था से भरोसा

NCRB Suicide Report 2021 : टीओआई के एक विश्लेषण के अनुसार 1995 और 1999 के बीच कुल आत्महत्याओं में 5.2 प्रतिशत से अधिक छात्र आत्महत्या ( Student suicide ) करते थे। 1995 का साल इस मामले में सबसे ज्यादा खराब रहा। 1995 में सबसे ज्यादा 6.6 प्रतिशत छात्रों ने आत्महत्या की थी। साल 2000 से 2009 के दौरान प्रति वर्ष औसत 5 प्रतिशत से से अधिक छात्र आत्महत्या करते थे। 2019 में कुल आत्महत्याओं में से 7.4 प्रतिशत छात्रों ने आत्महत्या जैसे खौफनाक कदम को गले लगाया। 2020 में 8.2 और अब 2021 में पिछले वर्ष से ज्यादा छात्रों ने सुसाइड किया। इसके अलावा दिहाड़ी मजदूरों में आत्महत्या की दर 25 फीसदी गृहिणियां में 14 फीसदी और स्व.रोजगार वाले व्यक्तियों में ये दर 12 फीसदी तक पहुंचना किसी भी लिहाज से अच्छे संकेत नहीं है। इसे व्यवस्था के प्रति छात्रों का भरोसा टूटना भी माना जा सकता है।

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