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Noam Chomsky Interview : हम मानव इतिहास के सबसे खतरनाक मोड़ पर खड़े हैं : नोआम चोमस्की
Noam Chomsky Interview : हम मानव इतिहास के सबसे खतरनाक मोड़ पर खड़े हैं : नोआम चोमस्की
Noam Chomsky Interview : नोआम चोमस्की (Noam Chomsky) उस समय महज 10 साल के थे जब उन्होंने पहली बार विदेशी आक्रमण (Foreign Invasion) के खतरों का सामना किया था। चोमस्की बताते हैं कि वे उन्होंने अपना पहला आलेख साल 1939 में बार्सिलोना (Barcelona) के पतन के बाद अपने स्कूल के अखबार (Elementary School Newspaper) के लिए लिखी थी। चोमस्की ने यह बात हाल में एक वीडियो कॉल (Video Call) के दौरान कही। नोआम चोमस्की (Noam Chomsky) ने इस बातचीत में दुनिया भर में फासिज्म (Fascism) से बढ़ रहे खतरे से भी आगाह किया है। उन्होंने कहा है कि हम मानव इतिहास के सबसे खतरनाक मोड़ पर खड़े हैं।
चोमस्की बताते हैं कि तब से लेकर अब तक मैंने मन नहीं बदला है, हालांकि वर्तमान समय में दुनिया और भी अधिक नाजुक दौर से गुजर रही है। वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का खतरा और अधिक गंभीर समस्या बन गयी है। चोमस्की बताते हैं कि हम मानव इतिहास के सबसे खतरनाक दौर की ओर बढ़ रहे हैं। हम पृथ्वी पर मानव जीवन के अस्तित्व पर खतरे का सामना कर रहे हैं।
93 साल के चोमस्की दुनिया के गंभीर मुद्दों पर रखते हैं अपनी राय
आज 93 वर्ष की अवस्था में चोमस्की दुनियाभर में संभवत: सबसे प्रसिद्ध विद्वान के रूप में हमारे बीच हैं। वे दुनिया पर मंडरा रहे संकट के इस दौर में भी एक युवा की भांति अपना पक्ष रखने में पीछे नहीं रहते हैं। वे डायलन थॉमस (Dylan Thomas) की निषेधाज्ञा डोंट गो जेंटल इनटू दैट गुड नाइट (Do not go gentle into that good night) और बाइसाइकिल थ्योरी- यदि आप अपनी गति बनाए रखेंगे तो आप गिरेंगे नहीं के सिद्धांतों की वकालत करते हैं।
चोमस्की से हमारी हाल फिलहाल की बातचीत क्रोनिकल्स आॅफ डिसेंट (Chronicles of Dissent) के प्रकाशन के मौके पर हुई। यह नोआम चोमस्की (Noam Chomsky) और पत्रकार डेविड बरसामियान (David Barsamian) के बीच साल 1984 से 1986 के बीच हुए साक्षात्कार और बातचीत का संग्रह है।
यूक्रेन पर रूस का हमला एक राक्षसी करतूत
यूक्रेन (Ukraine) पर रूस (Russia) के हमले को चोमस्की राक्षसी (Monstrous) करतूत बताते हैं। दूसरे यहूदियों की तरह चोमस्की का भी यूक्रेन (Ukraine) से पारिवारिक लगाव रहा है। उनके पिता वर्तमान समय के यूक्रेन में ही पैदा हुए थे पर साल 1913 में वे जार की सेना के लिए लड़ने से बचने के लिए अमेरिका चले गए। उनकी मां का जन्म बेलारूस में हुआ था।
चोमस्की जिनकी कभी-कभी पश्चिम विरोधी देशों के विरोध में रहने वाले देशों के खिलाफ नहीं बोलने के लिए आलोचना भी होती है, उन्होंने भी बिना किसी हिचक के रूस के यूक्रेन पर हमला करने के लिए ब्लादिमिर पुतिन को कटघरे में खड़ा किया है और उनके इस कदम की जमकर आलोचना की है।
रूस यूक्रेन के बीच लड़ाई को तथ्यों के आधार पर परखा जाए
पर वे ये भी कहते हैं कि पुतिन ने ऐसा क्यों किया? इस सवाल को दो नजरिए से देखा जा सकता है। एक जैसे पश्चिमी देश इसे देख रहे हैं, और इसे पुतिन का सनक बता रहे है। इसे देखने का दूसरा तरीका यह है कि इस सवाल को तथ्यों के आधार पर देखा जाए।
उदाहरण के लिए सितंबर 2021 में अमेरिका ने एक मजबूत नीतिगत बयान देते हुए कहा था कि वह यूक्रेन के साथ अपनी सैन्य सहभागिता को बढ़ाएगा। उसके बाद अमेरिका की ओर अत्याधुनिक हथियार यूक्रेन भेजे गए। इस नीतिगत कवायद का एक हिस्सा यूक्रेन को नाटो में शामिल करना भी था।
इन दोनों पक्षों पर गौर कर अब आप अपनी समझ से यह फैसला ले सकते हैं कि कौन सही है और कौन गलत। एक बात तय है कि यूक्रेन के लिए यह पूरा घटनाक्रम उसे बर्बादी की ओर ले जा रहा है। अगर समय रहते इस तनाव से बाहर निकलने की कोई कवायद नहीं हुई तो यह लड़ाई एक परमाणु युद्ध की ओर भी बढ़ सकता है।
