नारदा केस में TMC के चारों नेताओं को अंतरिम जमानत, अदालत ने कहा आप मीडिया से इस मामले पर नहीं करोगे बात
(पांच जजों की पीठ ने गिरफ्तार नेताओं द्वारा दायर याचिकाओं पर विचार करने के बाद यह आदेश पारित किया)
जनज्वार डेस्क। नारदा मामले में शुक्रवार को सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाइकोर्ट ने तृणमूल कॉंग्रेस के चारों नेताओं फिरहाद हकीम, मदन मित्रा, सुब्रत मुखर्जी और सोवन चटर्जी को अंतरिम जमानत देे दी है। ये चारों नेेता 17 मई के बाद से सीबीआई के न्यायिक हिरासत में हैं।
पीठ की अंतरिम जमानत के सवाल पर असहमति के कारण चारों नेताओं को 19 मई को हाउस अरेस्ट किया गया और मामले को बड़ी पीठ को भेज दिया गया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल, जस्टिस आईपी मुखर्जी, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस अरिजीत मुखर्जी की पीठ ने गिरफ्तार नेताओं द्वारा दायर याचिकाओं पर विचार करने के बाद यह आदेश पारित किया, जिसमें खंडपीठ के 17 मई के चार टीएमसी नेताओं के जमानत पर रोक लगाने के आदेश को वापस लेने (रिकॉल आवेदन) की मांग की गई थी।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक पीठ ने शर्त रखी कि चारों नेता नारदा मामले में लंबित मुकदमे पर प्रेस बयान नहीं देंगे या मीडिया में चर्चा नहीं करेंगे। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अंतरिम जमानत मामले में अंतिम आदेश के अधीन होगी और अगर सीबीआई अपनी याचिका में सफल होती है तो वह रद्द हो जाएगी।
पांच जजों की पीठ ने दो लाख रुपये के एक निजी बॉन्ड भरने और इतनी ही राशि के दो जमानतदार पेश करने की शर्त पर जमानत देने का फैसला सुनवाया। बुलाए जाने पर उन्हें वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जांच में शामिल होना होगा।
सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अंतरिम जमानत देने का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी लंबित मुकदमे को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त प्रभावशाली हैं। एसजी ने यह भी कहा कि आरोपियों में जनता की भावनाओं को भड़काकर भीड़ इकट्ठा करने की क्षमता है जो जांच या मुकदमे को प्रभावित कर सकती है।
पीठ ने इस मौके पर सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि क्या गिरफ्तार किए गए नेताओं को हिरासत में रखना आवश्यक है - उनमें से दो कैबिनेट मंत्री और उनमें से एक विधायक है, जब उन्हें 4 साल से अधिक समय तक जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया था।