रूस और यूक्रेन के बीच की लड़ाई को प्रोपेगैंडा से परे हटकर देखें
पुतिन के बारे में चोमस्की कहते हैं कि पुतिन को भी रूस और यूक्रेन के लोकतंत्र की उतनी ही चिंता होनी चाहिए जितनी हमें है। अगर वर्तमान समय में प्रोपेगेंडा से बाहर निकलकर हम कुछ समय को लिए सोचें तो देखेंगे कि लोकतांत्रिक सरकार पर दबाव बनाने और बर्बाद करने का अमेरिका का लंबा इतिहास रहा है। इरान में 1953 में, ग्वांटेमाला में 1954 में, चिली में 1973 और उसके बाद की भी और कई घटनाएं हैं क्या हमें उन्हें भूल जाना चाहिए।
पुरानी बातों को भूलकर अगर हम केवल यह देखें वर्तमान समय में अमेरिका लोकतंत्र की जिस तरह से मजबूती की बात करता है और उसमें आस्था दिखाता है हमें उसका सम्मान करना चाहिए। पर हर आदमी क्या इतिहास को भूल सकता है।
अमेरिका ने सोवियत यूनियन से किया वादा नहीं निभाया
नाटो के विस्तार के बारे में बोलते हुए चोमस्की कहते हैं कि अमेरिका के 80 के दशक के आखिरी सालों में अमेरिका के गृह सचिव जेम्स बेकर (James Baker) और राष्ट्रपति जार्ज बुश सीनियर (George Bush Senior) ने सेवियत यूनियन के गोर्बाचोव से यह स्पष्ट वादा किया था कि अगर सोवियन यूनियन (Soviet Union) एकीकृत जर्मनी को नाटो में शामिल होने देता है तो अमेरिका का निश्चित करेगा कि नाटो पूर्व की ओर एक इंच भी ना बढ़े। वर्तमान समय में इस बारे में कइ तरह से झूठ बोले जा रहे हैं।
चोमस्की जो यह मानते हैं कि अगर न्यूरेमबर्ग कानूनों (Nuremberg Law's) को माना जाए तो युद्ध की परिस्थिति बनाने वाले अमेरिका के हर राष्ट्रपति को फांसी पर लटका देना चाहिए, जो बाइडेन के बारे में भी खुलकर बोलते हैं। बाइडेन कहते हैं कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन को अब सत्ता में नहीं रहना चाहिए। इस पर चोमस्की का मानना है कि रूस के यूक्रेन पर हमले के फैसले पर नैतिक आक्रोश होना सही बात है पर क्या हम अफगानिस्तार में जो कुछ डरावनी परिस्थिति बनी उसे भूला दें?
अफगानिस्तान में लाखों लोगों को भूखे मरने के लिए छोड़ दिया गया। ऐसा क्यों? बाजारों में अनाज है पर जिनके पास पैसे नहीं हैं वे अपने बच्चों को भूखा मरते देख रहे हैं क्यों कि वे बाजार जाकर अनाज खरीदने की स्थिति में नहीं हैं। यह परिस्थिति इसलिए बनी है क्योंकि अमेरिका ने ब्रिटेन की मदद से अफगानिस्तान का फंड न्यूयार्क के बैंकों में रखा हुआ है और उसे रिलीज नहीं कर रहा है।
अमेरिका की विदेश नीति में पाखंड और विरोधाभास
अमेरिका की विदेश नीति के पाखंड और विरोधाभास को समझना हो तो आपको चोमस्की की 1969 में प्रकाशित किताब अमेरिकन पावर एंड द न्यू मंडारिन्स पढ़नी चाहिए इसमें उन्होंने वियतनाम युद्ध में अमेरिका की हार की भविष्यवाणी की थी। वर्तमान समय में चोमस्की सबसे अधिक उत्सुकता डोनाल्ड ट्रंप की संभावित वापसी और जलवायु परिवर्तन के खतरों से जुड़े विषयों पर दिखाते हैं।
चोमस्की बताते हैं कि 1930 के दशक की डरावनी यादें मेरे जहन में जाता हैं जब रेडियो पर हिटलर का संबोधन होता है। मुझे उसकी बातें समझ में नही आती थीं पर उसका मूड समझ में आता था, जो काफी डरावना था। आज जब हम ट्रंप की रैली देखते हैं तो बरबस ही उस दौर की यादें हमारे जेहन में आने लगती है। उनका कहना है कि ट्रंप अपनी फैंटेसी में जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों को गंभीरता से नहीं लेते हैं, ऐसे में अगर वे सत्ता में दोबारा आते हैं तो यह मानव प्रजाति के लिए एक डेथ वारंट की तरह होगा।
ब्रिटेन की राजनीति के बारे में चोमस्की बताते हैं कि ब्रेक्सिट से बाहर होना ब्रिटेन की एक गंभीर गलती थी। इसका सीधा मतलब है कि ब्रिटेन और अधिक अमेरिकी अधीनता स्वीकार करनी पड़ेगी।
(यह आलेख प्रसिद्ध विद्वान नोआम चोमस्की और पत्रकार जार्ज ईटन के बीच एक वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान हुई बातचीत पर आधारित है और द न्यू स्टेट्समैन में अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुकी है।)